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दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी कर कटौती का लाभ मात्रा बढ़ाकर दे सकेंगी FMCG कंपनियां!

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले महीने फैसला सुनाया था कि जीएसटी कटौती के बाद अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) में कमी किए बिना मात्रा या वजन बढ़ाना ग्राहकों के साथ 'धोखा' है

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मोनिका यादव   
Last Updated- October 07, 2025 | 10:25 PM IST

दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में एक पुराने विवाद पर दिए गए फैसले के बावजूद रोजमर्रा के उपभोग का सामान बनाने वाली (एफएमसीजी) कंपनियां वस्तु एवं सेवा (जीएसटी) कर में कटौती का लाभ देने के ​लिए उत्पादों के दाम कम करने के बजाय उनका वजन बढ़ाने का विकल्प अपना सकती हैं। सरकार के अ​धिकारियों ने यह जानकारी दी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले महीने फैसला सुनाया था कि जीएसटी कटौती के बाद अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) में कमी किए बिना मात्रा या वजन बढ़ाना ग्राहकों के साथ ‘धोखा’ है क्योंकि कर कटौती का उद्देश्य ग्राहकों के लिए उत्पादों और सेवाओं को ज्यादा किफायती बनाना है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि अदालत का यह फैसला पहले के मुनाफाखोरी-रोधी ढांचे पर आधारित है जो 22 सितंबर को लागू जीएसटी 2.0 के तहत लागू नहीं होता।

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली उच्च न्यायालय का मामला राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण (एनएए) के 2018 के एक आदेश से संबंधित है जब सीजीएसटी अधिनियम की धारा 171 के तहत ऐसे प्रावधान लागू थे।’ एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने भी इस पर सहमति व्यक्त की कि धारा 171 जीएसटी 2.0 के तहत लागू नहीं होता है। अधिकारी ने कहा कि चूंकि मुनाफाखोरी-रोधी प्रावधान अब लागू नहीं हैं इसलिए नई व्यवस्था के अंतर्गत कर कटौती का लाभ देने के लिए समान मूल्य पर अधिक वजन या अतिरिक्त मात्रा देने को भी मूल्य घटाने के बराबर माना जाएगा।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 23 सितंबर के एक फैसले में हिंदुस्तान यूनिलीवर के वैसलीन उत्पाद के संबंध में मेसर्स शर्मा ट्रेडिंग कंपनी के खिलाफ एनएए के 2018 के आदेश को बरकरार रखा जिसमें कहा गया कि जब जीएसटी दरों में कटौती की जाती है तो ग्राहकों को कीमत में स्पष्ट कमी दिखनी चाहिए न कि वजन या मात्रा बढ़ाने जैसे उपाय किए जाने चाहिए।

केंद्रीय जीएसटी अधिनियम की धारा 171 को 2017 में यह सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था कि कंपनियां कर की दरों में कटौती या इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ कीमत घटाकर ग्राहकों तक पहुंचाए। इसका उद्देश्य जीएसटी के तहत कर में कमी आने पर कंपनियों को अनुचित लाभ कमाने से रोकना था। इसे लागू करने के लिए सरकार ने एनएए का गठन किया था जिसने शिकायतों की जांच की और जहां मुनाफाखोरी पाई गई, वहां पैसे लौटाने या जुर्माना लगाने का आदेश दिया।

हालांकि इस प्रणाली को आलोचना का भी सामना करना पड़ा है क्योंकि यह अक्सर व्यावसायिक मूल्य निर्धारण निर्णयों में हस्तक्षेप करती थी। सरकार ने मुनाफाखोरी-रोधी तंत्र को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया है।

रस्तोगी चैंबर्स के संस्थापक अभिषेक ए रस्तोगी ने कहा, ‘कर की दर घटने पर ग्राहकों को उसका लाभ देने के मुद्दे को हल करने के लिए सरल और सुसंगत कार्यप्रणाली अपनाई जानी चाहिए। पहले के ढांचे के कारण अक्सर अलग-अलग व्याख्याएं और असंगत निष्कर्ष सामने आते थे। एक सुस्पष्ट प्रणाली व्यवसायों के लिए कर निश्चितता सुनिश्चित करेगी साथ ही उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करेगी और जीएसटी व्यवस्था में भरोसा बढ़ाएगी।’

First Published : October 7, 2025 | 10:25 PM IST