आर्सेलर-मित्तल ने तकरीबन 1 अरब टन लौह अयस्क के भंडार वाली ब्राजील की कंपनी का सौदा 81 करोड़ डॉलर में किया है। इस सौदे को खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर होने की इस्पात कंपनियों की जद्दोजहद के तौर पर देखा जा रहा है।
इस सौदे के बारे में जानकारों का मानना है कि यह कुछ और नहीं इस्पात कंपनियों द्वारा आत्मनिर्भर होने की छटपटाहट है। उधर एक अन्य मामले में कोयले की तलाश कर रही सार्वजनिक क्षेत्र की 5 कंपनियों के संघ को कोयला मिल तो गया पर उसका कथित मूल्य काफी अधिक रहा है।
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष सुशील कुमार रूंगटा ने बताया कि कोयला का भंडार मिल तो गया पर उसका कथित मूल्य काफी है। ओस्लो में सूचीबद्ध लंदन माइनिंग ने पिछले साल मई में ब्राजील से 6.8 करोड़ डॉलर का अयस्क खरीदा था जो अब कौड़ी का भाव लग रहा है। तब कंपनी ने इसे विकसित करने में और 3.2 करोड़ डॉलर का निवेश किया।
16 महीने बाद की स्थिति यह है कि लंदन माइनिंग को खरीदार मिल गया है। आर्सेलर-मित्तल इसके लिए आठ गुनी कीमत देने को राजी हो गयी है। लंदन माइनिंग के शेयरधारकों को खुशी मनाने की पूरी वजह कंपनी ने दी है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, कंपनी ने केवल इसी सौदे में 43 करोड़ डॉलर का मुनाफा जो कमाया है।
लेकिन आर्सेलर मित्तल को यह सौदा सोचने पर बाध्य करती है कि किसी भी परिस्थिति में वाजिब कीमत पर सौदा करने के लिए मशहूर इस कंपनी को आखिर क्यों इतनी ऊंची कीमत पर अयस्क खरीदना पड़ा। सौदे का सही समय समझ पाने में यह कंपनी विफल क्यों रही? कंपनी का दावा है कि 2012 तक लौह अयस्क के मामले में वह 75 फीसदी तक निर्भर हो जाएगी।
अभी की स्थिति है कि उसके पास अपनी जरूरत का केवल 45 फीसदी लौह अयस्क मौजूद है। इसमें कोई शक नहीं कि आर्सेलर-मित्तल अपना यह लक्ष्य पाने की पूरी कोशिश करेगी। क्योंकि मौजूदा सीजन में अयस्क की आपूर्ति के लिए इसे ब्राजील की सीवीआरडी कंपनी को 87 फीसदी ज्यादा भुगतान करना पड़ा है।
उल्लेखनीय है कि आर्सेलर-मित्तल का विस्तार दुनिया के लगभग सभी महादेशों में है। पिछले साल इसने 11.8 करोड़ टन इस्पात का उत्पादन किया था जो भारत के कुल इस्पात उत्पादन से दोगुने से भी अधिक है। कंपनी के निदेशक और मुख्य वित्तीय अधिकारी आदित्य मित्तल का कहना है कि उनकी कपंनी द्वारा ब्राजीली कंपनी का अधिग्रहण आश्वस्त करता है कि कच्चे माल की सख्त आपूर्ति के बीच भी अयस्क आपूर्ति का उसका आधार मजबूत है।
यही नहीं कंपनी ब्राजील से अयस्क जुगाड़ने में और 70 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी। कंपनी के मुताबिक, यूरोप के मिलों के लिए ब्राजील से मौजूदा 30 लाख टन की बजाए 1 करोड़ टन अयस्क हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। कंपनी की रणनीति को गौर से देखने पर समझ में आता है कि मामला क्या है! असल में कंपनी भिन्न-भिन्न जगहों पर अयस्कों का भंडार इकट्ठा करने का प्रयास करेगी।
यूक्रेन की खनिज कंपनी फॉरेक्सपो अपना विस्तार करने के लिए किसी पार्टनर की तलाश कर रही है। आर्सेलर-मित्तल की निगाहें यहां है। चीन की इस्पात कंपनियां इस समय बीएचपी बिलिटन और रियो टिंटो की वजह से 97 फीसदी ऊपर चढ़ चुकी अयस्क की कीमतों से परेशान है।
इसके बाद चीन ने अपनी मंशा जाहिर की और कहा कि वह दुनिया के कुल इस्पात उत्पादन का 35 फीसदी लक्ष्य हासिल करने के लिए दुनिया का लगभग एक तिहाई लौह अयस्क भंडार अपने कब्जे में करने की पुरजोर कोशिश करेगी। इस घोषित लक्ष्य को पाने के लिए चीन की कंपनियां राजनीतिक तौर पर अस्थिर पर संसाधनों के मामले में धनी अफ्रीकी देशों का रुख कर रही हैं।
यही नहीं वह ऑस्ट्रेलिया और भारत में भी काफी निवेश कर रहा है। यहां उड़ीसा में सिनोस्टील नामक कंपनी ने 4 अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की है जो किसी चीनी कंपनी द्वारा देश में किया जाने वाला सबसे बड़ा निवेश है। चीनी कंपनियों की चिंता समझी जा सकती है। एक तो, 2015 के लिए चीन ने इतना महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है और दूसरे स्थानीय स्तर पर पाए जाने वाले अयस्क की गुणवत्ता काफी अच्छी नहीं है।