प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में “मेक इन इंडिया” नीति की घोषणा की थी, जिसका मकसद भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करना था। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में सफलता मिली है, जैसे मोबाइल फोन निर्माण में, लेकिन बड़े पैमाने पर यह प्रयास उम्मीदों के मुताबिक कामयाब नहीं हो पाए हैं।
2001 से 2012 के बीच भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की विकास दर 8.1 प्रतिशत थी, लेकिन 2013 के बाद, जब मोदी सत्ता में आए, यह घटकर 5.5 प्रतिशत रह गई। भारत के जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा लगभग 15 प्रतिशत पर स्थिर है।
एक बड़ी समस्या यह है कि भारतीय निर्माता निर्यात पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। 2012-13 में, बिक्री का 20 प्रतिशत हिस्सा निर्यात से आता था, जबकि पिछले साल यह घटकर 7 प्रतिशत से कम हो गया। अगर मोबाइल फोन निर्यात में तेजी न होती, तो यह आंकड़ा और भी खराब होता।
एप्पल का बड़ा योगदान, लेकिन बाकी क्षेत्र पीछे
एप्पल “मेक इन इंडिया” के तहत अपनी सप्लाई चेन का एक बड़ा हिस्सा भारत में लाया, जिसमें फॉक्सकॉन जैसी कंपनियों ने निवेश किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अब मोबाइल फोन अमेरिका को भारत का सबसे बड़ा निर्यात बन गया है, जबकि एक साल पहले यह निर्यात लिस्ट में चौथे स्थान पर था।
जब कंपनियां निर्यात पर ध्यान देती हैं, तो पूरा सेक्टर बढ़ता है। ऑटोमोटिव पार्ट्स जैसे उद्योग भी इसी वजह से सफल रहे हैं, क्योंकि उनका फोकस वैश्विक बाजारों पर रहा है। लेकिन बाकी निजी क्षेत्र इस दिशा में नहीं बढ़ रहे हैं। सरकार ने कंपनियों का ध्यान घरेलू बाजार और आयात में कमी पर केंद्रित किया है, जिससे निर्यात पर ध्यान कम हो गया है।
क्या करना चाहिए सरकार को?
सरकार को ज्यादा टैरिफ, सब्सिडी और व्यापार पर लगाई गई बाधाओं का समर्थन करने के बजाय उनका विरोध करना चाहिए। भारत जैसे विकासशील देश को निर्यात बढ़ाने के लिए आक्रामक नीतियों पर काम करना चाहिए। इसके साथ ही, लॉजिस्टिक्स सेक्टर में सुधार के वादों को भी पूरा करना जरूरी है। बंदरगाहों पर बेवजह की कागजी कार्रवाई (लालफीताशाही) को कम करना होगा और प्रबंधन को अधिक आधुनिक और प्रभावी बनाना होगा।
निर्यात के लिए नई दिशा जरूरी
सरकार को उन कंपनियों का समर्थन करना चाहिए, खासकर मध्यम आकार की, जो नए बाजारों में प्रवेश करना चाहती हैं। शोध से पता चला है कि भारतीय कंपनियां फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट्स का तब तक फायदा नहीं उठातीं, जब तक उन्हें सरकार से मदद न मिले।
मेक इन इंडिया को अब एक नई दिशा की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी ने लंबे समय तक घरेलू बाजार पर जोर दिया है, लेकिन अब समय आ गया है कि वे निर्माताओं को वैश्विक बाजारों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें, ताकि भारत की विकास दर को तेज किया जा सके।
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