इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (आईबीबीआई) के चेयरमैन एम एस साहू ने गुरुवार को कहा कि किसी कंपनी की जिंदगी पहले के मुकाबले मौजूदा समय में ज्यादा चिंताजनक हो गई है और इनमें से कुछ न सिर्फ बाजार दबाव बल्कि फोर्स मेजर नियमों (अनुबंध में ऐसा क्लॉज, जो किसी खास स्थिति में दोनों पक्षों को जिम्मेदारियों से मुक्त बनाता है) की वजह से भुगतान चूक की स्थिति में आ गई हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोविड महामारी के चुनौतियों के बीच 6 महीने (24 मार्च से ) के लिए कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रियाओं की शुरुआत को रोकने की घोषणा की थी जिससे कि कंपनियों को चूक के फोर्स मेजर की स्थिति में दिवालिया प्रक्रियाओं में फंसने से रोका जा सके।
साहू ने इंडिया कॉरपोरेट गवर्नेंस स्टेवर्डशिप पर एसोचैम के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि दिवालिया संहिता आईबीसी ने कंपनियों को बुरे दौर में बचाकर नई जिंदगी प्रदान कर कॉरपोरेट शासन को देश में नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।
साहू ने कहा कि एसऐंडपी 500 कंपनियों की औसत जिंदगी पिछली सदी के मुकाबले 90 से घटकर 18 साल रह गई है और किसी कंपनी की जिंदगी आज इंसान से भी छोटी रह गई है।
2015 के शोध का जिक्र करते हुए साहू ने कहा कि सार्वजनिक रूप से कारोबार कर रही कंपनी की औसत जिंदगी अधिग्रहण, विलय और दिवालिया स्थिति को ध्यान में रखकर करीब 10 साल है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चूंकि कंपनियां जीएसटी का आधुनिक जरिया हैं और वे आगामी पीढ़ी के लिए रोजगार प्रदान करती हैं, यह उनकी जिंदगी बचाने के लिए महत्वपूर्ण है।’
कॉरपोरेट मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि कंपनियां किस तरह से महामारी से मुकाबला कर पाएंगी, यह इस पर निर्भर करेगा कि ग्राहक और कर्मचारी एक ब्रांड के तौर पर उनके साथ किस तरह का संबंध रखते हैं।
