उच्चतम न्यायालय ने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी और संपत्तियों की कुर्की का प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का अधिकार बरकरार रखते हुए कहा है कि यह कानून मनमाना नहीं है। शीर्ष अदालत के आज के इस निर्णय से कई लोगों की उम्मीदों को झटका लग सकता है।
अदालत के फैसले का मतलब है कि ईडी की कार्रवाई कानूनी तौर पर वैध है। अदालत के निर्णय से राजनीतिक और कारोबारी हलकों में डर और घबराहट बढ़ गए हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि सर्वोच्च न्यायालय इस कानून की समीक्षा कर सकता है और ईडी पर लगाम लगा सकता है। कई राजनेताओं, बिल्डरों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं पर धनशोधन के आरोप लगे हैं और उनमें से कई लोग अभी ईडी की हिरासत में हैं। नैशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुला के खिलाफ भी पिछले मंगलवार को धनशोधन मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी मामला चल रहा है, जिसमें ईडी अधिकारियों ने उनसे गहन पूछताछ की है। याचिका दायर करने वालों में कार्ति चिदंरबम भी हैं, जो ईडी की हिरासत में रह चुके हैं।
अदालत ने पीएमएलए की वैधानिकता को बरकरार रखा है, जिसमें कहा गया है कि लोक अभियोजक आरोपी की जमानत याचिका का विरोध कर सकता है और आरोपी को उसी सूरत में जमानत मिल सकती है जब इसका वाजिब आधार हो कि संबंधित शख्स बाहर आने पर कोई अपराध नहीं करेगा।
हालांकि अदालत ने कहा कि पीएमएलए में संशोधनों को धन विधेयक के तौर पर पारित किए जाने के मामले की समीक्षा सात जजों का पीठ करेगा। एक याचिका में पीएमएलए में किए गए संशोधनों को चुनौती देते हुए कहा गया था कि ये बदलाव साधारण विधेयक का हिस्सा थे न कि धन विधेयक का। धन विधेयक को केवल लोकसभा में पेश किया जाता है और राज्य सभा न तो उसमें संशोधन कर सकती है और न ही उसे खारिज कर सकती है।
एक याची ने कहा था कि पीएमएलए में संशोधन असंवैधानिक और अवैध हैं क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक को प्रदत्त प्रावधानों से इसका कोई संबंध नहीं है। ऐसे में बड़े पीठ की समीक्षा पीएमएलए की वैधानिकता के लिए अहम है। अदालत ने कहा कि पीएमएलए के अनुसार अपराध से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से होने वाली प्राप्ति धनशोधन के दायरे में आएगी। अदालत ने कहा, ‘किसी संपत्ति को दागी संपत्ति के तौर पर पेश करना अपने आप में धनशोधन होगा।’ उसने कहा कि पीएमएलए के तहत आपराधिक आय में धनशोधन, कब्जा और दागी धन को छिपाना शामिल है और ईडी को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं है कि यह वैध धन है या नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह आरोपी की जिम्मेदारी है कि वह इसे बेदाग साबित करे।
अदालत ने पीएमएलए के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी। अदालत का कहना है कि पीएमएलए को मनमाना बताने वाले याचियों के तर्क बेबुनियाद हैं। अदालत ने कहा कि आरोपी को गिरफ्तार करने की वजह बताना ही पर्याप्त होगा। पीठ ने कहा कि ईडी का मैनुअल विभाग का आंतरिक दस्तावेज है और उसे प्रकाशित नहीं किया जा सकता। विभाग को अधिनियम के व्यापक उद्देश्यों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने की वांछनीयता का पता लगाना चाहिए। अदालत ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि तहत पीएमएलए के तहत उतनी ही गंभीर सजा मिलनी चाहिए, जितना गंभीर अपराध है।
कांग्रेस के प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि ईडी के अधिकारों के बारे में इस फैसले का देश के लोकतंत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा, खास तौर पर जब सरकार राजनीतिक प्रतिशोध में लगी है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि ईडी सरकार गिराने का हथियार बन गया है। लेकिन वह मंत्रिमंडल का गठन नहीं करा सकता। दरअसल वह महाराष्ट्र का हवाला दे रहे थे, जहां 28 दिन बाद भी केवल मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री ही सरकार चला रहे हैं और मंत्रियों की नियुक्ति नहीं हो पाई है।
पूर्व सांसद आनंद शर्मा ने कहा, ‘यह काफी परेशान करने वाला है कि कानून ज्यादा कठोर हो रहा है जो संविधान में दिए मौलिक अधिकारों के लिए खतरा बन रहा है।’
