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चुनावी ढोलक की थाप पर झूमतीं विज्ञापन एजेंसियां

Last Updated- December 10, 2022 | 7:33 PM IST

आर्थिक मंदी में कारोबारी जगत ने विज्ञापन एजेंसियों का सुर बिगाड़ दिया था, लेकिन चुनावी बिगुल बजते ही इनका सुर संभलता दिख रहा है।
मुनाफे की धुन भांपकर विज्ञापन एजेंसियां भी होली के फाग पूरे जोर के साथ गा रही हैं। ये एजेंसियां इस मौके को दोनों हाथों से भुनाना चाहती हैं और इसके लिए बाकायदा तैयारी भी शुरू कर दी गई है।
मंदी की वजह से इंडिया इंक का विज्ञापन बजट भी काफी प्रभावित हुआ है, जिससे पिछले कुछ वक्त में विज्ञापन एजेंसियों के कारोबार में कमी आई है। लेकिन, लोकसभा चुनाव के दौरान 800 करोड़ रुपये के जारी होने वाले विज्ञापनों ने इन एजेंसियों को उम्मीद की नई किरण दिखाई है। इन एजेंसियों के कारोबार में 40 से 45 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।
कई विज्ञापन एजेंसियों से जुड़े अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि लोकसभा चुनाव में विज्ञापनों और प्रचार का लगभग 70 फीसदी हिस्सा तो उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे सूबों में ही खर्च होना है। इसके चलते, विज्ञापन एजेंसियां राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ इन सूबों में राजनीतिक वजूद रखने वाली क्षेत्रीय पार्टियों को भी लुभाने की कोशिश में ही लगी हैं।
देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगभग 300 करोड़ रुपये का ठेका विज्ञापन एंजेसियों को पहले ही दे चुकी हैं। इसके बाद से विज्ञापन एजेंसियां समाजवादी पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों और व्यक्तिगत तौर पर प्रचार कराने वाले उम्मीदवारों पर निशाना साध रही हैं।
पार्टी और प्रत्याशियों से प्रचार ठेका हासिल करने के लिए विज्ञापन एजेंसियां एक से बढ़कर एक प्रेजेंटेशन दे रही हैं। साथ ही पार्टियों के लिए विशेष पैकेज भी दिया जा रहा है। इन पैकेजों में दस लोकसभा सीटों पर प्रचार का ठेका देने पर दो सीटों पर प्रचार मुफ्त जैसे लुभावने ऑफर भी शमिल हैं।
कांग्रेस के प्रचार का ठेका हासिल करने वाली विज्ञापन कंपनी के्रयांस के मीडिया प्रमुख यशपाल का कहना है कि ‘मंदी के दौर में लोकसभा चुनाव निश्चित तौर पर बाजार को मजबूती देंगे। विज्ञापन एंजेसियों के लिए यह एक बेहद अच्छा मौका है। एंजेसियां भी इसके लिए पूरी तरह से तैयार है।’
होंडा और पैनासॉनिक का विज्ञापन करने वाली विज्ञापन कंपनी मुंबई की एजेंसी एवरेस्ट के उपाध्यक्ष आशीष भी यशपाल की बातों से पूरी तरह से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं, ‘ये चुनाव पस्त पड़े बाजार के लिए एक बेहतरीन मौका हैं। हम किस तरह से पार्टियों का प्रचार करेंगे, इसका ब्यौरा मैं अभी नहीं दे सकता।’
एक बड़ी विज्ञापन एंजेसी के बड़े अधिकारी कंपनी का जिक्र न करने की शर्त पर बताते है कि ‘बड़ी पार्टियों के प्रचार का ठेका हमारे हाथ से निकल जाने के बाद हम क्षेत्रीय पार्टियों को तो लक्ष्य कर ही रहें है। इसके अलावा हमारी योजना लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों को व्यक्तिगत तौर पर प्रचार सेवा मुहैया करवाने की है। हां, इस काम का दायरा छोटा जरूर है लेकिन, यह भी अपने आप में काफी बड़ा बाजार है और इसे हम हाथ से निकलने नहीं देना चाहते।’
दूसरी ओर प्रचार की अहमियत समझते हुए सपा, टीडीपी, डीएमके, एडीएमके और चिंरजीवी की नई बनी पार्टी  प्रजा राज्यम पार्टी जैसी पार्टियां भी विज्ञापन एंजेसियों की शरण में ही जाने की योजना बना रही है। लेकिन इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकारने से बच रही हैं।
इस बाबत सपा के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी बताते है कि ‘सपा अपने प्रचार के लिए किसी भी विज्ञापन एंजेसी से जुड़ने की योजना नहीं बना रही है। हमारा प्रचार का तरीका पहले की ही तरह भाषण, संगोष्ठी और रैलियां ही रहेंगी। हां, इन्हें हाईटेक करने के लिए हम कुछ तकनीक प्रयोग जरुर कर सकते है।’
मंदी में इंडिया इंक से निराश है विज्ञापन उद्योग
लोकसभा चुनावों से दिखी उम्मीद की किरण
कारोबार में 40 से 45 फीसदी के इजाफे की उम्मीद
कारोबार की आस में कंपनियां दे रही हैं कई?पैकेज
प्रत्याशियों का व्यक्तिगत प्रचार करने की भी है योजना
क्षेत्रीय पार्टियों को भी दिखने लगी इन विज्ञापन एजेंसियों की राह

First Published - March 12, 2009 | 11:10 AM IST

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