उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने सरकारी अनुबंधों में सार्वजनिक खरीद के ऑडरों के तहत स्थानीय सामग्री का न्यूनतम स्तर बढ़ाने की पेशकश की है। लेकिन कई स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) का कहना है कि इतना बड़ा लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है।
प्रथम श्रेणी वाली जिन आपूर्तिकर्ताओं की सेवाओं, वस्तुओं या कार्यों के लिए खरीद की पेशकश में स्थानीय सामग्री का हिस्सा 50 प्रतिशत या इससे अधिक रहता है, उनके लिए यह स्तर बढ़कर 70 प्रतिशत हो सकता है। द्वितीय श्रेणी वाली आपूर्तिकर्ताओं के लिए इसे 20 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जा सकता है। स्थानीय विनिर्माताओं का कहना है कि स्थानीयकरण बढ़ाने के इस कदम से विदेशी कंपनियों को फायदा होगा।
चूंकि विशेष कलपुर्जों का निर्माण भारत में नहीं किया जाता है। इसलिए घरेलू कंपनियां इस योजना के तहत पात्र नहीं होंगी। ऐसे कलपुर्जों को केवल विदेशी कंपनियों से आयात के जरिये ही खरीदा जा सकता है।
दूरसंचार उपकरणों का विनिर्माण करने वाली कंपनियों के संगठन – दूरसंचार उपकरण विनिर्माता संघ के चेयरमैन एमेरिटस एनके गोयल ने कहा कि ऐसा लगता है कि इससे मेक इन इंडिया कार्यक्रम में सहायता मिलेगी, फिर भी व्यावहारिक रूप से प्रौद्योगिकी उत्पादों में 50 प्रतिशत के स्तर तक पहुंचना चुनौती है।
मोबाइल फोन में स्थानीयकरण केवल 15 से 20 प्रतिशत है। दूरसंचार विभाग जैसे मंत्रालयों ने दूरसंचार उपकरण विनिर्माताओं और सरकारी व्यापार में भाग लेने वालों जैसे हितधारकों से 12 मार्च तक टिप्पणियां मांगी हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मानना है कि डीपीआईआईटी का यह लक्ष्य महत्वाकांक्षी है, लेकिन वे भी स्थानीय विनिर्माताओं की चिंताओं पर सहमत हैं।
एक दूरसंचार उपकरण विनिर्माता के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि यह प्रस्तावित वृद्धि (स्थानीयकरण की हिस्सेदारी) आपूर्ति श्रृंखला पर खासा दबाव डालेगी क्योंकि विशेष कुलपुर्जे और सामग्री प्रतिस्पर्धी कीमतों पर भारत में आसानी से उपलब्ध या निर्मित नहीं होती हैं। इससे केवल लागत में ही इजाफा होगा और भारतीय उत्पाद कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।