अप्रैल-जून तिमाही के दौरान एफएमसीजी कंपनियों ने अपने खर्च की रफ्तार सीमित रखी और विज्ञापनों पर कोई फिजूलखर्ची नहीं की। लेकिन कंपनियां आगामी महीनों में विज्ञापन पर खर्च फिर शुरू करेंगी, जैसा कि उन्होंने अपनी अर्निंग कॉल्स में निवेशकों को बताया है।
पिछले वर्ष की तुलना में कई एफएमसीजी कंपनियों ने इस तिमाही में कच्चे माल की ऊंची लागत के कारण मार्जिन में गिरावट रोकने पर ध्यान केंद्रित किया। कंपनियों ने विश्लेषकों को भेजी जानकारी में भी यही कहा है कि इस तिमाही में विज्ञापन पर खर्च कम रहा।
डाबर इंडिया ने व्यापार योजनाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया और मीडिया संबंधित खर्च पर कम जोर दिया। मगर कंपनी का मानना है कि भविष्य में उसका विज्ञापन खर्च बढ़ेगा। डाबर इंडिया में मुख्य कार्याधिकारी मोहित मल्होत्रा ने नतीजों की घोषणा के बाद विश्लेषकों को बताया, ‘हमने पूंजी को एटीएल (एबव द लाइन) से बीटीएल (बिलो द लाइन) में कर दिया है। मैं आपको पहले भी बताता रहा हूं कि प्रतिस्पर्धा की तीव्रता के आधार पर ट्रेड इनपुट, उपभोक्ता योजनाएं और व्यापार योजनाएं दी जाती हैं।’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन आगे चलकर, विज्ञापन पर खर्च अधिक होता रहेगा। हम अपना सकल मार्जिन बढ़ाना चाहते हैं और एडवरटाइजिंग सपोर्ट में निवेश करना चाहते हैं। हम आगे चलकर समग्र विज्ञापन और प्रचार व्यय बढ़ाने का निरंतर प्रयास करेंगे। ब्रांड तथा वितरण में भी निवेश करेंगे।’
गुड डे बिस्कुट की निर्माता ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज ने निवेशकों को बताया कि उसने जून तिमाही में अपने विज्ञापन खर्च को अनुकूल बनाया। ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी वरुण बेरी ने विश्लेषकों को बताया, ‘हमने तिमाही के दौरान अपने एऐंडपी (विज्ञापन एवं प्रोत्साहन) खर्च को तर्कसंगत बनाया।’
अप्रैल-जून तिमाही में बिक्री के प्रतिशत के रूप में मैरिको का विज्ञापन खर्च काफी हद तक स्थिर रहा। कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी पवन अग्रवाल ने कहा, ‘भारत में विज्ञापन और आपूर्ति में कुछ कटौती हुई है। लेकिन मैं आपको इसके दो-तीन मोटे कारण बता दूं। पहला, हमने प्रीमियम, वीएएचओ (मूल्य वर्धित हेयर ऑयल), खाद्य पदार्थ और पीपीसी (प्रीमियम पर्सनल केयर) जैसी प्रमुख श्रेणियों में कोई कटौती नहीं की है।’