दवा उद्योग संस्था ने पैरासीटामोल टैबलेट डोलो-650 की निर्माता माइक्रो लैब्स से संबंधित उन आरोपों पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है जिनमें कहा गया कि कंपनी ने ब्रांड की दवा लिखने और उसे बढ़ावा देने के लिए चिकित्सकों को 1,000 करोड़ रुपये उपहार के तौर पर दिए थे।
इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (आईपीए) ने राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) को सौंपी जांच रिपोर्ट में कहा है, ‘कंपनी प्रबंधन के साथ बातचीत और विस्तृत जवाब में यह स्पष्ट हो गया है कि उपहार के तौर पर एक ब्रांड डोलो 650 पर एक साल में 1,000 करोड़ रुपये का खर्च सही नहीं है।’ आईपीए के सदस्यों का भारत के घरेलू दवा बाजार में 60 प्रतिशत और देश के निर्यात में करीब 80 प्रतिशत योगदान है।
राष्ट्रीय मूल्य निर्धारण नियामक ने आईपीए से यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज (यूसीपीएमपी) के तहत मामले की जांच करने को कहा था। तीन सदस्यीय आंतरिक समिति ने मामले की जांच की है।
जांच रिपोर्ट में कहा गया, ‘कंपनी का कुल कारोबार 4,500 करोड़ रुपये है, जिसमें से करीब 2,500 करोड़ रुपये घरेलू बिक्री है। पिछले चार साल में घरेलू बिक्री पर कुल खर्च (सभी गतिविधियों पर साल दर साल) औसत तौर पर 200 करोड़ रुपये है।’ इसलिए, तथ्य यह है कि माइक्रो लैब्स द्वारा डोलो-650 को बढ़ावा देने के लिए किए गए 1,000 करोड़ रुपये के खर्च की बात को गलत तरीके से पेश किया गया है। शोध एवं विश्लेषण फर्म अवाक्स की अध्यक्ष (विपणन) शीतल सापले ने जुलाई में बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया था कि डोलो ने कोविड-पूर्व समय में कंपनी के कारोबार में करीब 7 प्रतिशत योगदान दिया था। यह योगदान अब बढ़कर करीब 14 प्रतिशत तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा, ‘पैरासीटामोल बाजार में, डोलो की बाजार भागीदारी कोविड-19 पूर्व समय में 15 प्रतिशत थी जो अब बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई है। यह कालपोल को पीछे छोड़ चुकी है, जो पिछले पांच साल में 20-22 प्रतिशत के आंकड़े के साथ मजबूत स्थिति में बनी हुई थी।’
माइक्रो लैब्स के खिलाफ अन्य आरोप यह था कि 650एमजी की खुराक लेने की सलाह बगैर सोचे-समझे दी गई। सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सुनवाई में फेडरेशन ऑफ मेडिकल ऐंड सेल्स रीप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएमआरएआई) ने आरोप लगाया है कि जहां 500 एमजी पैरासीटामोल की कीमत नियंत्रित है, वहीं ऊंची खुराक कीमत नियंत्रण से बाहर हैं। कानूनी रिपोर्टिंग वेबसाइट लाइवलॉ डॉटइन की रिपोर्ट में कहा गया है कि एफएमआरएआई के अधिवक्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में तर्क पेश किया कि लाभ बढ़ाने के प्रयास में माइक्रो लैब्स ने 650एमजी की खुराक का प्रचार करने के लिए चिकित्सकों को उपहार बांटे थे। हालांकि आईपीए समिति की जांच रिपोर्ट में कहा गया, ‘इस दवा की ताकत को महामारी के दौरान भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा सभी उपचार प्रोटोकॉल में शामिल किया गया।