क्या इससे वोडाफोन आइडिया लिमिटेड पर्दे के पीछे चली जाएगी और दूरसंचार बाजार में केवल दो कंपनियां रिलायंस जियो और भारती एयरटेल बरकरार रहेंगी? अथवा दूरसंचार कंपनियों को चुनौतियों से उबरने में मदद मिलेगी और ग्राहक बाजार हिस्सेदारी के लिहाज से छोटी कंपनियों को भी एक व्यवहार्य कारोबारी मॉडल के साथ आगे बढऩे में मदद मिलेगी?
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दूरसंचार कंपनियों को उनके एजीआर बकाये के भुगतान के लिए 10 वर्षों का समय दिए जाने के बाद इन सवालों का जवाब जाहिर तौर पर वोडाफोन आइडिया लिमिटेड की रणनीति पर निर्भर करेगा। साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि क्या उसके दो प्रमुख शेयरधारक और इक्विटी निवेश करने के लिए कितना आगे बढ़ेंगे क्योंकि ऋण के जरिये रकम जुटाने की संभावनाएं उसके लिए काफी सीमित हैं। उसका ऋण बोझ उसके एबिटा के मुकाबले 20 गुना तक पहुंच चुका है।
दूसरा, क्या वे ताजा पूंजी जुटाने के लिए किसी साझेदार को आकर्षित कर सकते हैं लेकिन वोडाफोन द्वारा अपनी भारतीय कारोबार में निवेश को बट्टेखाते में डाले जाने के मद्देनजर किसी नए साझेदार को आकर्षित करना उसके लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा।
तीसरा, वोडाफोन आइडिया एक देशव्यापी ऑपरेटर होने के बजाय अधिक राजस्व वाले सर्किल पर कितना ध्यान केंद्रित करेगी। इससे देश भर में अपनी बाजार हिस्सेदारी को खोने के बावजूद कंपनी को राजस्व और मुनाफे के मोर्चे पर बढ़त मिलेगी। कंपनी इस रणनीति की घोषणा पहले ही कर चुकी है। उसने कहा था कि वह देश के 22 सर्किल में से केवल 16 पर ध्यान केंद्रित करेगी जिनका उसके राजस्व में 87 फीसदी योगदान है।
वोडाफोन आइिडया के लिए कुछ बातें निश्चित तौर पर अच्छी दिख रही हैं। भारती एयरटेल के सुनील मित्तल पहले ही सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि वह एआरपीयू को दोगुना करते हुए 300 रुपये करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उद्योग में स्थिरता के लिए एआरपीयू को लगभग दोगुना करने की जरूरत है। उन्होंने कहा था अगले छह महीनों के दौरान उनकी कंपनी एआरपीयू में 60 फीसदी की वृद्धि करने की कोशिश करेगी। दूरसंचार नियामक बुनियादी शुल्क दरों के लिए एक सीमा निर्धारित करने पर जोर दे रहा है ताकि वह लागत से कम न हो। रिलायंस जियो भी कीमत के मोर्चे पर कोई प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहती है लेकिन उसने शुल्क दरें बढ़ाने के बारे में भी कुछ नहीं कहा है। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो वोडाफोन आइडिया को झटका लग सकता है।
बहरहाल, चालू वित्त वर्ष की जून तिमाही में 4,100 करोड़ रुपये की एबिटा के साथ वोडाफोन आइडिया को अपने पूंजीगत खर्च, ब्याज, स्पेक्ट्रम बकाये और अब एजीआर यानी सालाना करीब 30,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना आसान नहीं होगा। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उसके खर्च में एजीआर बकाये के तौर पर सालाना 7,500 करोड़ रुपये अतिरिक्त जुड़ जाएंगे।
राहत की बात केवल इतनी है कि वित्त वर्ष 2021 और वित्त वर्ष 2022 यानी दो वर्षों के लिए स्पेक्ट्रम बकाये के भुगतान में मोहलत के कारण भुगतान की रकम थोड़ी कम हो जाएगी लेकिन दो साल के बाद उसे अधिक भुगतान करना पड़ेगा। वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही के आंकड़ों के आधार पर उसकी करीब 45 फीसदी एबिटा का इस्तेमाल केवल एजीआर बकाये के भुगतान में हो जाएगा।
गोल्डमैन सैक्स के आकलन के अनुसार, वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही में उसे 4.9 गुना अधिक एबिटा की जरूरत होगी और सालाना भुगतान से निपटने के लिए उसके एआरपीयू में करीब 88 फीसदी की बढ़ोतरी की दरकार है। जून तिमाही में उसका एआरपीयू 123 रुपये था।