नई दिल्ली में करोल बाग की गलियों के अंदर अपनी एक अलग दुनिया है जिसे गफ्फार मार्केट कहते हैं। यहां के बारे में कहा जाता है कि कोई ऐसा उपकरण नहीं है जिसकी मरम्मत यहां न की जाती हो।
यहां मरम्मत का मतलब दो चीजों से है- खराब इलेक्ट्रिकल पुर्जे को चीनी माल से बदलना या पुराने उपकरण से पुर्जा निकालकर लगा देना। कई साल से ऐसा ही चल रहा है।
सिटी टेलीकॉम ( मोबाइल फोन मरम्मत की दुकान) के मालिक तनुज खन्ना कहते हैं कि हम लगभग 90 प्रतिशत सामान चीन से आए हुए पुर्जों से ठीक करते हैं। उनमें कुछ पुर्जे असली भी होते हैं जो पुराने या बंद हो गए मोबाइल का ही काम करता हुआ पुर्जा होता है।
लेकिन अब केंद्र सरकार मरम्मत के अधिकार का कानून बनाने के लिए मसौदा लेकर आई है जिसमें उत्पाद की सुविधा स्वयं या तीसरे पक्ष के द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी। ऐसे में अब संभव है कि नये और असली सामान अधिकृत डीलर या सर्विस की दुकानों के अलावा खुले बाजार में भी आसानी से उपलब्ध हो जाएं ।
जियोनी और माइक्रोमैक्स जैसी कंपनियों में काम कर चुके इंजीनियर प्रदीप चौधरी कहते हैं कि कोई भी कंपनी ऐसा सामान उपलब्ध नहीं कराती जिसे व्यापारी असली कहते हैं। ये सामान्य तौर पर वही पुर्जे होते हैं जो पुराने सामान की मरम्मत करते समय बचा लिये जाते हैं। चौधरी कहते हैं कि डीलर हमें नए पुर्जे देने से इनकार करते हैं और अगर केंद्र ऐसा कानून लाता भी है तो मुझे संदेह है कि यह सफल हो पाएगा। लेकिन अगर ऐसा होता है तो ग्राहक के लिए यह काफी फायदेमंद होगा। वह फोन या लैपटॉप की मरम्मत के लिए किसी एक दुकान पर निर्भर नहीं होगा। इसके साथ न सिर्फ हमारे विकल्प बढ़ेंगे बल्कि मरम्मत करने वाले व्यक्ति कंपनी के प्रामाणिक बिल भी दे सकेंगे।
गफ्फार मार्केट से करीब 10 किलोमीटर दूर लगभग इसी तरह का एक और बाजार मायापुरी में है जहां पुरानी कारों को कबाड़ के भाव से खरीदा जाता है और उसमें से कामचलाऊ सामान अलग निकालकर फिर से उपयोग में लाया जाता है। यहां ग्रीस की गंध चारों ओर फैली रहती है। एक वाहन बाजार के लिए यह अनजान सी जगह है। कभी-कभार कार के हॉर्न और पुर्जों पर पड़ते स्पैनर की आवाज सुनाई दे जाती है।
ऑटो की दुकान चला रहे अश्विनी कुमार मरम्मत के अधिकार नियामक अधिनियम को लेकर बहुत आशावादी नहीं हैं। वह कहते हैं कि जब तक सरकार कबाड़ से निपटने के लिए कोई सख्त कानून नहीं लाती है तब तक ऐसे कानून कोई बड़ा बदलाव नही ला सकते।
अगर लोगों के पास सस्ते सामान खरीदने का विकल्प है तो बड़ी मात्रा में लोग इसे खरीदने के लिए जाएंगे। अगर आपको कार खरीदे ज्यादा दिन नहीं हुए हैं तो आप महंगा सामान क्यों खरीदेंगे?
बाजार में एक दूसरी मोटर की दुकान के मालिक हरपाल सिंह कहते हैं कि ग्राहकों को कइ तरह के फायदे तो होंगे ही लेकिन इसके साथ ही वाहन पुर्जों के ऊपर लिखे हुए दाम के कारण सौदेबाजी की गुंजाइश भी खत्म हो जाएगी। पास के ही पंखा रोड ऑटो मार्केट, गैराज और सर्विस की दुकान वालों का कहना है कि पहले से ही बाजार में असली सामान आसानी से उपलब्ध है इसलिये प्रस्तावित कानून बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता है।
सिटी मोटर कार रिपेयर शॉप के मालिक राज कुमार कपूर कहते हैं कि मारुति और टाटा जैसी कंपनियों का असली सामान लाने में उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। मारुति सुजूकी के आउटलेट, असली सामान की विक्रेता, ऑटो जार ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। उसके मैनेजर सौरभ शर्मा ने कहा कि कार में असली सामान लगना हमेशा अच्छा होता है और यह प्रावधान खुले बाजार में सामान की उपलब्धता बढ़ाएगा।
लेकिन अगर ये सामान बाजार में किसी न किसी तरह पहले से ही उपलब्ध हों तो एसे कानून का क्या फायदा होगा। वह कहते हैं कि अगर लोगों की पहुंच बढ़ती है तो यह साधारण सी बात है कि इससे हमारे व्यापार को फायदा होगा। हमारे स्टोर को खुले एक साल हो गया और इस बीच हमारा व्यापार हर महीने 6 लाख रुपये से बढ़कर 20 लाख रुपये हो गया जो यह दिखाता है कि लोंगो के बीच असली सामान की मांग ज्यादा है।