सुरक्षा शुल्क लगाए जाने के अनुमान के बीच पिछले कुछ महीनों में घरेलू स्टील की कीमतों में वृद्धि देखी गई है, लेकिन वैश्विक व्यापार युद्ध के खतरे के बढ़ने से आयात में वृदि्ध और निर्यात घटने का जोखिम बना हुआ है। बिगमिंट के आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2025 में हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) की मुंबई में कीमत फरवरी के 48,400 रुपये प्रति टन से 600 रुपये बढ़कर 49,000 रुपये प्रति टन हो गई है। जनवरी में मासिक औसत कीमत 47,000 रुपये प्रति टन थी।
बहरहाल सालाना आधार पर एचआरसी की कीमत लगातार वित्त वर्ष2024 की तुलना में कम बनी हुई है। एचआरसी को ही फ्लैट स्टील का मानक माना जाता है। लंबे स्टील रीबार यानी सरिया की कीमत में भी उतार-चढ़ाव देखा गया। वित्त वर्ष 2025 में कुछ महीनों में इसकी कीमत अधिक थी और अन्य कुछ महीनों में वित्त वर्ष 2024 की तुलना में कम थी।
बिगमिंट के मुताबिक मार्च 2024 में मासिक आधार पर इसकी कीमत में 1,600 रुपये प्रति टन की वृद्धि हुई है, जिससे कीमत फरवरी के 52,800 रुपये से बढ़कर 54,400 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई है। भारत में ज्यादातर आयात फ्लैट स्टील सेग्मेंट में होता है। यह माना जा रहा है कि अमेरिका द्वारा 12 मार्च, 2025 से 25 फीसदी शुल्क लगाए जाने से व्यापार में बदलाव होगा और भारत में आयात बढ़ेगा, जिससे कीमतों पर दबाव पड़ेगा।
क्रिसिल इंटेलिजेंस में डायरेक्टर-रिसर्च सेहुल भट्ट ने कहा कि इस कदम से भारत के व्यापारिक साझेदारों को निर्यात कम हो जाएगा, क्योंकि वहां स्थानीय उत्पादन बढ़ेगा। लेकिन भारत पर इसका वास्तव में कोई खास असर पड़ने की संभावना नहीं है क्योंकि इस वित्त वर्ष के पहले 9 महीने में इसके कुल तैयार स्टील में सिर्फ 2 फीसदी निर्यात ही अमेरिका को हुआ है।
बहरहाल उन्होंने कहा कि बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच निर्यातक आक्रामक दाम पर माल अन्य आयातक देशों को भेजेंगे। उन्होंने कहा, ‘इसकी वजह से भारत में स्टील की कीमत नीचे आ सकती हैं, जो पहले ही 4 साल के निचले स्तर पर चल रही है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत सरकार घरेलू क्षमता को समर्थन देने के लिए सुरक्षा शुल्क लगाने के कदम उठा सकती है। इसके लिए समय और मात्रा महत्त्वपूर्ण होगी।’
मंगलवार को फिच रेटिंग ने कहा कि चीन से सस्ते स्टील की आपूर्ति और कुछ अर्थव्यवस्थाओं की आक्रामक शुल्क नीति के कारण मार्च 2026 को समाप्त वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2026) में घरेलू स्टील की कीमतों पर दबाव पड़ेगा। इस अनुमान के कारण फिच ने जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड (बीबी/स्थिर) और टाटा स्टील लिमिटेड (बीबीबी माइनस/ऋणात्मक) की रेटिंग हेडरूम घटा दी है, यानी आगे किसी नेगेटिव खबर से रेटिंग घटाने से बचा नहीं जा सकता।
फिच को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 में जेएसडब्ल्यू स्टील और टाटा स्टील के लिए एबिटा लीवरेज क्रमशः 3.7 गुना और 3.0 गुना की नकारात्मक संवेदनशीलता को तोड़ेगा और मार्जिन पर दबाव के बीच वित्त वर्ष 2026 में नीचे रहने की गुंजाइश कम रहेगी। हालांकि, रेटिंग एजेंसी को वित्त वर्ष 2026 में घरेलू मांग में टिकाऊ वृद्धि, प्रमुख इनपुट जैसे लौह अयस्क और कोकिंग कोल की कीमतों में कमी, चीन द्वारा स्टील की उत्पादन क्षमता घटाने और उसके आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहन के कारण एबिटा मार्जिन में कुछ सुधार की उम्मीद है।
जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी जयंत आचार्य ने कहा कि घरेलू स्टील कंपनियां दोहरी मार झेल रही हैं क्योंकि स्टील का निर्यात गिरा है, जबकि आयात बढ़ा है। उन्होंने कहा, ‘विभिन्न देशों में तेजी से बदलती नीतियों और शुल्क संबंधी कार्रवाइयों के कारण भारत में स्टील के आयात का खतरा बढ़ सकता है।’निर्यात घटने के बीच भारतीय स्टील के निर्यात के एक शीर्ष केंद्र यूरोपीय संघ ने डब्ल्यूटीओ में प्रस्तावित बदलाव को अधिसूचित किया है, जिसकी वजह से 1 अप्रैल से कुल शुल्क मुक्त एचआरसी में कमी आएगी। भारतीय स्टील की एचआर शीट्स के लिए शुल्क मुक्त कोटा 25 प्रतिशत घटेगा।
आर्सेलर मित्तल निप्पोन स्टील इंडिया (एएम-एनएस इंडिया) के डायरेक्टर और सेल्स व मार्केटिंग के वाइस प्रेसीडेंट रंजन धर ने कहा कि अगर देश में सुरक्षा शुल्क लगाया जाता है और मांग में 7 से 8 फीसदी वृद्धि जारी रहती है तो एचआरसी के निर्यात की जरूरत सीमित रहेगी। खबरों के मुताबिक शुरुआती जांच के बाद डायरेक्टरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज (डीजीटीआर) ने चुनिंदा सामान पर 12 से 15 फीसदी सुरक्षा शुल्क लगाने की सिफारिश की है। बाजार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि सुरक्षा शुल्क के अनुमान के कारण आयात बुकिंग नीचे आई है, जिससे कीमतों को समर्थन मिला है।