उच्चतम न्यायालय के पोस्ट-फैक्टो यानी परियोजना शुरू अथवा पूरी होने के बाद पर्यावरण मंजूरी को प्रतिबंधित करने का फैसला पटलने को कानून विशेषज्ञों ने उचित बताया है। उनका मानना है कि इससे रियल एस्टेट, बुनियादी ढांचा, सार्वजनिक उपक्रमों की बड़ी परियोजनाओं और खनन क्षेत्र को बड़ी राहत मिलेगी।
कानून फर्म एसकेवी लॉ ऑफिसेस में पार्टनर आशुतोष के श्रीवास्तव ने इसे महत्त्वपूर्ण कदम बताते हुए कहा कि इससे 2017 और 2021 की सरकारी अधिसूचनाएं पुन: प्रभावी हो गई हैं, जो पूर्वव्यापी पर्यावरण मंजूरी की अनुमति देती थीं। उन्होंने कहा, ‘जिन परियोजनाओं पर निकट भविष्य में संकट के बादल छाए थे, वे अब दोबारा अपने आप आगे बढ़ सकती हैं।’ उन्होंने कहा कि रियल एस्टेट और निर्माण परियोजनाओं आदि पर इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। श्रीवास्तव ने कहा कि एम्स अस्पतालों और ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों सहित प्रमुख सार्वजनिक इन्फ्रा को इससे काफी फायदा होगा।
कानून फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर रामानुज कुमार ने कहा, ‘सर्वोच्च अदालत ने विकास और पर्यावरणीय अनिवार्यता के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया है।’ कानून फर्म चितले ऐंड चितले पार्टनर्स की मैनेजिंग पार्टनर सुचित्रा चितले ने व्यावहारिक आधार पर इस कदम का समर्थन किया। उन्होंने कहा, ‘जो पहले से बना है, उसे ध्वस्त करने से निर्माण की तुलना में प्रदूषण अधिक होगा। वैसे योजना अधिकारियों को अब भविष्य में नियमों के उल्लंघन पर दंड का प्रावधान करना चाहिए।’