मुंबई में शुरू हुए Global Fintech Fest 2025 में इस बार चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)। इस बार की थीम है ‘Empowering Finance for a Better World Powered by AI’ यानी AI के जरिए सबके लिए आसान और बेहतर वित्तीय दुनिया बनाना। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फेस्ट का उद्घाटन किया, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर भी इसमें शामिल हुए। पीएम मोदी ने कहा, “भारत आज दुनिया के सबसे तकनीकी रूप से समावेशी समाजों में से एक है, इसका कारण पिछले दशक में तकनीक का लोकतंत्रीकरण है।”
पीएम मोदी के तकनीक के लोकतंत्रीकरण के बयान के बीच चर्चा इस बात की भी हो रही कि AI की दुनिया में छोटे फिनटेक्स और बैंक अब भी पिछड़ क्यों रहे हैं? इसको लेकर हमने कुछ दिग्गजों से बातचीत की, तो आइए जानते हैं।
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AI अब पेमेंट्स, लोन अप्रूवल, फ्रॉड डिटेक्शन और कस्टमर सर्विस तक पहुंच चुका है। फिर भी, छोटे फिनटेक्स और बैंकों के लिए इसे अपनाना आसान नहीं है।
Roinet Solutions के एमडी समीर माथुर कहते हैं, “AI केवल तकनीक नहीं, समावेशन की कहानी है। लेकिन छोटे फिनटेक्स को तीन बड़ी मुश्किलें हैं- टैलेंट की कमी, ज्यादा लागत, और कमजोर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर।” उनका कहना है कि छोटे प्लेयर AI मॉडल विकसित या ट्रेन नहीं कर पाते क्योंकि उनके पास डेटा, सर्वर और विशेषज्ञ इंजीनियर नहीं होते।
वे कहते हैं, “अगर NPCI की डिजिटल रेल, ओपन-सोर्स AI और लोकल इनोवेशन साथ आएं, तो गांव का बैंक भी शहर जैसा अनुभव दे सकता है।”
Petonic AI के सह-संस्थापक यशराज भारद्वाज के अनुसार, “NPCI की पहलें जैसे स्मार्ट UPI लेयर और AI-आधारित फ्रॉड डिटेक्शन शानदार हैं, लेकिन छोटे फिनटेक्स के पास इन्हें अपनाने के लिए जरूरी तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर और डेटा एक्सेस नहीं है।” वे कहते हैं कि बड़े बैंक महंगे AI इंजन चला सकते हैं, लेकिन छोटे स्टार्टअप API और सैंडबॉक्स मॉडल पर निर्भर हैं जो अभी विकसित हो रहे हैं।
वे कहते हैं, “AI अपनाने में समस्या इच्छा की नहीं, संसाधनों की है। कई Fintech अब भी KYC, कंप्लायंस और ग्रामीण ग्राहकों का भरोसा जीतने जैसी बुनियादी चुनौतियों में उलझे हैं।”
भारद्वाज का मानना है कि अगर भारत को सच में “AI for Bharat” बनाना है, तो AI इंफ्रास्ट्रक्चर सस्ता, साझा और सभी के लिए खुला होना चाहिए।
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Satin Creditcare के सीआईओ सुनील यादव बताते हैं कि NPCI की UPI Lite और UPI for Her जैसी पहलें सही दिशा में हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इनका असर सीमित है। यादव कहते हैं, “AI समाधान चलाने के लिए वहां डिजिटल साक्षरता, भरोसे, और नेटवर्क स्थिरता की जरूरत है। अभी ये तीनों कमजोर हैं।” उनका मानना है कि AI से सेवाएं तो बेहतर होंगी, लेकिन अगर एल्गोरिद्म सही तरीके से ट्रेन न किए गए तो क्रेडिट स्कोरिंग और लोन अप्रूवल में पक्षपात (bias) का खतरा बढ़ सकता है।
वे चेतावनी देते हैं, “AI का फायदा तभी है जब यह सभी के लिए पारदर्शी और भरोसेमंद बने।”
तीनों विशेषज्ञ एक बात पर सहमत हैं – AI को लोकतांत्रिक बनाने का रास्ता सहयोग से ही निकलेगा। NPCI, बैंक, फिनटेक, और रेगुलेटर्स को मिलकर AI के साझा डेटा नेटवर्क और सरल इंटीग्रेशन फ्रेमवर्क पर काम करना होगा। समीर माथुर कहते हैं, “जब बिहार का किसान, असम का दुकानदार और झारखंड का छोटा कारोबारी भी उतनी ही आसानी से डिजिटल ट्रांजैक्शन कर सके जितना मुंबई का कोई व्यक्ति – तभी भारत में AI का असली प्रभाव दिखेगा।”