वित्त वर्ष 2021 में ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) 2016 के तहत करीब 50 फीसदी मामलों को परिसमापन के साथ बंद किया गया जबकि महज 13 फीसदी मामलों का समाधान हुआ। इस साल मार्च तक बैंकों ने ऋण अदायगी में चूक के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही के बाद 2,653 मामलों को बंद कर दिया। जबकि 16 फीसदी मामलों में लेनदारों ने ऋण शोधन अक्षमता कानून की धारा 12ए के तहत बकाये के एक हिस्से के भुगतान के बाद प्रवर्तकों को कंपनियों की कमान सौंप दी। बंद हो चुके करीब 23 फीसदी मामले पुनर्विचार अथवा अपील के तहत लंबित हैं।
आईबीबीआई के आंकड़ों से पताा चलता है कि कुल 4,373 मामलों में से 2,653 मामले बंद हो चुके हैं जबकि शेष मामलों में कार्यवाही चल रही है। लेनदारों के लिए चिंता की बात यह भी है कि निपटाए गए मामलों में लेनदारों के दावे पर नुकसान वित्त वर्ष 2021 में बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच गया जबकि इससे पिछले वर्ष यह आंकड़ा औसतन 55 फीसदी रहा था।
केवल मार्च 2021 तिमाही में ही बैंकों को चूक के खिलाफ अपने दावे पर नुकसान का स्तर बढ़कर 74 फीसदी तक पहुंच गया। बैंकों को गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) को निटाने के लिए अपने दावे पर नुकसान उठाना पड़ता है। लेनदारों और कॉरपोरेट वकीलों का कहना है कि इस साल मार्च तक जारी 79 फीसदी मामलों में 270 दिनों की अवधि पहले ही खत्म हो चुकी है। ऐसे में अगली तिमाही के दौरान परिसमापन के मामलों में कहीं अधिक तेजी दिख सकती है।
परिसमापन के मामलों में वृद्धि का मतलब साफ है कि बैंकों को चूककर्ता कंपनियों के संयंत्र, मशीनरी एवं अन्य परिसंपत्तियों को बेचकर अपने डूबते ऋण की वसूली करने में मदद मिलेगी। ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2021 तक ऋण शोधन अक्षमता प्रक्रिया के तहत कुल 4,376 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से 499 नए मामले पिछले वित्त वर्ष के दौरान दर्ज किए गए। ऐसा मुख्य तौर पर कोविड-19 वैश्विक महामारी के मद्देनजर केंद्र सरकार द्वारा आईबीसी प्रक्रिया को एक साल के लिए स्थगित किए जाने के कारण हुआ।
केंद्र सरकार ने चूक के गंभीर मामलों में बैंकों को अपने बकाये की वसूली करने में समर्थ बनाने के लिए आईबीसी प्रक्रिया शुरू की थी। जबकि इससे टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू स्टील और अल्ट्राटेक जैसी दमदार वित्तीय स्थिति वाली कंपनियों को संकटग्रस्त अपने प्रतिस्पर्धियों का अधिग्रहण करने में मदद मिली। इस प्रकार कई प्रवर्तकों को अपनी कंपनियों पर नियंत्रण खोना पड़ा।
वित्त वर्ष 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि करीब 43 फीसदी मामले वित्तीय लेनदारों द्वारा दायर किए गए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से जून 2019 में जारी एक नए परिपत्र के बावजूद ऐसा देखा गया है। उस परिपत्र के तहत आईबीसी के तहत मामलों को दर्ज किए जाने की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया था।
करीब 51 फीसदी मामले परिचालन लेनदारों द्वारा दायर किए गए थे। लेनदारों ने कहा कि आईबीसी की प्रक्रिया को नए सिरे से बहाल किए जाने पर मामलों में काफी वृद्धि दिख सकती है।