सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीआईटी) एक ऐसे सॉफ्टवेयर उपकरण और फॉन्ट को तैयार करने में जुटा हुआ है जिसकी मदद से पर्सनल कंप्यूटरों और वेबसाइटों पर संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त देश की 22 भाषाओं से जुड़ी सामग्री देखी व पढ़ी जा सकेगी।
डीआईटी सॉफ्टवेयर और फॉन्ट के इस्तेमाल को इसी साल के सितंबर महीने तक शुरू कर देगा। वर्तमान में डीआईटी के पास कई उपकरण और फॉन्ट हैं। उदाहरण के लिए डीआईटी के पास की-बोर्ड ड्राइव वाली ट्रू टाइप फॉन्ट, यूनिकोड के अनुकूल काम करने वाली ओपन टाइप फॉन्ट और साथ ही यूनिकोड वाली ओपन टाइप की-बोर्ड ड्राइवर भी है।
डीआईटी के पास 16 भाषाओं में विभिन्न उपकरण और फॉन्ट उपलब्ध हैं। डीआईटी की सूची में बोडो, डोगरी, मैथिली और नेपाली भाषाओं को हाल ही में जोड़ा गया है। डीआईटी के सचिव जैनदर सिंह ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘विभाग इस साल सितंबर महीने तक बाकी बचे छह भाषाओं के लिए उपकरण व फॉन्ट विकसित करने की योजना बना रहा है।’
डीआईटी की यह पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि राज्य सरकारों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे दस्तावेजों से संबंधित परिचालन गतिविधियों को कम से कम दो भाषाओं में करेंगे।
आज की तारीख तक विभाग 12 भाषाओं की करीब 31 लाख कॉम्पेक्ट डिस्क (सीडी) निकाल चुका है। यही नहीं स्थानीय भाषा को और अधिक तवाो देने के लिए विभाग हर साल करीब 9 करोड़ रुपये खर्च करेगा। विभाग ने वर्तमान वित्त वर्ष में भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास (टीडीआईएल) के अनुसंधान और विकास परियोजनाओं में फंड के रूप में 8 करोड़ रुपये मुहैया कराएगी।
इसके अलावा, सरकार ने जनवरी 2008 से भारतीय भाषाओं (जो इंटरनैशनलाइज डोमेन नेम (आईडीएन) के नाम से मशहूर है) में वेबसाइट की पंजीकरण भी शुरू कर चुकी है। यह माना जा रहा है कि स्थानीय भाषाओं के सॉफ्टवेयर के लिए सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) और ग्रामीण ज्ञान केंद्र (केंद्र सरकार की ई-प्रशासन की एक शाखा) एक प्रमुख हब के रूप में उभरेगा।
इन केंद्रों से स्थानीय भाषा के सॉफ्टवेयर को काफी फायदा मिलेगा। इससे भी कहीं अधिक सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभाग द्वारा तैनात ई-प्रशासन के बीच स्थानीय भाषाओं में आवेदन और महत्वपूर्ण हो जाएगा।
उदाहरण के लिए, विदेश मंत्रालय टाटा कंसल्टेंसी के साथ मिलकर ई-पासपोर्ट सेवा परियोजना ला रहा है और यह सेवा उस वक्त पासपोर्ट धारकों के लिए और ज्यादा प्रासंगिक हो जाएगी जब वहां (स्थानीय जगहों) के लोगों को उन्हीं की भाषा में आवेदन पत्र उपलब्ध कराया जाएगा।
भारतीय इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन (आईएएमएआई) के एक रिपोर्ट के जरिए यह रेखांकित किया गया है कि भारतीय भाषाओं में प्रमुख सामग्री उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए सर्च इंजन, पोर्टल (खास तौर से ई-मेल और चैट), उपयोगकर्ता द्वारा उत्पादन सामग्री (जैसे-सामाजिक नेटवर्किंग साइट) और वोर्टल (अलग-अलग उद्योगों के लिए खास तौर से बनाए गए पोर्टल) आदि को देख सकते हैं।
मालूम हो कि भारत में स्थानीय भाषा सूचना प्रौद्योगिकी का बाजार 30 फीसदी के हिसाब से विकास कर रहा है और यह उम्मीद जताई जा रही है कि साल 2010 तक इसका बाजार 60 फीसदी बढ़कर 10 करोड़ डॉलर (करीब 500 करोड़ रुपये) के आंकड़े को छू लेगा।
इसमें कोई शक नहीं कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय भाषाओं की सामग्री और रिपोर्ट नोट्स की वजह से कंप्यूटर क्षेत्र का भी तेजी से विकास होगा। यही नहीं यह विकास टेलीकॉम और ब्रॉडबैंड क्रांति के लिए बेहद प्रासंगिक होगा। वर्तमान में ई-मेल और न्यूज ये दो ऐसे एप्लिकेशंस कहे जा सकते हैं, जिसका भारतीय भाषाओं में बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है।
जब वेबसाइट पर बहुत सारी भाषाओं में स्थानीय सामग्री की उपलब्धता हो जाएगी तो उपयोगकर्ता के लिए अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में सर्च कर सकेंगे। और तब उपभोक्ता मिनटों में ही अपनी भाषा में सामग्री की खोज कर सकेंगे। सर्च इंजन की एक खास विशेषता है कि इसमें की-बोर्ड के लिए फॉनेटिक टाइपिंग, कंप्रेशन और इंडेक्सिंग आदि की व्यवस्था की गई है।
आई-क्यूब 2007 डेटा के रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं संभवत: 35 फीसदी उपयोगकर्ता को जानकारी ही नहीं है कि अन्य भारतीय भाषाओं की सामग्री भी ऑनलाइन उपलब्ध है। यही नहीं गैर-मेट्रो यानी छोटे शहरों में तो भारतीय भाषाओं की सामग्री के बारे में 53 फीसदी इंटरनेट उपयोगकर्ता को नहीं मालूम है।
डीआईटी के टीडीआईएल प्रोग्राम के निदेशक और अध्यक्ष स्वर्ण लता ने बताया, ‘जब अगली यूनिकोड मानक को शुरू किया जाएगा तो उस वक्त वैदिक संस्कृत को भी देखा व लिखा जा सकेगा। लिहाजा आधुनिक पीढ़ी के लिए हमारे प्राचीन वेदों से जुड़ी तमाम जानकारियां मुहैया कराई जा सकेगी। टीडीआईएल प्रोग्राम के तहत हम लोग डब्ल्यूडब्ल्यूडबल्यू की दुनिया में अंग्रेजी की जो बाधा है, उसे तोड़ने के लिए काम कर रहे हैं।’