देश का दूसरा सबसे बड़ा कमोडिटी एक्सचेंज नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) कार्बन उत्पादों के साझा कारोबार के लिए विदेशी एक्सचेंजों के साथ बातचीत कर रहा है।
एनसीडीईएक्स को उम्मीद है कि अगले 6 महीनों में इस पर सहमति बन जाएगी। इसके बाद जिन एक्सचेंजों के साथ गठजोड़ किया जाएगा, उन देशों में जो भी नियंत्रक बाजार को नियंत्रित कर रहा होगा, उसको मसौदे के ब्यौरे से अवगत करा दिया जाएगा। सब औपचारिक मंजूरियों के बाद सहभागी कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने वाले पदार्थों (कार्बन एमिशन रिडक्शन्स, सीईआर) की खरीद-फरोख्त से जुड़ सकेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब डिलिवरी की शर्तें आसान हो जाएंगी तब सहभागी इसमें जोर-शोर से भाग लेना शुरू कर देंगे। विशेषतौर पर, जब साझा डिलिवरी व्यवस्था अमल में आ जाएगी तब सहभागी वैश्विक निविदा के लिए भी अपनी दावेदारी कर सकेंगे। वैश्विक स्तर पर कारोबार से न केवल कारोबार में पारदर्शिता आएगी बल्कि इससे अच्छी कीमतें भी मिल पाएंगी। इससे सीईआर उपभोक्ताओं को क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे कम उत्सर्जन होगा।
एनसीडीईएक्स के उपाध्यक्ष नरेंद्र राठौड़ कहते हैं कि सीईआर, यूरोपीय एनओएक्स और एसओटू जैसे कार्बन उत्पादों के कारोबार से जुड़े एक्सचेंजों से बातचीत निर्णायक दौर में है। लेकिन इसके अलावा हम उन एक्सचेंजों से भी बात कर रहे हैं जो इनके कारोबार से तो नहीं जुड़े हैं लेकिन काफी संभावनाओं से भरे हैं।
गौरतलब है कि देशी एक्सचेंज ने इस साल दिसंबर में डिलिवरी के लिए सीईआर के वायदा कारोबार की शुरूआत की है। इस अनुबंध ने एक्सचेंज के रोजान के कारोबार में 200 करोड़ रुपये का इजाफा किया है। दूसरी ओर दिसंबर 2009, 2010, 2011 और 2012 में डिलिवरी के लिए वार्षिक अनुबंध की घोषणा अगले 4 से 6 हफ्तों के बीच हो सकती है।
फिलहाल यूरोपियन क्लाइमेट एक्सचेंज (ईसीएक्स) नोर्डपूल, यूरोपियन एनर्जी एक्सचेंज, एनवाईएमईएक्स का ग्रीन एक्सचेंज, सीईआर बाजार के अगुआ एक्सचेंज हैं। एनसीडीईएक्स इसके अलावा वॉलंटरी रिडक्शन एमीशन (वीईआर) के कारोबार में भी संभावनाएं तलाश रही हैं। इसमें भी फिलहाल ईसीएक्स ही कारोबार कर रहा है।
राठौड़ कहते हैं कि वैसे सीईआर की सफलता वीईआर के कारोबार के लिए संभावनाओं को मजबूत करेगी। फिलहाल शुरूआती रुझान तो उत्साहजनक हैं लेकिन अभी हम बाजार की स्वीकृति मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि डिलिवरी तब ही संभव हो पाती है जब खरीदार और बेचने वाले के बीच बातें तय हों। इसका सीधा सा मतलब है कि जब खरीदार और बेचने वाले के बीच सहमति हों तब ही सौदा संभव हो पाता है। एक बार जब डिलिवरी के लिए कॉमन प्लेटफॉर्म तैयार हो जाएगा तब जो नियत कांटैक्ट हैं तब वैश्विक निविदा के लिए उन पर भी विचार किया जाएगा।
गौरतलब है कि भारत ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय फोरम के तहत कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की बात नहीं की है, इसके चलते जो देशी कंपनियां हैं वे केवल सीईआर और वीईआर में ही कारोबार कर सकती हैं।
चीन के बाद भारत ही सीईआर की सबसे अधिक आपूर्ति करता है। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज) के पंजीकृत प्रोजेक्ट से सालाना 14.69 फीसदी अनुमानित सीईआर का उत्पादन करेगा।