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चीनी कंपनियां विद्युत संयंत्रों के पुर्जे बनाकर फैलाएंगी रोशनी

Last Updated- December 05, 2022 | 9:12 PM IST

भारत के बढ़ते विद्युत क्षेत्र का फायदा उठाने के लिए अब चीनी कंपनियों ने भी कमर कस ली है।


दो साल पहले तक भारत के इस क्षेत्र में चीनी कंपनियों की मौजूदगी शून्य थी। लेकिन आज इस क्षेत्र में 30 फीसदी पुर्जों की आपूर्ति चीनी कंपनियों द्वारा ही की जा रही है। दरअसल 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान सरकार ने 78,000 मेगावाट क्षमता की अतिरिक्त बिजली प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए चीनी कंपनियों की सेवाएं ली जा रही है।


चीनी कंपनियों के उत्पादों की गुणवत्ता पर संदेह होने के बावजूद कई निजी कंपनियां भी इन कंपनियों में निर्मित पुर्जे बड़ी मात्रा में आयात कर रही हैं। भारत में प्राथमिक बिजली उपकरण बनाने वाली सरकारी कंपनी बीएचईएल की सीमित उत्पादन क्षमता और कम कीमतों के कारण भारतीय कंपनियों का रुझान चीनी कंपनियों की तरफ बढ़ रहा है।


केपीएमजी के सहायक निदेशक संतोष कामत ने बताया कि ज्यादा उतपादन क्षमता और उत्पादों की कम कीमतों के कारण चीनी कंपनियां भारतीय कंपनियों को आकर्षित करती हैं। उन्होंने बताया कि चीनी कंपनियों द्वारा निर्मित उत्पाद बीएचईएल के मुकाबले 10 से 12 फीसदी कम कीमत के होते हैं। पुर्जों की कम विद्युत व्यापार में कंपनियों के लिए बहुत जरुरी होती है।


इससे कंपनियों को परियोजना के लिए कम बोली लगाने में मदद मिलती है और उन्हें उस परियोजना के अधिकार मिलने के अवसर बढ़ जाते हैं। किसी भी विद्युत संयंत्र स्थापित करने में लगभग 80 फीसदी खर्चा सिर्फ पुर्जों पर ही किया जाता है। चीनी कंपनी दोंगफैंग इलेक्ट्रिक कॉर्पोरेशन की उत्पादन क्षमता 20,000 मेगावाट है। जोकि भारतीय कंपनी बीएचईएल की उत्पादन क्षमता (10,000 मेगावाट) से दोगुनी है।


भारत की एक निजी पावर कंपनी के अधिकारी ने बताया कि चीनी कंपनियों की उत्पादन क्षमता ज्यादा होने से उत्पादों की आपूर्ति भी जल्दी हो जाती है। चीनी कंपनियों के पास चीन में ही बड़े बिजली संयंत्रों को भी पुर्जे आपूर्ति करने का अनुभव है। इसका फायदा उन्हें भारत में मिलता है।


नई दिल्ली के पास यमुनानगर में स्थित विद्युत 600 मेगावाट क्षमता वाले विद्युत संयंत्र में भी चीनी कंपनी शंघाई इलेक्ट्रिक द्वारा निर्मित पुर्जे इस्तेमाल किए जा रहे हैं। पिछले साल ही इस संयंत्र ने 300 मेगावाट का उत्पादन भी शुरू कर दिया था। संयंत्र के एक अधिकारी ने बताया कि संयंत्र बिना किसी समस्या के सही ढंग से कार्य कर रहा है।


दोंगफैंग इलेक्ट्रिक कॉर्पोरेशन भारत में कई विद्युत संयंत्रों के लिए पुर्जे आपूर्ति का काम कर रहा है। इस सूची में पश्चिम बंगाल विद्युत विकास निगम का 600 मेगावाट क्षमता का सागरडिघी संयंत्र और 300 मेगावाट का दुर्गापुर संयंत्र शामिल है। इसके अलावा दोंगफैंग, लैंको इन्फ्रास्ट्रक्चर द्वारा मध्य प्रदेश में 1200 मेगावाट क्षमता वाले ताप विद्युत परियोजना के लिए भी पुर्जों की आपूर्ति कर रही है।इसके साथ ही कंपनी लैंको की कर्नाटक में मंगलौर और उत्तर प्रदेश के अनपरा परियोजना के लिए भी आपूर्ति कर रही है।
 
शैनदांग इलेक्ट्रिक पावर कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन ने वेदान्त की उड़ीसा में स्थापित होने वाले 2400 मेगावाट क्षमता की परियोजना के लिए भी पुर्जों की आपूर्ति कर रही है।भारतीय कंपनियां चीन  के अलावा कोरिया और जापान की कंपनियों को भी ऑर्डर दे रही हैं। एनटीपीसी ने सिपत में स्थित अपने 2000 मेगावाट क्षमता वाले संयंत्र के लिए कोरियाई कंपनी दूसान को अत्याधुनिक उपकरण की आपूर्ति के लिए ऑर्डर दिया है।


विश्लेषकों के मुताबिक अभी तक चीनी उपकरण गुणवत्ता के मापदंडों पर खरे नहीं उतर पाएं हैं। एक और विश्लेषक के मुताबिक यह बात देखने लायक होगी कि यह उपकरण भारतीय हालातों में कैसा काम करते हैं। अक्सर सस्ते उपकरण बाद में महंगे साबित होते हैं। अगर देखा जाए तो यह एक बड़ा जोखिम उठाने जैसा ही कदम है।


हालांकि चीनी कंपनियां अपने उत्पादों की गुणवत्ता पर संदेह की बात को बेवजह बताती हैं। उनके अनुसार इस बात की कोई वजह ही नहीं है क्योंकि चीन में भी सभी विद्युत कंपनियां वही उत्पाद इस्तेमाल करती हैं। भारत में चीनी कंपनी के अधिकारी ने कहा कि यह बात साबित हो चुकी है कि चीनी उत्पाद किसी भी उत्पाद के मुकाबले कमतर नहीं आंके जाते हैं।

First Published - April 11, 2008 | 12:11 AM IST

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