भारत में 39,000 से अधिक कर्मचारियों और 18 विनिर्माण केंद्रों के साथ जर्मनी की प्रमुख कंपनी बॉश इंडिया वैश्विक वाहन कलपुर्जा कारोबार में अग्रणी है। भारत में बॉश ग्रुप के अध्यक्ष और बॉश लिमिटेड के प्रबंध निदेशक गुरुप्रसाद मुदलापुर ने सुरजीत दास गुप्ता से बातचीत में कंपनी की रणनीति एवं चुनौतियों के बारे में विस्तार से चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:
वाहन क्षेत्र में भारत को आप कहां देखते हैं?
मुझे लगता है कि विनिर्माण प्रतिस्पर्धा के मामले में हम काफी अच्छे हैं। जहां तक प्रौद्योगिकी का सवाल है तो हमें अभी भी एडीएएस जैसी कई नई ईवी प्रौद्योगिकी को अपनाना होगा। इसके लिए केवल वाहन तकनीक ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि बुनियादी ढांचा भी विकसित करना होगा। आपूर्ति श्रृंखला के मोर्चे पर हमें काफी आगे जाना है, खास तौर पर ईवी के क्षेत्र में। बैटरी एवं अन्य महत्त्वपूर्ण पुर्जों की आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर बनाने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है।
सरकार ने सभी दोपहिया वाहनों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम (एबीएस) लगाने की योजना बनाई है, लेकिन वाहन कंपनियों ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि इससे केवल कलपुर्जा कंपनियों को ही फायदा होगा। इस पर आप क्या कहेंगे?
यह उनका नजरिया है। मगर भारत का वाहन उद्योग लंबे समय से 5-10 साल पीछे रहा है और पिछले कुछ वर्षों से उसने रफ्तार पकड़ी है। अब हम कई मामलों में वैश्विक मानकों के अनुरूप अथवा उससे बेहतर हैं। आज भारत में हर साल 2 करोड़ से अधिक दोपहिया वाहन बेचे जाते हैं जो एक बड़ा वॉल्यूम है। इससे दुनिया में भारत की स्थिति अनोखी हो जाती है क्योंकि अधिक उत्पादन होने से लागत काफी कम हो जाएगी। इसलिए मुझे नहीं लगता कि हमें कीमत पर ध्यान देना चाहिए।
क्या भारत वाहन कलपुर्जा के क्षेत्र में चीन की तरह प्रतिस्पर्धी है?
भारत काफी प्रतिस्पर्धी है। फिलहाल हम अपने उत्पादन का 9 से 10 फीसदी निर्यात करते हैं जिसे 2030 तक दोगुना करने की योजना है। मगर मुझे लगता है कि हमें समय पर अपनी खरीद क्षमता में सुधार करने की जरूरत है। हमारी लॉजिस्टिक लागत भी उतनी ही होनी चाहिए जिनती उत्पाद के विनिर्माण स्थान पर है।
क्या उत्पादन लागत के मोर्चे पर भारत में चीन के मुकाबले कोई कमी है?
चीन का अपने घरेलू बाजार के लिए पैमान भी बिल्कुल अलग है। इसलिए अधिकतर श्रेणियों में उसका उत्पादन हमसे 4-5 गुना अधिक है। दूसरा, कई नई प्रौद्योगिकी के मामले में भी चीन थोड़ा आगे रहा है। हालांकि इसमें चीन की उपभोक्ता प्राथमिकताओं और उसकी क्रय शक्ति का भी योगदान है। मगर एबीएस और ईएसपी जैसी प्रणाली के मामले में कम वॉल्यूम के बावजूद हम घरेलू आपूर्ति में चीन की तरह ही प्रतिस्पर्धी हैं। कम इनपुट लागत, अगल विनिर्माण तकनीक और कम पूंजीगत व्यय जैसे तमाम कारक हमें समान रूप से प्रतिस्पर्धी बनाते हैं।
सरकार विनिर्माण में स्थानीयकरण और निर्यात पर अधिक जोर दे रही है। ऐसे में आपकी रणनीति क्या रही है?
हमारा स्थानीयकरण काफी अधिक है। उदाहरण के लिए, बीएस4 या अन्य तकनीकों में हम 80 से 85 फीसदी स्थानीयकरण स्तर तक पहुंच चुके हैं। मगर कुछ नई तकनीकों में हम शायद 30 से 35 फीसदी स्थानीयकरण के साथ शुरुआत करते हैं और बाद में उसे बढ़ाया जाता है। आज हम 50 फीसदी स्थानीयकरण के साथ शुरुआत करते हैं।
भारत में कई कलपुर्जों का विनिर्माण एवं स्थानीयकरण अभी भी चुनौती क्यों है?
इसका बुनियादी कारण बड़े पैमाने पर उत्पादन है। उदाहरण के लिए, यात्री इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री करीब 1 लाख है। इतनी बड़ी मात्रा के लिए हर कलपुर्जे का स्थानीयकरण करना व्यावहारिक नहीं है। ऐसे में हम अन्य जगहों पर बड़ी मात्रा में उत्पादित कुछ कलपुर्जे खरीद सकते हैं और उन्हें उचित मूल्य पर ला सकते हैं। हम ऐसा करते हुए स्थानीयकरण की ओर कदम बढ़ाते हैं।
क्या अमेरिकी शुल्क के कारण भारत से आपका निर्यात प्रभावित होगा?
मैं समझता हूं कि शुल्क इस समय पूरे वाहन उद्योग के लिए एक चुनौती बनी हुई है। भारत और अमेरिका एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर काम कर रहे हैं। उससे न केवल अमेरिका में बल्कि अन्य बाजारों में भी हमारे लिए अवसर पैदा होंगे क्योंकि शुल्क के कारण उत्पादन नेटवर्क में बदलाव हो सकता है।
क्या दुर्लभ खनिज मैग्नेट पर चीन द्वारा लगाई गई पाबंदी चिंता की बात है?
हाल के महीनों में वाहन उद्योग में यह एक प्रमुख मुद्दा रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि इसका समाधान निकलेगा और आपूर्ति जल्द बहाल होगी। मगर इसका जल्द समाधान होने के आसार कम हैं।
क्या आपको लगता है कि भारत में हाइब्रिड तकनीक का भविष्य है अथवा यहां पेट्रोल-डीजल से सीधे इलेक्ट्रिक की ओर रुख करना चाहिए?
हाइब्रिड एक बेहद व्यवहार्य तकनीक है। यह शहरों में प्रदूषण नियंत्रण और उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने जैसे मामलों में एक आकर्षक विकल्प हो सकती है। अगर आप लंबी ड्राइविंग रेंज के साथ-साथ बुनियादी ढांचे पर निर्भरता को भी कम करना चाहते हैं और इलेक्ट्रिक जैसी दक्षता चाहते हैं तो आपको दोहरे पावरट्रेन की आवश्यकता होती है।
आप कुछ समय से हाइड्रोजन वाहनों पर काम कर रहे हैं। भारत में हाइड्रोजन वाहनों के लिए सबसे अच्छी राह क्या होगी?
हम वैश्विक स्तर पर 2020 के दशक से ही इस पर काम कर रहे हैं। जहां तक भारत का सवाल है तो मैं समझता हूं कि यहां हाइड्रोजन की आपूर्ति ईंधन सेल के बजाय हाइड्रोजन इंजेक्शन तकनीक (हाइड्रोजन आईसीई) के जरिये होने की संभावना है। फिलहाल हम हाइड्रोजन का इस्तेमाल भारी वाणिज्यिक वाहनों और लंबी दूरी के ट्रकों में देख रहे हैं। मौजूदा इनपुट लागत पर भी वह व्यावसायिक तौर पर उपयोगी साबित होने लगा है।
भारत ईंधन सेल तकनीक पर आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है?
पहली समस्या हाइड्रोजन की शुद्धता की है। दूसरा मुद्दा भारतीय सड़कों के लिए ईंधन सेल की मजबूती का और तीसरा ईंधन सेल तकनीक की लागत है।