इस हफ्ते भारत के स्टार्टअप सेक्टर को लेकर देश के अंदर ही सवाल उठने लगे। स्टार्टअप महाकुंभ 2025 के दौरान केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने चिंता जताई और पूछा – “क्या हम सिर्फ डिलीवरी बॉय और गर्ल बनने तक ही सीमित रहेंगे?” उनके इस बयान ने इस बहस को जन्म दिया कि भारत के स्टार्टअप क्या सिर्फ डिजिटल सर्विस और ऐप बनाने तक ही सीमित रह गए हैं, जबकि दुनिया के बाकी देश डीप-टेक, सेमीकंडक्टर, एआई, इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) और रोबोटिक्स जैसी महत्वपूर्ण तकनीकों पर ध्यान दे रहे हैं।
पिछले 20 सालों में भारत और चीन को स्टार्टअप ग्रोथ के दो बड़े इंजन माना जाता था। लेकिन 2024 तक चीन इस दौड़ में भारत से कहीं आगे निकल गया। अलीबाबा, टेनसेंट और बाइटडांस जैसी कंपनियां दुनियाभर में पहचान बना चुकी हैं, जबकि भारत की कई स्टार्टअप कंपनियां फंडिंग, स्केल और प्रॉफिटबिलिटी जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं।
चीन की बढ़त सरकारी नीतियों और भारी निवेश के कारण हुई। जहां चीन की सरकार ने स्टार्टअप को आगे बढ़ाने के लिए $1.4 ट्रिलियन की टेक्नोलॉजी इन्वेस्टमेंट योजना बनाई, वहीं भारत की सरकार ने सिर्फ $150 बिलियन का फंड आवंटित किया। 2024 में चीन ने सिर्फ हाई-टेक कंपनियों के लिए $361 बिलियन का टैक्स छूट पैकेज दिया, जबकि भारत में ऐसी कोई बड़ी योजना नहीं देखी गई।
भारत के स्टार्टअप्स को फंडिंग की कमी, सरकारी नीतियों में अस्थिरता और डीप-टेक सेक्टर में निवेश की कमी के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 2024 में चीनी स्टार्टअप्स ने $26 बिलियन की वेंचर कैपिटल फंडिंग जुटाई, जबकि भारतीय स्टार्टअप्स को सिर्फ $13.7 बिलियन मिले।
सबसे बड़ी समस्या यह रही कि जहां चीन ने मैन्युफैक्चरिंग, एआई, सेमीकंडक्टर और ऑटोमोबाइल सेक्टर में भारी निवेश किया, वहीं भारत के स्टार्टअप डिजिटल सेवाओं, फूड डिलीवरी और फिनटेक तक ही सीमित रहे। 2024 में भारतीय डीप-टेक स्टार्टअप्स को केवल $1.6 बिलियन की फंडिंग मिली, जबकि चीन ने सिर्फ AI और सेमीकंडक्टर सेक्टर में ही $12.3 बिलियन का निवेश किया।
भारत में फूड डिलीवरी, डिजिटल पेमेंट, हेल्थकेयर और ई-कॉमर्स जैसे सेक्टर में स्टार्टअप्स ने अच्छा प्रदर्शन किया। ज़ोमैटो, स्विगी, पेटीएम जैसी कंपनियां आम जनता के लिए फायदेमंद साबित हुईं। लेकिन डीप-टेक, एआई, रोबोटिक्स और इलेक्ट्रिक व्हीकल जैसी तकनीकों में भारत अभी भी पीछे है।
चीन ने पिछले कुछ सालों में उच्च शिक्षा और रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) पर बड़ा निवेश किया। 2024 में चीन का R&D खर्च $496 बिलियन तक पहुंच गया, जबकि भारत ने केवल ₹20,000 करोड़ ($23.45 बिलियन) का बजट तय किया।
चीन में 2.2 मिलियन R&D वर्कर्स हैं, जबकि भारत में केवल 9 लाख। यानी, तकनीकी इनोवेशन के लिए भारत के पास टैलेंट की कमी है।
हालांकि, भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम पूरी तरह पिछड़ा नहीं है। भारत में सॉफ्टवेयर और एंटरप्राइज टेक के क्षेत्र में अच्छी संभावनाएं हैं। Zoho और Freshworks जैसी कंपनियां ग्लोबल स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं।
भारत की 65% आबादी 35 साल से कम उम्र की है, जो आने वाले समय में एक बड़ा एडवांटेज बन सकती है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सरकार और प्राइवेट सेक्टर डीप-टेक, इनोवेशन और रिसर्च पर ध्यान दें।
चीन की बढ़त का कारण सरकार का समर्थन, हाई-टेक इन्वेस्टमेंट और एक बड़ा घरेलू बाजार रहा। भारत को कैपिटल की कमी, सरकारी नीतियों में अस्थिरता और कंज्यूमर-फेसिंग ऐप्स तक सीमित सोच ने पीछे रखा।
हालांकि, स्टार्टअप का सफर एक तयशुदा रास्ते पर नहीं चलता। अगर सही कदम उठाए जाएं, तो भारत अभी भी इस रेस में वापसी कर सकता है। लेकिन फिलहाल, चीन इस मामले में भारत से मीलों आगे निकल चुका है, और भारत के लिए यह चढ़ाई आसान नहीं होने वाली।