Policy for India-made ships: केंद्र सरकार देश में स्वदेशी जहाज निर्माण की नीति बनाने पर विचार कर रही है। बिज़नेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के अनुसार इस नीति के तहत 2030 से तटीय और अंतर्देशीय जलमार्गों पर परिचालन के लिए केवल भारत में बने जहाजों के पंजीकरण की अनुमति दी जाएगी।
इस मामले से जुड़े अधिकारियों और उद्योग के अधिकारियों के मुताबिक नई दिल्ली में 4 जुलाई को भारत के जहाज निर्माण उद्योग (Indian Ship Building Industry) में नई जान फूंकने के मसले पर जहाजरानी व जलमार्ग मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में यह प्रस्ताव सामने आया। इसके अलावा भी कई मसलों पर इसमें विचार किया गया।
यह सिफारिश KPMG द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज में शामिल थी, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक शिपबिल्डिंग में भारत का बीसवां स्थान है और इसकी वैश्विक शिपबिल्डिंग में हिस्सेदारी महज 0.06 प्रतिशत है।
इस सत्र में सरकारी अधिकारियों ने घरेलू शिपबिल्डिंग और शिपऑनिंग की जरूरत पर जोर दिया। कार्यशाला में केंद्रीय नौवहन सचिव टीके रामचंद्रन ने कहा, ‘बंदरगाह के आधारभूत ढांचे और अंतर्देशीय जलमार्ग के क्षेत्र की कवायदों और प्रगति के बावजूद हम विदेशी जहाजों पर निर्भर बने हुए हैं। हमें अभी भी वैश्विक शिपबिल्डिंग मार्केट में उल्लेखनीय हिस्सेदारी हासिल करना है।’
उन्होंने कहा, ‘ इसे देखते हुए मंत्रालय अब जहाजों के निर्माण और उनकी मरम्मत पर ध्यान बढ़ा रहा है, जिससे एमआईवी 2030 और मैरीटाइम अमृतकाल विजन 2047 का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य पूरा किया जा सके। इस कार्यशाला के माध्यम से मंत्रालय का लक्ष्य हितधारकों के इनपुट के आधार पर विशिष्ट नीतियां लाना और इस क्षेत्र की क्षमता में वृद्धि के लिए कीमती योगदान हासिल करना है।’
अधिकारियों का कहना है कि इस सत्र में सरकारी एजेंसियों व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की भारत निर्मित जहाजों की मांग पूरा करने, ऋण संबंधी प्रोत्साहन, मशीनरी के आयात पर कर छूट और नए शिपयार्ड की स्थापना के लिए जरूरी पूंजीगत व्यय आसान बनाने संबंधी सिफारिशों पर भी चर्चा हुई।
मंत्रालय की ओर से 4 जुलाई को जारी एक बयान में कहा गया है कि मंत्रालय 100 दिन की कार्ययोजना के तहत जहाज निर्माण एवं जहाज मरम्मत नीति जल्द ही पेश करेगी। केंद्र सरकार ने 2047 तक भारत को जहाज निर्माण वाले 5 देशों में शामिल करने का लक्ष्य रखा है।
कार्यशाला में शामिल उद्योग के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि प्रस्ताव सैद्धांतिक स्तर पर बनाया गया है और इससे संबंधित हिस्सेदारों ने इस मसले पर सरकार से और स्पष्टता व विस्तृत ब्योरे की अपेक्षा की है।
कार्यशाला में शामिल रहे उद्योग से जुड़े मुंबई के एक अधिकारी ने कहा, ‘सरकार एक तरफ तो तटीय परिचालन में विदेशी जहाजों को अनुमति देने के लिए नियमों में ढील देने पर विचार कर रही है, वहीं वह 2030 तक अनिवार्य रूप से केवल स्वदेश निर्मित जहाजों को ही रखने के विकल्प पर विचार कर रही है। हम इस प्रस्ताव के तकनीकी पहलुओं पर आगे और स्पष्टता का इंतजार कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि यह योजना जल्दबाजी में बनाई हुई लगती है। खबर छापे जाने तक इस मसले पर बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय की ओर से कोई जवाब नहीं मिल सका।
इसके पहले भी मंत्रालय शिपबिल्डिंग फाइनैंशियल असिस्टेंट पॉलिसी, राइट आफ फर्स्ट रिफ्यूजल (आरओएफआर) पॉलिसी, बुनियादी ढांचे का दर्जा देने आदि जैसी कई योजनाएं ला चुका है। इन कदमों के बावजूद भारत में वाणिज्यिक जहाजों का निर्माण अभी भी ऐसी स्थिति में नहीं पहुंचा है कि उसका मुकाबला वैश्विक शिपबिल्डिंग दिग्गजों से किया जा सके।