भारत के कपड़ा कारोबारी इन दिनों काफी उत्साहित हैं। वजह है 21 नवंबर 2025 से लागू हुए चार नए लेबर कोड। इन कानूनों से उन्हें लग रहा है कि अब यूरोप और अमेरिका जैसे बड़े बाजारों से ज्यादा ऑर्डर मिल सकेंगे। खासकर यूरोप के नए कॉर्पोरेट सस्टेनेबिलिटी ड्यू डिलिजेंस डायरेक्टिव (CSDDD) के नियमों का पालन आसान हो जाएगा।
लॉयल टेक्सटाइल मिल्स के डायरेक्टर ME मानिवन्नन कहते हैं, “ये नए कोड हमें सोशल अकाउंटेबिलिटी के मामले में मजबूत बनाएंगे। यूरोप ने साफ कह दिया है कि CSDDD का पालन न करने वाले देशों का माल वहां नहीं बिकेगा। अब जब भारत-यूरोप और भारत-अमेरिका के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) की बात चल रही है, ये कानून हमें बड़ा फायदा पहुंचा सकते हैं।”
पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 36.55 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात किया था, जो उससे पहले साल के 34.40 अरब डॉलर से ज्यादा था। कारोबारी मानते हैं कि नए कानूनों के बाद ये आंकड़ा और ऊपर जा सकता है। बांग्लादेश जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों के मुकाबले भारत को बढ़त मिल सकती है।
नए नियमों में हर मजदूर को लिखित नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य है। PF, EMI, बीमा और दूसरी सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं सभी को मिलेंगी। न्यूनतम मजदूरी का कानूनी हक, हर साल मुफ्त स्वास्थ्य जांच और महिलाओं को रात की शिफ्ट में काम करने की इजाजत जैसे प्रावधान भी शामिल हैं।
केंद्र सरकार ने 29 पुराने श्रम कानूनों को समेटकर चार नए कोड बनाए हैं:
दिल्ली की TT लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय जैन कहते हैं, “इतने सारे कानूनों को चार में समेटने से कंप्लायंस आसान हो गया है। पहले कागजी काम में ही जान चली जाती थी। अब नियम समझना और मानना दोनों सरल हो गए हैं।”
कपड़ा मिलों वाले लंबे समय से सरकार से एक ही कोड बनाने की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि इससे दुनिया में सोशल अकाउंटेबिलिटी के मामले में भारत आगे निकल सकता है।
हालांकि सब कुछ इतना आसान भी नहीं है। कई उद्योग संगठन चिंता जता रहे हैं कि कई राज्य सरकारें अभी तक अपने नियम नहीं बना पाई हैं। तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन के चीफ एडवाइजर के वेंकटचलम ने कहा, “जब तक राज्य अपने नियम अधिसूचित नहीं करेंगे, जमीन पर कुछ खास नहीं बदलेगा। कोड तो बन गए, लेकिन उनका असर तभी दिखेगा जब राज्य भी आगे बढ़ें।”
फिर भी कारोबारी इस बात को लेकर आशावादी हैं कि आने वाले दिनों में राज्य भी जल्दी नियम बना लेंगे। उनका मानना है कि आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए मजदूरों का भला और कारोबार की आसानी दोनों जरूरी हैं, और ये नए कानून उसी दिशा में बड़ा कदम हैं।