टेक्नोलॉजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी गूगल प्लेस्टोर के साथ जुड़े ऐप्लिकेशन अलग करने के लिए मोबाइल के मूल उपकरण विनिर्माताओं (ओईएम) के साथ काम कर रही है। अभी हैंडसेट कंपनियों को गूगल के 9 ऐप्स पहले से इंस्टॉल करने ही पड़ते हैं। मगर पिछले शुक्रवार को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के साथ बातचीत के बाद गूगल यह अनिवार्यता खत्म कर रही है।
ओईएम कंपनियों से जुड़े सूत्रों ने कहा कि इस कदम से ऐप्स को अदालत द्वारा निर्धारित समयसीमा के भीतर प्लेस्टोर से अलग करने की प्रक्रिया तेज हो सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सीसीआई का आदेश लागू करने के लिए गूगल को शुक्रवार तक की मोहलत दी है। मगर माना जा रहा है कि गूगल सीसीआई से कह सकता है कि आदेश के अन्य निर्देश लागू करने के लिए और समय की दरकार होगी। इन निर्देशों में प्रतिस्पर्धी ऐप स्टोरों को गूगल प्ले स्टोर में आने की इजाजत देना शामिल है, जिसे साइडलोडिंग कहा जाता है।
गूगल का कहना है कि इससे सुरक्षा और मैलवेयर की चिंता पैदा हो जाएगी, जिन पर काबू गूगल के हाथ में नहीं होगा। सीसीआई ने गूगल को ऐप साइलोडिंग की सुविधा देने का आदेश दिया था। मगर गूगल ने यह नहीं बताया कि ओईएम के साथ किन मुद्दों पर बातचीच हुई है।
सूत्रों ने कहा कि गूगल ने मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कंपनियों से कहा है कि वह पहले ही साइडलोडिंग की इजाजत दे रही है। उदाहरण के लिए भारत में कई गेमिंग कंपनियों के ऐप्स उनकी वेबसाइटों से डाउनलोड किए जा सकते हैं। ऐसा करते समय उपकरण या व्यक्तिगत डेटा के संभावित नुकसान की चेतावनी देने के लिए एक पॉप-अप संदेश आता है।
घटनाक्रम के जानकार सूत्रों ने कहा कि ओईएम के पास अब कई विकल्प होंगे। वे गूगल के ऐप्स के बगैर केवल प्लेस्टोर का वितरण कर सकते हैं, मौजूदा बंडलिंग चला सकते हैं यानी ऐप्स को प्री-इंस्टॉल कर सकते हैं और चाहें तो चुनिंदा ऐप्स भी डाल सकते हैं।
मोबाइल कंपनियां ग्राहकों को गूगल का कोई भी ऐप हटाने का विकल्प भी दे सकती हैं। जानकारों का कहना है कि इसके लिए मौजूदा मोबाइल ऐप्लिकेशन वितरण समझौते (एमएडीए) में फेरबदल करना होगा। एमएडीए के तहत मूल उपकरण विनिर्माताओं को अभी गूगल सर्च, यूट्यूब, डुओ, क्रोम, गूगल प्ले म्यूजिक, गूगल प्ले मूवीज, गूगल फोटोज, जीमेल, गगूल ड्राइव आदि ऐप्स लेने ही पड़ते हैं।
सूत्रों का कहना है कि जहां तक संभव होगा, गूगल सीसीआई के आदेश को तत्काल लागू करेगी। जिन जिन बदलावों के लिए विशेष तौर पर भारत में तकनीकी बदलाव करने होंगे, उसके लिए सीसीआई से कुछ हफ्तों की मोहलत मांगी जा सकती है। जहां तकनीक में व्यापक बदलाव की जरूरत होगी वहां विस्तृत चर्चा करनी पड़ेगी।
ऐंड्रॉयड फोर्क्स ऐसा ही क्षेत्र है। ऐंड्रॉयड के ओपन सोर्स का उपयोग कई डेवलपर अपने वैरिएंट बनाने के लिए करते हैं, जिन्हें ऐंड्रॉयड फोर्क्स कहा जाता है। सैमसंग, एचटीसी और कुछ अन्य कंपनियों ने ऐसा किया है। सीसीआई के आदेश में कहा गया है कि गूगल अपनी प्ले सेवाएं ऐसे ऐंड्रॉयड फोर्क्स को देने से मना नहीं कर सकती है, जिनमें गूगल के ऐप इन्स्टॉल न हों।