राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के निदेशक अभय बाकरे ने मंगलवार को कहा कि भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत 2032 और 2035 के बीच ब्राउन हाइड्रोजन के बराबर यानी लगभग 2 डॉलर प्रति किलो रह जाएगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए स्टील जैसे मुश्किल क्षेत्रों में ग्रीन हाइड्रोजन के इस्तेमाल की समस्याएं सुलझानी होंगी।
नई दिल्ली में उद्योग के कार्यक्रम में बोलते हुए बाकरे ने कहा, ‘जिस तरह से हम आगे बढ़ रहे हैं, मुझे यकीन है कि ग्रीन हाइड्रोजन की लागत भी कम होती रहेगी और 2032 या 2035 तक यह किसी भी अन्य हाइड्रोजन जैसे ब्राउन हाइड्रोजन के बराबर रह जाएगी। इससे स्टील क्षेत्र के डीकार्बनाइजेशन के लिए सबसे अच्छा विकल्प तैयार होगा।’
उन्होंने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन की लागत और किफायत को इस क्षेत्र की समस्याओं के साथ देखने की जरूरत है, जिसमें उच्च जोखिम, दीर्घकालिक ऑफटेक की कमी और प्रभावी नीतियों की कमी शामिल है। हमने सौर ऊर्जा की कीमतों में क्रांतिकारी कमी देखी है,जिसकी लागत घटकर 2 रुपये प्रति यूनिट पर आ गई है।
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दरअसल परिजोनाओं में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ और लंबे समय के लिए धन की सुविधा उपलब्ध हो पाई। साथ ही नीतियां सरल बनीं और कनेक्टिविटी संबंधी मसलों का भी समाधान हुआ।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का लक्ष्य 2030 तक 50 लाख टन उत्पादन क्षमता के साथ भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए वैश्विक केंद्र बनाना है। ग्रीन हाइड्रोजन को भारी उद्योगों, स्टील और रिफाइनरियों जैसे क्षेत्रों में डीकार्बनाइजेशन की समस्या से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण समाधान के रूप में देखा जा रहा है।