राजस्थान के ग्वार गम उद्योग का डंका कभी देश-विदेश में बजता था। आलम यह था कि ग्वार गम के एक उद्योगपति ने अपनी सियासी पार्टी बनाकर राज्य में विधान सभा चुनाव लड़ डाला और कुछ सीटें भी जीत गए। तब 80 फीसदी से अधिक ग्वार गम उत्पादक राजस्थान में थे और जोधपुर ग्वार गम मिलों का सबसे बड़ा अड्डा था।
मगर अब राजस्थान और जोधपुर ग्वार गम उद्योग की पहचान जिंदा रखने के लिए जूझ रहा है। ग्वार गम इकाइयां यहां बंद हो रही हैं और हरियाणा, गुजरात में बढ़ रही हैं। जानकारों का कहना है कि राजस्थान में दूसरे राज्यों से ज्यादा कर ने ग्वार गम उद्योग की कमर तोड़ दी है। साथ ही निर्यात मांग में गिरावट ने भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ग्वार गम का विकल्प आने के बाद अमेरिका को इसका निर्यात खास तौर पर काफी घट गया है। जब दौर अच्छा था तब आधे से ज्यादा ग्वार गम अमेरिका को ही निर्यात होता था मगर अब यह हिस्सेदारी 30 फीसदी से भी कम रह गई है।
दिन बदले तो ग्वार किसान भी इसकी खेती में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, जिससे राजस्थान में ग्वार का रकबा घट रहा है। कभी 1.25 लाख रुपये प्रति क्विंटल तक बिक चुका ग्वार गम अब 10,000 रुपये क्विंटल कीमत के लिए भी तरस रहा है।
ग्वार गम की इकाइयां अब राजस्थान में बंद होकर दूसरे राज्यों में खुल रही हैं। राजस्थान ग्वार दाल (ग्वार गम) निर्माता संघ के पूर्व अध्यक्ष अशोक तातेर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि विदेश से ग्वार गम की मांग कमजोर पड़ने से उद्योग की मुश्किलें बढ़नी शुरू हो गईं। मगर असली मार राजस्थान में लगने वाले मंडी शुल्क की पड़ी। इस शुल्क के कारण ही यह उद्योग यहां से जाने लगा है। राजस्थान के ग्वार गम उद्यमी अशोक धारीवाल कहते हैं कि यहां 1.6 फीसदी मंडी शुल्क और उपकर को मिलाकर ग्वार पर कुल 2.60 फीसदी कर ले लिया जाता है। दूसरे राज्यों में ये कर लगते ही नहीं हैं। इसी बोझ से परेशान कारखाने बंद हो रहे हैं।
सुमति ग्वार गम के श्रेयांस मेहता बताते हैं कि दशक भर पहले प्रदेश में ग्वार गम की 200 से ज्यादा इकाइयां थीं मगर अब घटकर 50 से भी कम रह गई हैं। जो बची हैं वे भी पूरी क्षमता से नहीं चल रही हैं। कारखाने पूरी क्षमता पर नहीं चलते हैं तो ग्वार से ग्वार गम बनाने पर फायदे के बजाय कई बार घाटा हो जाता है। दूसरे राज्यों में मंडी शुल्क नहीं लगने के कारण हरियाणा और गुजरात में यह उद्योग लगातार पनप रहा है। मंडी शुल्क के कारण राजस्थान का ग्वार भी हरियाणा चला जाता है और वहां से ग्वार का पशु चारा बनाकर वापस राजस्थान भेजा जाता है।
राजस्थान में ग्वार गम का सबसे बड़ा केंद्र जोधपुर रहा है। धारीवाल ने बताया कि 10 साल पहले यहां ग्वार गम की 100 से ज्यादा यूनिट थीं मगर अब 20-25 ही बची हैं। तातेर ने भी कहा कि ग्वार गम के कुल निर्यात में जोधपुर की हिस्सेदारी तेजी से घटी है। पहले हिस्सेदारी 75-80 फीसदी थी, जो अब 50 फीसदी से भी कम रह गई है। जिले में पुरानी ग्वार गम मिलें बंद हो रही हैं और नई मिल कोई लगाना नहीं चाहता क्योंकि उस पर मंडी शुल्क देना होगा। दूसरी जगहों पर मंडी समिति होने के कारण नई मिल पर शुल्क नहीं लगता।
ग्वार गम उद्यमी और निर्यातक राजेंद्र धारीवाल ने बताया कि सरकार नई ग्वार गम इकाई लगाने पर जीएसटी में छूट, बिजली में रियायत, मंडी शुल्क से राहत जैसी कई तरह की रियायतें दे रही है। ऐसे में नई ग्वार गम इकाइयां भी पुरानी इकाइयों के लिए चुनौती बन रही हैं क्योंकि नई इकाइयां उन इलाकों में लग रही हैं, जहां मंडी समिति नहीं हैं ताकि छूट की अवधि में कोई शुल्क नहीं देना पड़े।
देश में बनने वाले 70-80 फीसदी ग्वार गम का निर्यात किया जाता है। एक दशक पहले ग्वार गम की निर्यात मांग ऐसी बढ़ी कि भाव 1 लाख रुपये क्विंटल के पार चले गए। धारीवाल ने बताया कि कच्चे तेल की ड्रिलिंग में ग्वार गम का इस्तेमाल बहुत होता है। इसकी मांग अमेरिका में काफी रहती है। वित्त वर्ष 2011-12 में इसका निर्यात चरम पर गया, जब एपीडा के आंकड़ों के मुताबिक 7 लाख टन ग्वार गम का निर्यात हुआ था, जिसकी कीमत 16,523 करोड़ रुपये थी। इसके बाद कीमत तो बढ़ी मगर निर्यात की मात्रा कम होती गई और 2024-25 में केवल 4.53 लाख टन ग्वार गम निर्यात हुआ, जिसकी कीमत 4,815 करोड़ रुपये थी।
धारीवाल ने बताया कि पिछले कुछ वित्त वर्षों से 4,500 से 5,000 करोड़ रुपये के ग्वार गम का निर्यात हो रहा है और देश में 1,000 से 1,500 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इस तरह ग्वार कम का कुल कारोबार 5,500 से 6,000 करोड़ रुपये के बीच ही है। जो 10-12 साल पहले 25,000 से 30,000 करोड़ रुपये के बीच था। उद्योग इस समय 20-25 हजार लोगों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रोजगार दे रहा है, जबकि 10 साल पहले 80,000 से 1 लाख लोगों को इससे रोजगार मिल रहा था।
धारीवाल ने कहा कि तेल की ड्रिलिंग बढ़ने पर ग्वार गम के भाव उछले तो इसके विकल्प तलाश लिए गए, जिसके बाद निर्यात मांग एकदम लड़खड़ा गई। साथ ही चीन और पाकिस्तान का ग्वार गम सस्ता होने से भी भारत को मुश्किल हो रही है। 2011-12 में 7 लाख टन ग्वार गम निर्यात में 4.30 लाख टन अमेरिका को ही गया था मगर पिछले वित्त वर्ष में 4.53 लाख टन ग्वार गम निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी केवल 55,440 टन रही।
ग्वार गम के दाम जमीन पर आने और निर्यात मांग घटकर ठहर जाने से किसान भी इसकी खेती में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। इसीलिए राजस्थान में इसका रकबा घटा है। राजस्थान सरकार के कृषि विभाग के मुताबिक चालू खरीफ सीजन में 18 अगस्त तक (ग्वार की बोआई लगभग खत्म हो चुकी है) 23.93 लाख हेक्टेयर रकबे में ग्वार की बोआई हुई थी, जो पिछले साल 18 अगस्त तक की बोआई से 12 फीसदी कम है। यह रकबा ग्वार के सामान्य क्षेत्रफल 27.18 लाख हेक्टेयर से 12 फीसदी कम है। ग्वार का रकबा इस साल के लक्ष्य 25 लाख हेक्टेयर से भी कम है।