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आवेदनों को स्वत: स्वीकारने की कवायद

Last Updated- December 12, 2022 | 2:31 AM IST

दिवाला समाधान मामलों को स्वीकार करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए सरकार प्रक्रिया को स्वचालित बनाने पर विचार कर रही है जिसकी शुरुआत कम से कम वित्तीय ऋणदाताओं के साथ हो सकती है। हालांकि, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि ऐसे उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत सूचना उपयोगिता प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता पड़ेगी।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘आईबीसी की धारा 7 के तहत मामलों को स्वचालित मार्ग से जाने में सक्षम होना चाहिए। सूचना उपयोगिता को इसे सक्षम बनाना होगा। उसके बाद राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट को मामले को स्वीकार करने में हस्तक्षेप नहीं करना होगा।’
सूचना उपयोगिता किसी ऋण या दावे के संबंध में सूचना के लिए कानूनी साक्ष्य का संग्रह है जिसे वित्तीय या परिचालक लेनदार की ओर जमा कराया जाता है और ऋण के पक्षकार उसकी पड़ताल करते हैं और प्रमाणित करते हैं।      
नैशनल ई-गवर्नेंस सर्विस लिमिटेड आईबीसी के तहत भारतीय ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला बोर्ड के पास पंजीकृत देश की पहली सूचना उपयोगिता है। इसके प्रमुख उद्देश्यों में से एक समयबद्घ समाधान है जिसके लिए वह ऋणदाताओं और न्यायनिर्णायक प्राधिकारियों को सत्यापित सूचनाएं मुहैया कराती है।
14 दिनों के भीतर कॉर्पोरेट दिवालिया आवेदनों को स्वीकार करने की समयसीमा को शुरू करने के लिए आईबीसी में संशोधन किया गया था। हालांकि, व्यावहारिक तौर पर आवेदनों को स्वीकार करने में महीनों का वक्त लग जाता है। प्रक्रिया में देरी की यह भी एक वजह है। देरी होने से संपत्ति के मूल्य में गिरावट आने लगती है।
नीति शिखा और उर्वशी शाह द्वारा कॉर्पोरेट दिवाला और समाधान समयसीमा के आकलन पर शोध पत्र के मुताबिक कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के तहत आवेदनों को स्वीकार करने के लिए औसत दिनों की संख्या 133 दिन है। समाधान पेशेवरों द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि इसमें प्रतिक्रिया देने वाले 74 फीसदी लोग मानते हैं कि सीआईआरपी आरंभ करने में 90 दिनों से अधिक का वक्त लगता है।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ऋण वसूली में होने वाला नुकसान (हेयर कट) भी इस बात से जुड़ा है मामले को कितनी जल्दी स्वीकार किया जाता है। प्रबंधन के पास कंपनी की संपत्ति को दूसरी तरफ मोडऩे और छीनने का विकृत प्रोत्साहन हो सकता है। इसीलिए मामले को तेजी से स्वीकार किया जाना चाहिए।’
संशोधित भारतीय ऋणशोधन अक्षमता और दिवाला बोर्ड नियम, 2016 के मुताबिक कॉर्पोरेट दिवाला प्रक्रिया में और अधिक अनुशासन, पारदर्शिता और जिम्मेदारी लाने के लिए समाधान पेशेवरों को न्यायनिर्णायक प्राधिकरी को कॉर्पोरेट देनदार के टाल मटोल सौदों के बारे में सूचित करने की आवश्यकता होगी।
आईबीबीआई ने कहा, ‘यह न केवल ऐसे सौदों में खोए हुए मूल्य को वापस लेता है बल्कि इस प्रकार के लेनदेन को हतोत्साहित भी करता है जिससे कंपनी पर दबाव नहीं पड़ता है। खोए हुए मूल्य को वापस लेने समाधान योजना के जरिये कॉर्पोरेट देनदार के पुनर्गठन की संभावना बढ़ जाती है।’
कॉर्पोरेट व्यक्तियों के लिए दिवालिया समाधान प्रक्रिया के लिए नए नियमों में समाधान पेशेवर को पंजीकृत मूल्यकर्ता सहित किसी पेशेवर को नियुक्त करने की अनुमति दी जाती है जो कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के दौरान उसके कर्तव्यों को पूरा करने में सहायक होता है। आईबीबीआई ने कहा, ‘इस प्रकार की नियुक्तियां आस्तीन की लंबाई के सिद्घांत पर की जाएगी ताकि उद्देश्यपूर्ण और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जा सके। शुल्क के लिए चालान पेशेवर के नाम से जारी किया जाएगा और भुगतान उसके बैंक खाते में किया जाएगा।’

First Published - July 21, 2021 | 11:50 PM IST

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