एकाएक हुई बारिश से फसलों का नुकसान झेल रहे किसानों की मुश्किलें कई तरह से बढ़ गई हैं। गेहूं किसानों की हालत और भी खराब है क्योंकि पैदावार घटने से वाजिब कीमत मिलना तो दूर, दानों की गुणवत्ता बिगड़ने के कारण भाव नीचे ही आ रहे हैं। इसीलिए किसान भरपाई के लिए सरकार से मुआवजा मांग रहे हैं।
मध्य प्रदेश के धार जिले के किसान सुनील पाटीदार कहते हैं कि उन्होंने 15 एकड़ से अधिक जमीन में गेहूं की खेती की थी। आम तौर पर 1 एकड़ में 20 से 22 क्विंटल गेहूं पैदा होता है। लेकिन इस साल असमय बारिश से 17-18 क्विंटल उपज ही हुई है। पैदावार घटने के साथ ही गेहूं की चमक भी फीकी पड़ गई है, जिससे सही दाम नहीं मिल रहे हैं।
पाटीदार ने कहा कि 100 क्विंटल से ज्यादा गेहूं करीब 2,100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बेच दिया है। गुणवत्ता अच्छी होती तो 2,400-2,500 रुपये प्रति क्विंटल कीमत मिल सकती थी। इस तरह कम पैदावार के कारण जो नुकसान हुआ है, वो अलग है। भाव गिरने से ही 300-400 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हो गया है। पाटीदार को गेहूं के अलावा लहसुन की खेती में भी बारिश से नुकसान हुआ है। उनका कहना है कि सरकार को असमय बारिश से हुए नुकसान के बदले किसानों को मुआवजा देना चाहिए।
मुआवजे की मांग मध्य प्रदेश के किसान और किसान स्वराज संगठन के अध्यक्ष भगवान मीणा भी कर रहे हैं मगर उनकी मांग मुआवजे तक सीमित नहीं है। उनका कहना है कि बारिश के कारण गेहूं की चमक फीकी पड़ने से किसानों को 300 से 500 रुपये प्रति क्विंटल कम भाव मिल रहा है, जिसलिए सरकार को 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल बोनस भी देना चाहिए। किसानों का तर्क है कि मध्य प्रदेश सरकार ने नमी के मानक में 10 फीसदी अतिरिक्त राहत दी है मगर सरकारी खरीद इस समय पर्याप्त नहीं हो रही है, इसलिए किसानों को मजबूरी में कम भाव पर गेहूं बेचना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश के किसान और भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) के धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि सरकार 33 फीसदी से कम फसल खराब होने पर ही नुकसान मानती है। ऐसे में इससे कुछ कम नुकसान वाले किसान मुआवजे से वंचित रह जाएंगे। उनका सुझाव है, ‘सरकार को नुकसान की तीन श्रेणियां बनानी चाहिए। पहली 1 से 32 फीसदी, दूसरी 33 से 70 फीसदी और तीसरी 70 से 100 फीसदी। जितना नुकसान हो, उतना ही मुआवजा दिया जाए। मगर सबसे जरूरी यह है कि सरकारी अधिकारी मुआवजे का सही आकलन करें।’
हरियाणा के सोनीपत में 4 एकड़ जमीन पर गेहूं उगाने वाले सागर राणा बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों में बारिश से गेहूं की फसल को 30 से 40 फीसदी नुकसान हुआ है। ओले से गेहूं की फसल खेतों में गिर गई है, इसलिए कंबाइन के बजाय मजदूर इसे हाथ से काटेंगे और मजदूरों की किल्लत परेशानी का कारण बनेगी। इस बार गेहूं में नमी काफी ज्यादा है मगर सरकारी खरीद के लिए 14 फीसदी से ज्यादा नमी नहीं होनी चाहिए। इसलिए राणा की मांग है कि हरियाणा और पंजाब सरकार भी मध्य प्रदेश सरकार की तरह नमी की मात्रा 10 फीसदी बढ़ा दे। साथ ही 40 फीसदी तक नुकसान होने के कारण किसानों को प्रति एकड़ 50,000 रुपये मुआवजा मिलना चाहिए।
सरसों की खेती करने वाले ग्वालियर जिले के किसान रिंकू सिंह कहते हैं कि बारिश से पहले उनकी सरसों कट चुकी थी, इसलिए असमय बारिश से नुकसान तो नहीं हुआ है। लेकिन बोआई देरी से होने के कारण उत्पादकता जरूर प्रभावित हुई है। ट्रैक्टर खरीदने के लिए सिंह को रकम की जरूरत थी, इसलिए करीब 15 क्विंटल सरसों 4,950 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचनी पड़ी, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,450 रुपये प्रति क्विंटल है। अभी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद शुरू नहीं हुई है, इसलिए मजबूरी में कम भाव पर सरसों बेचनी पडी। सरकारी खरीद में विलंब के कारण उन किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए, जिन्होंने सरसों समर्थन मूल्य से कम पर बेची है।