Representative Image
दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों की कम कीमत पर सामान बेचने की नीति और इस क्षेत्र की तेज वृद्धि फक्र करने की नहीं बल्कि फिक्र करने की बात है क्योंकि इससे आम खुदरा क्षेत्र में रोजगार घट सकते हैं। यह बात वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने आज कही। उन्होंने माना कि ई-कॉमर्स जरूरी है, लेकिन जोर देकर कहा कि इस क्षेत्र से होने वाले नफे-नुकसान को ध्यान में रखते हुए सोचना होगा कि यह ज्यादा संगठित तरीके से क्या भूमिका निभा सकता है।
गोयल ने ‘भारत में रोजगार एवं उपभोक्ता कल्याण पर ई-कॉमर्स का शुद्ध प्रभाव’ नाम की रिपोर्ट जारी करते हुए ई-कॉमर्स कंपनियों के कारोबारी मॉडल पर कई सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, ‘क्या ई-कॉमर्स की तेज वृद्धि के साथ हम बड़ा सामाजिक व्यवधान पैदा करने जा रहे हैं? मुझे इसमें गर्व महसूस नहीं होता कि 10 साल बाद हमारा आधा बाजार ई-कॉमर्स नेटवर्क का हिस्सा बन जाएगा। यह चिंता की बात है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 से 2030 तक ई-कॉमर्स 27 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ेगा। गोयल ने कहा कि ऐसी वृद्धि का साफ मतलब है कि 4 साल में ई-कॉमर्स का आकार दोगुना हो जाएगा। उन्होंने कहा कि काफी तेज रफ्तार है, जो अहम होने के साथ चिंताजनक भी है।
मंत्री ने कहा कि ई-कॉमर्स कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक्स एवं परिधान जैसे अधिक मार्जिन वाले उत्पादों पर छूट देकर छोटे खुदरा कारोबारियों का हिस्सा खा रही हैं। इससे शहरों में 1 करोड़ से अधिक खुदरा दुकानों और देश भर में 10 करोड़ से अधिक खुदरा कारोबारियों पर असर पड़ेगा।
गोयल ने कहा, ‘मैं ई-कॉमर्स को खत्म करने की बात नहीं कर रहा हूं। वह तो रहेगा मगर हमें उसकी भूमिका के बारे में काफी सावधानी और सतर्कता के साथ सोचना होगा। क्या कम से कम कीमत पर सामान बेचना देश के लिए अच्छा है?’
मंत्री ने एमेजॉन जैसी बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों की निवेश नीतियों की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि उनके घाटे की भरपाई पेशेवरों और शीर्ष वकीलों को मोटे भुगतान के जरिये की जाती है।
उन्होंने कहा, ‘ जब एमेजॉन भारत में 1 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा करती है तो हम जश्न मनाते हैं। मगर हम भूल जाते हैं कि ये अरबों डॉलर भारतीय अर्थव्यवस्था की बड़ी सेवा या निवेश के लिए नहीं आ रहे हैं। कंपनी को उस साल 1 अरब डॉलर का घाटा हुआ था और उस घाटे की भरपाई करनी थी।’
गोयल ने कहा, ‘और वह घाटा कैसे हुआ? उन्होंने पेशेवरों को 1,000 करोड़ रुपये चुकाए। अगर आप सभी नामी वकीलों को इस बात के लिए पैसे नहीं दे रहे हैं कि कोई आपके खिलाफ मुकदमा नहीं लड़ सके तो साल में 6,000 करोड़ रुपये का घाटा क्यों हो रहा है? आपको ऐसा नहीं लगता कि इसकी वजह प्रतिस्पर्द्धियों से बहुत कम कीमत पर सामान बेचना हो सकती है? उन्हें बिजनेस टु कॉमर्स (बी2सी) की इजाजत नहीं है।’