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नए लेबर कोड से कपड़ा उद्योग की बढ़ेगी ताकत! CSDDD कंप्लायंस होगा आसान और ऑर्डर में आ सकता है उछाल

कपड़ा उद्योग का कहना है कि नए लेबर कोड से ड्यू डिलिजेंस नियमों का पालन आसान होगा और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी

Last Updated- November 23, 2025 | 7:45 PM IST
textiles industry
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

भारत के कपड़ा कारोबारी इन दिनों काफी उत्साहित हैं। वजह है 21 नवंबर 2025 से लागू हुए चार नए लेबर कोड। इन कानूनों से उन्हें लग रहा है कि अब यूरोप और अमेरिका जैसे बड़े बाजारों से ज्यादा ऑर्डर मिल सकेंगे। खासकर यूरोप के नए कॉर्पोरेट सस्टेनेबिलिटी ड्यू डिलिजेंस डायरेक्टिव (CSDDD) के नियमों का पालन आसान हो जाएगा।

लॉयल टेक्सटाइल मिल्स के डायरेक्टर ME मानिवन्नन कहते हैं, “ये नए कोड हमें सोशल अकाउंटेबिलिटी के मामले में मजबूत बनाएंगे। यूरोप ने साफ कह दिया है कि CSDDD का पालन न करने वाले देशों का माल वहां नहीं बिकेगा। अब जब भारत-यूरोप और भारत-अमेरिका के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) की बात चल रही है, ये कानून हमें बड़ा फायदा पहुंचा सकते हैं।”

निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद

पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 36.55 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात किया था, जो उससे पहले साल के 34.40 अरब डॉलर से ज्यादा था। कारोबारी मानते हैं कि नए कानूनों के बाद ये आंकड़ा और ऊपर जा सकता है। बांग्लादेश जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों के मुकाबले भारत को बढ़त मिल सकती है।

नए नियमों में हर मजदूर को लिखित नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य है। PF, EMI, बीमा और दूसरी सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं सभी को मिलेंगी। न्यूनतम मजदूरी का कानूनी हक, हर साल मुफ्त स्वास्थ्य जांच और महिलाओं को रात की शिफ्ट में काम करने की इजाजत जैसे प्रावधान भी शामिल हैं।

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29 पुराने कानूनों की जगह चार नए कोड

केंद्र सरकार ने 29 पुराने श्रम कानूनों को समेटकर चार नए कोड बनाए हैं:

  • वेज कोड 2019
  • इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020
  • सोशल सिक्योरिटी कोड 2020
  • ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2020

दिल्ली की TT लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय जैन कहते हैं, “इतने सारे कानूनों को चार में समेटने से कंप्लायंस आसान हो गया है। पहले कागजी काम में ही जान चली जाती थी। अब नियम समझना और मानना दोनों सरल हो गए हैं।”

कपड़ा मिलों वाले लंबे समय से सरकार से एक ही कोड बनाने की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि इससे दुनिया में सोशल अकाउंटेबिलिटी के मामले में भारत आगे निकल सकता है।

राज्यों पर निर्भर है असली अमल

हालांकि सब कुछ इतना आसान भी नहीं है। कई उद्योग संगठन चिंता जता रहे हैं कि कई राज्य सरकारें अभी तक अपने नियम नहीं बना पाई हैं। तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन के चीफ एडवाइजर के वेंकटचलम ने कहा, “जब तक राज्य अपने नियम अधिसूचित नहीं करेंगे, जमीन पर कुछ खास नहीं बदलेगा। कोड तो बन गए, लेकिन उनका असर तभी दिखेगा जब राज्य भी आगे बढ़ें।”

फिर भी कारोबारी इस बात को लेकर आशावादी हैं कि आने वाले दिनों में राज्य भी जल्दी नियम बना लेंगे। उनका मानना है कि आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए मजदूरों का भला और कारोबार की आसानी दोनों जरूरी हैं, और ये नए कानून उसी दिशा में बड़ा कदम हैं।

First Published - November 23, 2025 | 7:45 PM IST

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