परमाणु पंगत में शामिल होकर भारत ने हाल में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। भारत अब बेरोकटोक वैश्विक परमाणु कारोबार में भागीदारी कर सकेगा। इस उपलब्धि का जश्न अभी फीका नहीं पड़ा है।
देश को जल्द ही जश्न मनाने का एक और मौका मिलेगा। जिनेवा से लगे फ्रांस के ग्रामीण इलाकों में बुधवार से शुरू हो रहे मानव इतिहास के सबसे बड़े वैज्ञानिक प्रयोग में भारत के वैज्ञानिकों का भी योगदान होगा। यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो इस प्रयोग से ब्रह्मांड की गुत्थियां सुलझ सकेंगी। कई चीजें आज भी इंसान के लिए एक पहेली बनी हुई हैं, इस प्रयोग वे रहस्य बेपर्दा हो सकेंगे।
यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन (सीईआरएन) का सदस्य न होने के बावजूद तकरीबन 387 अरब रुपये (9 अरब डॉलर) के इस प्रोजेक्ट में भारत का भी महत्वपूर्ण योगदान है। पिछले बीस वर्षों से लार्ज हैड्रोन कॉलाइडर (एलएचसी) यानी दुनिया की सबसे बड़ी मशीन स्थापित करने में लगे दुनिया के तमाम वैज्ञानिकों की कोशिशों में कई भारतीय वैज्ञानिकों और दूसरे पेशेवरों ने भी अपना योगदान दिया है।
एलएचसी ही वह विशालकाय मशीन है जिसके जरिये ब्रह्मांड के अनसुलझे रहस्यों को जानने की कोशिश की जाएगी। सीईआरएन में कार्यरत वैज्ञानिक अर्चना शर्मा कहती हैं, ’21 वीं सदी की महानतम खोज में शामिल होना बेहद सम्मान वाली बात है। एलएचसी को बनाने में भारत का योगदान भी बहुत बड़ी उपलब्धि है।’
जमीन के 100 मीटर अंदर चट्टान और रेतीले पत्थर काटकर बनाई गई एलएचसी एक भीमकाय मशीन है। यह दो बड़े बीमों पर बाएं से दाएं और दाएं से बाएं घूमकर काम करती है। ये बीम खासतौर से बनाई गई एक 27 किलोमीटर की भूमिगत रिंग पर घूमते हैं। ये तकरीबन प्रकाश की गति के बराबर घूमते हैं।
हरेक बीम प्रति सेकंड के हिसाब से मशीन के 11, 245 चक्कर लगाता है। जब कोई कण-हिस्सा-कोलॉइड्स विपरीत दिशा में आ रही ऐसी ही चीजों से टकराते हैं तो यह आइंस्टाइन के मशहूर ऊर्जा सिद्धांत पर काम करने लगता है।
बिग बैंग पुस्तक की लेखिका सिमोन सिंह कहती हैं, ‘महज कुछ ही सेकंड में (बिग बैंग के बाद) बेहद गर्म ब्रह्मांड आश्चर्यजनक रूप से ठंडा हो गया और इसका आकार भी बढ़ गया। इसका तापमान कुछ ही सेकंडों में खरब डिग्री सेल्सियस से अरब डिग्री सेल्सियस तक कम हो गया। ‘
सीईआरएन के वैज्ञानिक अपनी जीतोड़ कोशिशों में लगे हैं। रिंग के चारों आरे चार बिंदुओं पर इस प्रोजेक्ट में चार बड़े प्रयोग होने हैं। भारत, सीएमएस और एलिस प्रयोग में साझीदारी कर रहा है। सीएमएस के जरिये भौतिकी की दुनिया में हुई बड़ी खोजों के बारे में पता चलेगा। उसमें कई चीजें शामिल होंगी, मसलन भार की उत्पत्ति कैसे हुई-वगैरह-वगैरह।
वहीं एलिस प्रयोग के जरिये 13 अरब साल पहले के उस रहस्य को जानने में मदद मिलेगी जब बेहद गर्म ब्रह्मांड का तापमान कुछ ही सेकंडों में आश्चर्यजनक तरीके से कम हो गया। सिंह का कहना है, ‘पहले कुछ मिनटों में ब्रह्मांड में हाइड्रोजन और हीलियम का अनुपात काफी हद तक तय था और आज भी यह लगभग वैसा ही है।’ इसके अलावा इस प्रयोग से ‘डार्क मैटर’ भी पैदा होगा जो पहले से ही ब्रह्मांड में मौजूद है।
वैज्ञानिकों ने गणना की है कि ब्रह्मांड में 73 फीसदी ‘डार्क एनर्जी’ है और बाकी बचे 23 फीसदी में ही ‘सामान्य मैटर’ है। अर्चना शर्मा ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘यह सदियों में होने वाला प्रयोग है और वैज्ञानिक 20 साल से इसमे जुटे हैं। इसके कुछ बढ़िया परिणाम भी मिलेगे।’
देश के टाटा इंस्टीटयूट फॉर फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, साहा इंस्टीटयूट और पंजाब विश्वविद्यालय ने डिटेक्टरों को सॉफ्टवेयर के अलावा और भी स्तरीय सेवाएं मुहैया कराई हैं।