बॉन्ड प्रतिफल और नकदी की उपलब्धता बढ़ाने के आरबीआई के उपायों के बीच बाजार में कंपनियों के लिए अल्प अवधि का कर्ज लेना काफी सस्ता हो गया है। ऐसे ऋण पर ब्याज दर कम होकर ओवरनाइटर रीपो दर से भी कम हो गई है। फिलहाल अर्थव्यवस्थ की हालत खराब है और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकलू घरेलू उत्पाद (जीडीपी)में करीब 24 प्रतिशत की कमी आई है। लिहाजा मौजूदा आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच कंपनियां दीर्घ अवधि के बॉन्ड जारी कर ऋण जुटाने से कतरा रही हैं। कंपनियां बैंकों से भी दीर्घ अवधि के कर्ज नहीं ले रही हैं क्योंकि मौजूदा क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाया है। इसके बजाय केवल कारोबार करने लायक पूंजी के साथ काम चला रही हैं, जो उन्होंने काफी सस्ती दरों पर बॉन्ड बाजार से जुटाए हैं।
इस बीच, बैंकों के पास इस समय कर्ज देने लायक रकम का अंबार लग गया है और जहां भी उन्हें जोखिम कम दिख रहा है वहां वे आवंटन दे रहे हैं। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक सूत्र के हवाले से खबर दी थी कि भारतीय खाद्य निगम(एफसीआई) बैंकों से 75,000 करोड़ रुपये महज 4.69 प्रतिशत ब्याज पर उधार ले रहा है। यह दर सार्वजनिक एवं निजी बैंकों की उधारी पर सीमांत लागत दर (एमसीएलआर) 6.65-7.10 प्रतिशत से भी कम है। एफसीआई का मामला थोड़ा इसलिए अलग है क्योंकि यह सरकारी संस्था है और एक तरह से इसे आवंटित ऋण पर सरकार की गारंटी होती है। हालांकि यहां दिमाग खपाने वाली बात यह है कि निजी कंपनियां समान अवधि यानी तीन महीने के लिए ही एफसीआई से भी सस्ती दरों पर कर्ज ले रही हैं।
इस बारे में एक कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी ने कहा,’बाजार से कुछेक हाजार करोड़ रुपये आराम से जुटाए जा सकते हैं। लेकिन एफसीआई की तरह एक ही बार में 75,000 करोड़ रुपये जुटाने की जरूरत आन पड़ती है तो आपकों बैंकों के पास ही जाना होगा।’ उदाहरण के लिए ग्रासिम इंडस्ट्रीज ने बुधवार को तीन महीने के वाणिज्यिक पत्र (सीपी) जारी कर 3.30 प्रतिशत दर से रकम जुटाई, जो ओरवनाइट रीपो दर से भी कम है, यहां तक कि आरबीआई के रिवर्स रीपो दर 3.35 प्रतिशत से भी कम है। इसी तरह, गोदरेज इंडस्ट्रीज ने भी इतनी ही अवधि के लि 3.37 प्रतिशत दर पर रकम जुटाई है। टाटा पावर भी 3.47 प्रतिशत पर बाजार से रकम उधार ली है। इस समय बैंकों 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक की नकदी के अंबार पर बैठे हैं। प्राथमिक बाजार के एक बॉन्ड कारोबारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘आरबीआई के उपायों से दरें 20-30 आधार अंक कम हो गया है और बैंकों के सामने दूसरी जगह उधार देने के लाभकारी विकल्प नहीं रह गए हैं। वे आरबीआई के पास भी सारी रकम नहीं रख सकते क्योंकि इसकी एक सीमा है।’