ई-कॉमर्स के कारण कारोबार में गिरावट की मार से पहले ही परेशान किराना दुकानदारों के लिए क्विक कॉमर्स नई परेशानी बनकर आया है। रोजमर्रा इस्तेमाल का सामान चंद मिनटों में पहुंचा देने वाले क्विक कॉमर्स का दायरा बढ़ने से गली-मोहल्लों की किराना दुकानों पर तगड़ी मार पड़ी है। जेपी मॉर्गन मुंबई के विभिन्न इलाकों में किराने की 50 दुकानों का सर्वेक्षण किया, जिसमें 60 फीसदी दुकानों के मालिक बोले कि क्विक कॉमर्स के कारण उनकी बिक्री घटी है।
क्विक कॉमर्स कंपनियों के डार्क स्टोर यानी गोदाम कमोबेश हर इलाके में होते हैं। ऑनलाइन ऑर्डर आने पर चंद मिनटों में गोदाम से ग्राहक के पते पर सामान पहुंचा दिया जाता है। मुंबई में क्विक कॉमर्स के करीब 50 फीसदी डार्क स्टोर सात उपनगरीय इलाकों में हैं। इसलिए क्विक कॉमर्स का असर समझने के लिए उन्हीं इलाकों में 50 किराना दुकानदारों से बात की गई। सर्वेक्षण में 82 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि क्विक कॉमर्स के कारण उनकी बिक्री घटी है। तकरीबन 77 फीसदी प्रतिभागियों का कहना था कि क्विक कॉमर्स से उनकी बिक्री करीब 30 फीसदी तक घट गई है।
मगर क्विक कॉमर्स इससे बिल्कुल उलट बात कहती हैं। हाल ही में आरंभिक सार्वजनिक निर्गम लाने वाली कंपनी स्विगी के सह-संस्थापक श्रीहर्ष मजेटी का कहना था कि क्विक कॉमर्स से किराना दुकानों का कारोबार छिन ही नहीं सकता। उनकी दलील थी कि जो 3-4 करोड़ ग्राहक क्विक कॉमर्स से खरीदारी करते हैं, वे किराना दुकानों से कभी सामान लेते ही नहीं। पहले वे ऑनलाइन खरीदारी करते रहे हैं और अब क्विक कॉमर्स से सामान खरीद रहे हैं। जोमैटो के सह-संस्थापक दीपिंदर गोयल की राय भी कुछ ऐसी ही है। गोयल क्विक कॉमर्स फर्म ब्लिंकइट चलाते हैं।
कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के अध्यक्ष और सांसद प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से फल-फूल रहे कारोबार स्थानीय विक्रेताओं को कमजोर कर रहे हैं और बाजार में होड़ भी बिगड़ रही है। इससे किराना स्टोरों का कारोबार भी घट रहा है। उनका कहना है कि क्विक कॉमर्स को गोदाम खोलने और माल रखने के बजाय छोटे किराना दुकानदारों से गठजोड़ कर ग्राहक के घर तक सामान पहुंचाना चाहिए।
खंडेलवाल के विचार से किराना स्टोर भी इतफाक रखते हैं। तकरीबन 62 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वह चाहते हैं कि सरकार को सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए। जेपी मॉर्गन के अनुसार कुछ प्रतिभागियों ने शिकायत की कि वितरक और ब्रांड क्विक कॉमर्स कंपनियों को ज्यादा छूट देते हैं जिससे किराना दुकान की प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर हो रही है। हालांकि जे पी मॉर्गन का कहना है कि संभावित सरकारी हस्तक्षेप से नियामकीय बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि फ्रैंचाइजी भागीदारों को केवल क्विक कॉमर्स फर्म के साथ काम नहीं करने के लिए कहा जा सकता है।
मगर ऐसा भी नहीं है कि किराना स्टोर क्विक कॉमर्स को टक्कर देने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। करीब 25 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्होंने क्विक कॉमर्स से मुकाबला करने के लिए अपने पैक साइज में बदलाव किया है, ग्राहकों के घरों पर सामान पहुंचा रहे हैं और भारी छूट भी दे रहे हैं। वह ग्राहकों के साथ भरोसे का रिश्ते कायम कर क्विक कॉमर्स को टक्कर दे रहे हैं।