लुफ्थांसा टेकनीक, सिंगापुर की एसटी एयरोस्पेस, फ्रांस की एटीआर और केएलएम, बोइंग की सहायक एविएल जैसी प्रमुख विमानन कंपनियां देश में विमान कलपुर्जों के लिए आपूर्ति केंद्र स्थापित करने की योजना बना रही हैं।
फिलहाल एयर इंडिया, जेट एयरवेज, किंगफिशर, स्पाइसजेट, गो एयर और इंडिगो जैसी विमानन कंपनियां या तो इन कलपुर्जों का आयात करती हैं या विभिन्न निर्माताओं के साथ लीज समझौतों के जरिये इन्हें हासिल करती हैं।
एयरलाइन अपने बेड़े के आकार के आधार पर 30 से 50 प्रतिशत कलपुर्जों की खरीदारी करती हैं और बाकी कलपुर्जों को लीज के जरिये प्राप्त करती हैं। कलपुर्जों पर आने वाला खर्च इंजीनियरिंग और रखरखाव का एक प्रमुख हिस्सा है जिसकी एक एयरलाइन के कुल संचालन खर्च में 9-10 प्रतिशत की भागीदारी होती है।
कलपुर्जों पर आने वाले खर्च के मामले में एयर इंडिया अपने विमानों के रखरखाव पर भारी-भरकम रकम खर्च करती है। एयर इंडिया प्रति वर्ष कलपुर्जों के लिए 140 करोड़ रुपये से 160 करोड़ रुपये खर्च करता है। स्पाइसजेट और किंगफिशर जैसी नई विमानन कंपनियों के लिए यह आंकड़ा तकरीबन 16 करोड़ रुपये है।
एविएल के प्रबंध निदेशक सचिन तापड़िया ने कहा, ‘इन आपूर्ति केंद्रों की स्थापना होने से एयरलाइनों के लिए किसी भी समय कलपुर्जों की खरीदारी करने में सहूलियत होगी। साथ ही इससे कलपुर्जों की ढुलाई पर लगने वाले समय की भी बचत होगी। इन केंद्रों के खुलने से एयरलाइनों को कलपुर्जों के भंडारण की भी अधिक आवश्यकता नहीं होगी। कलपुर्जों के भंडारण पर खर्च होने वाली राशि का इस्तेमाल अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकेगा।’
विश्व में सबसे बड़े एयरक्राफ्ट कलपुर्जा आपूर्तिकर्ताओं में से एक एविएल शुरुआत में दो आपूर्ति केंद्र नागपुर और नोएडा में स्थापित करेगी।तापड़िया ने कहा, ‘विमानन कंपनियां कभी-कभी यह ठीक से सुनिश्चित नहीं कर पाती हैं कि कलपुर्जों का भंडारण कब और कितना किया जाए। एविएल विभिन्न एयरलाइनों के बेड़ों का आकलन करेगी और उन्हें सॉल्युशन मुहैया कराएगी।’
स्पाइसजेट जैसी कई घरेलू एयरलाइनें देश में आपूर्ति केंद्रों की स्थापना के लिए अपने अंतर्राष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं से भी बातचीत कर रही हैं। स्पाइसजेट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘हमने कलपुर्जों की आपूर्ति के लिए केएलएम के साथ समझौता किया है। हमने भारत में आपूर्ति केंद्रों के निर्माण के लिए केएलएम से बातचीत की है।’
इसी तरह जेट एयरवेज, सिम्प्लीफ्लाई डेक्कन और किंगफिशर को कलपुर्जों की आपूर्ति करने वाली लुफ्थांसा टेकनीक भी अन्य एयरलांइनों की तरह इस वर्ष के अंत तक बेंगलुरु में एक आपूर्ति केंद्र स्थापित करने की योजना बना रही है।बोइंग का अनुमान है कि अगले कुछ वर्षों में भारतीय विमानन उद्योग के लिए कलपुर्जों का बाजार तकरीबन 120 अरब रुपये तक पहुंच जाएगा।
तापड़िया के मुताबिक, ‘अधिकांश एयरलाइनें नए विमान खरीद रही हैं जिनके लिए 2011 तक उन्हें कलपुर्जे बदलने की जरूरत पड़ेगी। 2011 तक भारत में कलपुर्जा बाजार बूम के दौर से गुजरेगा।’
हालांकि इस उद्योग को कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ सकता है। कराधान और ढांचागत मुद्दे इस उद्योग को प्रभावित कर सकते हैं। शुरुआत में कलपुर्जों के भारत में निर्माण के दौरान आपूर्तिकर्ताओं को आयात पर निर्भर रहना पडेग़ा। इसका मतलब है 50 प्रतिशत तक का उत्पाद शुल्क, 12.5 प्रतिशत का मूल्य वर्धित कर (वैट) और 4 प्रतिशत का चुंगी शुल्क चुकाना होगा।
यदि सरकारी नीति के तहत इन कलपुर्जों का आयात किया जाएगा तो एयरलाइन इन करों की मार से बच सकती हैं। इसके अलावा कुशल श्रमिकों का अभाव भी इस उद्योग के लिए एक चुनौती साबित हो सकती है।