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Interview: सरकार गठन के बाद नई परियोजनाओं में आएगी तेजी, L&T के प्रेसिडेंट ने बताया आगे का प्लान

'भारतीय कारोबार का मार्जिन बेहतर है और हमारी ऑर्डर बुक में विदेशी ठेके की हिस्सेदारी 40 फीसदी है, जहां वास्तविक मार्जिन 1 या 2 प्रतिशत अंक कम है।'

Last Updated- May 09, 2024 | 10:56 PM IST
New projects to pick up pace with govt formation: Larsen & Toubro President Interview: सरकार गठन के बाद नई परियोजनाओं में आएगी तेजी, L&T के प्रेसिडेंट आर शंकर रमन ने बताया आगे का प्लान
Larsen & Toubro President R Shankar Raman

लार्सन ऐंड टुब्रो का मुनाफा बीते वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में 10 फीसदी बढ़ा और मार्जिन में मामूली कमी आई। इसकी वजह से कंपनी का शेयर गुरुवार को 6 फीसदी टूट गया। गुरुवार को एलऐंडटी के प्रेसिडेंट पद की भी जिम्मेदारी संभालने वाले पूर्णकालिक निदेशक और सीएफओ आर शंकर रमन ने देव चटर्जी को आगे की तस्वीर और संप​त्ति बिक्री की योजना के बारे में बताया। मुख्य अंश :

क्या एलऐंडटी के नतीजों पर निवेशकों की प्रतिक्रिया देखकर आपको हैरानी हुई क्योंकि कंपनी के शेयर में आज तेज गिरावट आई है?

मुझे लगता है कि बाजार कुछ आंकड़ों जैसे मार्जिन में घट-बढ़ पर दूरअंदेशी नहीं बरत पाता और ट्रेडिंग पोजिशन लेते समय दूसरी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता। मुझे पूरा विश्वास है कि जब लोग हमारी कोशिश के पीछे का मकसद समझ जाएंगे तो शेयर भाव बढ़ जाएगा। निवेशक पिछली तिमाही में मार्जिन 8.6 फीसदी से घटकर 8.2 फीसदी रहने पर घबराए हैं और इसकी वजह क्षमता की कमी या होड़ में बने रहने की कुव्वत घटना बताई जा रही है, जो सही नहीं है। मैं निवेशकों से कह रहा हूं कि मूल्य सृजन हमारा काम है।

भारतीय कारोबार का मार्जिन बेहतर है और हमारी ऑर्डर बुक में विदेशी ठेके की हिस्सेदारी 40 फीसदी है, जहां वास्तविक मार्जिन 1 या 2 प्रतिशत अंक कम है। मगर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में नकदी की आवक और ठेकों की शर्तें बेहतरी हैं। इससे हमें पूंजी का लाभ मिल रहा है और हमारा पूंजी निवेश पर रिटर्न इस दौरान 200 आधार अंक से ज्यादा बढ़ा है।

अगले महीने नई सरकार का गठन होने की उम्मीद है। क्या आपको लगता है कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में तेजी आएगी?

बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने तंत्र को जीवंत बनाया है और ये बड़ी मात्रा में विदेशी तकनीक और पूंजी लाई हैं। कई परियोजनाएं सालों तक चलने वाली हैं और सरकार को प्रारं​भिक इ​क्विटी के रूप में अपने पास से रकम देनी थी। इन परियोजनाओं ने एक व्यवस्था तैयार कर दी है, जिसके तहत सरकारी खजाने में वस्तु एवं सेवा कर तथा प्रत्यक्ष कर के जरिये कर संग्रह में योगदान हो रहा है।

कर संग्रह बढ़ने से ही सरकार खर्च और सामाजिक दायित्व पूरे कर सकी है। अगर हमें चीन+1 नीति का लाभ उठाना है तो व्यापक बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी। बुनियादी ढांचे से भारत की आयात पर निर्भरता भी थोड़ी कम होगी। बुनियादी ढांचे पर निवेश की सरकार की योजना का लाभ भी मिल रहा है। अगर मौजूदा सरकार दोबारा सत्ता में आती है तो मुझे पूरा भरोसा है कि बुनियादी ढांचे के लिए आवंटन में तेजी बनी रहेगी।

बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कर्ज के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रोविज​न बढ़ाए जाने से परियोजना विकास पर कितना असर पड़ेगा?

परियोजनाओं को कर्ज देते समय बैंक बहुत जांच-परख करते हैं। बैंक उधारी-जो​खिम लेने वाले कारोबार में हैं। मुझे नहीं लगता कि शून्य जोखिम वाली उधारी जैसा कुछ होता है क्योंकि हर तरह के ऋण में जो​खिम होता है और भी इसे समझते हैं। सच तो यह है कि बैंक कर्ज के मामले में सही फैसला लेकर ही कमाई करते हैं। ऐसे में उन्हें जो​खिम कम करने पर ध्यान देना चाहिए न कि जोखिम से दूर रहने पर। मेरा मानना है कि बैंक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को कर्ज देना जारी रखेंगे मगर वे इसकी उम्मीद कर सकते हैं कि प्रवर्तक अपनी तरलता प्रद​र्शित करे।

कई परियोजनाएं इसलिए नहीं अटकीं कि प्रवर्तकों के पास इ​क्विटी नहीं थी या बैंकों से कर्ज नहीं मिला। मंजूरियां और अन्य औपचारिकताएं मिलने में लंबा समय लगने से परियोजना की लागत बढ़ गई और उसकी व्यवहार्यता प्रभावित हुई।

हैदराबाद मेट्रो और नाभा पावर जैसी संपत्तियों की बिक्री का मामला कहां तक पहुंचा? कब तक बिकने की उम्मीद है?

हमारे पास केवल दो कन्शेसनरी संपत्तियां – हैदराबाद मेट्रो और नाभा पावर प्रोजेक्ट्स हैं। इन दोनों को छोड़कर बाकी सभी परियोजनाएं हमारे मुख्य कारोबार के दायरे में आती हैं, इसलिए उनका विनिवेश करने का हमारा कोई इरादा नहीं है। नाभा पावर 85 फीसदी क्षमता के साथ काम कर रही है और उसकी आय 4,000 करोड़ रुपये तथा मुनाफा 400 करोड़ रुपये है। यह कोयले से बिजली बनाती है, इसलिए इसके खरीदार कम हैं क्योंकि अब हर कोई हरित ऊर्जा परियोजनाओं का विकल्प तलाश रहा है और हम इसे औने-पौने दाम में नहीं बेचना चाहते।

हैदराबाद मेट्रो में हमने 20,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है। सरकार ने 3,000 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है और हमने कुछ पैसे निकाले हैं। बाकी निवेश निकालना है। मेट्रो लाइन से जुड़ी रियल एस्टेट का भी मुद्रीकरण करना है। अभी रोज 4.6 लाख यात्री इसमें सफर करते हैं और हमें रोज कम से कम 1 लाख यात्री और चाहिए।

हमें निवेशक मिलने की पूरी उम्मीद है क्योंकि 65 साल का कन्शेसन पाना आसान नहीं होता है। 15 से 20 साल में कर्ज चुकाने के बाद 40 साल तक इससे पूरी कमाई होगी। यह परियोजना 2026 तक बिक जाने की उम्मीद है।

First Published - May 9, 2024 | 10:56 PM IST

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