केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) की वित्त वर्ष 24 में सूक्ष्म व लघु उद्यमों (एमएसई) से खरीद 43 फीसदी की भारी गिरावट के साथ महज 773.39 करोड़ रुपये रह गई। वित्त मंत्रालय के सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण के नवीनतम संस्करण के मुताबिक 188 सीपीएसई ने वित्त वर्ष 2022-23 में 1,369.46 करोड़ रुपये की खरीदारी की थी।
भारतीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम महासंघ (एफआईएसएमई) के महासचिव अनिल भारद्वाज ने बताया, ‘इसके मुख्य कारणों में से एक आम चुनाव के कारण सार्वजनिक खरीद में गिरावट होना है। बजट जुलाई में ही पेश किया जा सका। इसका परिणाम यह हुआ कि छह महीने का नुकसान हो गया।’
वित्त वर्ष 24 में कुल खरीदारी 5,30,151.48 करोड़ रुपये थी और इसमें से एससी/एसटी उद्यमियों के स्वामित्व वाले एमएसई से खरीदारी बढ़कर 1,689.59 करोड़ रुपये हुई थी जबकि इन उद्यमियों से वित्त वर्ष 23 में 1,616.01 करोड़ रुपये की खरीदारी हुई थी। इसके अलावा महिलाओं के स्वामित्व वाली एमएसई से खरीदारी वित्त वर्ष 24 में बढ़कर 3,252.66 करोड़ रुपये हो गई थी, जबकि वित्त वर्ष 23 में 2,403.46 करोड़ रुपये थी। भारत सरकार ने वर्ष 2012 में एमएसई की सार्वजनिक खरीद नीति अधिसूचित की थी।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय को 1 अप्रैल, 2012 से इस नीति को लागू करने का दायित्व सौंपा गया था। इस नीति का लक्ष्य एमएसई के उत्पादों और सेवाओं की मार्केटिंग कर उन्हें बढ़ावा देना व बेहतर बनाना है। केंद्र सरकार ने न्यूनतम सालाना खरीद की नीति में संशोधन कर एमएसई से अनिवार्य रूप से खरीद की सीमा 20 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दी। इस क्रम में यह कानून भी बनाया गया है कि इस 25 फीसदी में से महिलाओं के स्वामित्व वाले एमएसई से न्यूनतम 3 फीसदी और एससी/एसटी के स्वामित्व वाले एमएसई से न्यूनतम 4 फीसदी खरीदारी अनिवार्य रूप से की जाए।
कारोबार में लेनदेन की लागत घटाने के लिए एमएसई को मदद दी जाती है। इस क्रम में एमएसई को निविदा के सेट नि:शुल्क मुहैया करवाए जाते हैं और उन्हें बयाना राशि अदा करने से भी छूट दी गई है। ये संशोधन 1 अप्रैल, 2019 से लागू किए गए थे।
इंडिया एसएमई फोरम के अध्यक्ष विनोद कुमार ने बताया, ‘सरकार के केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की एमएसई से खरीदारी को बढ़ावा देने की नीति के जबरदस्त परिणाम सामने आए हैं। लेकिन केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के प्रबंधन में खरीदारी को लेकर सोच बदलने की जरूरत है। उन्हें एमएसई को प्रोत्साहन व दंडित करने की नीति के बजाये देश के निर्माण में एमएसई की भूमिका को सही मायने में समझना होगा।’