संकटग्रस्त विमानन कंपनी गो फर्स्ट के पट्टेदारों ने राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) में इसके परिचालकों की ऋण शोधन अक्षमता याचिका का विरोध किया है। NCLT ने आज दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद इस मामले पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
Go First का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज क्रिष्ण कौल ने NCLT को बताया कि याचिका दायर करने तक उन्होंने अपने वित्तीय ऋणदाताओं को भुगतान जारी रखा था और किसी तरह की चूक नहीं की थी।
कौल ने NCLT के समक्ष कहा कि विमानन कंपनी की 54 उड़ानों में 26 अब भी परिचालन में हैं। उन्होंने कहा, ‘हम इन उड़ानों का परिचालन करने में सक्षम हैं और परिचालन जारी रखने के लिए वेतन सहित ईंधन, विमानों के उतरने की जगह और अन्य मदों के लिए भी रकम का भुगतान कर रहे हैं।’
नकदी की कमी के बाद वाडिया नियंत्रित गो फर्स्ट ने मंगववार को स्वयं को दिवालिया घोषित करने के लिए याचिका दायर की थी। इस विमानन कंपनी ने इस स्थिति के लिए विमान इंजन बनाने वाली कंपनी प्रैट ऐंड व्हिटनी को जिम्मेदार ठहराया। गो फर्स्ट ने मंगलवार को सभी उड़ानें रद्द कर दीं।
अपनी याचिका में कंपनी ने यह भी कहा कि उसने पिछले 30 दिनों में 4,118 उड़ानें रद्द की हैं जिनसे 77,500 यात्री प्रभावित हुए। कौल ने NCLT के समक्ष कहा कि ऋण शोधन अक्षमता याचिका का मकसद कंपनी को दोबारा मजबूत करना है। उन्होंने न्यायाधिकरण से किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई से मोरेटोरियम दिए जाने की मांग की।
गो फर्स्ट के पट्टेदारों का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कठपलिया ने कहा कि दोनों पक्षों की दलीलें सुने बिना गो फर्स्ट मोरेटोरियम की गुहार नहीं लगा सकती। इस विमानन कंपनी के पट्टेदारों में एसएमबीसी कैपिटल एविएशन, जीएल, सीडीबी एविएशन कंपनी और एमएसपीएल शामिल हैं। कठपलिया ने तर्क दिया कि आईबीसी के तहत अंतरिम मोरेटोरियम का कोई प्रावधान नहीं है।
उन्होंने तर्क दिया कि मोरेटोरियम से विमानन कंपनी को कोई फायदा नहीं होगा और इससे उसकी लागत और बढ़ जाएगी क्योंकि विमानों का इस्तेमाल नहीं करने पर भी शुल्कों का भुगतान करना होगा। कठपलिया ने कहा, ‘अगर वाडिया समूह विमानन कंपनी का प्रबंधन नहीं कर सकते तो अंतिरम समाधान पेशेवर क्या करेंगे? वे प्रैट ऐंड व्हिटनी से कैसे कानूनी लड़ाई लड़ पाएंगे?’