संवत 2080 सोने और चांदी के लिए अब तक का सबसे बेहतरीन साल साबित हुआ, जिसमें दोनों धातुओं ने क्रमशः 32% और 39% का रिटर्न दिया। यह बढ़ोतरी उस समय हुई जब आयात शुल्क में 9 प्रतिशत अंक (900 बेसिस पॉइंट) की कटौती की गई थी, जिसके बाद घरेलू सोने की कीमतों में 9% की गिरावट देखी गई। यह रिटर्न संवत 2067 के बाद से सबसे अधिक है। संवत 2067 यानी साल 2011.
उस वर्ष सोने ने 36% और चांदी ने 40% का रिटर्न दिया था। तब सोने की कीमतें $2,000 प्रति औंस से ऊपर और चांदी की कीमतें ₹49,000 प्रति किलो के शिखर पर पहुंच गई थीं। उस समय भी भारतीय बाजार में कीमती धातुओं में बड़ी वृद्धि देखी गई थी।
संवत 2080 में सोने की कीमतों में यह बढ़ोतरी तीन बड़े वैश्विक कारणों से हुई। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) की सितंबर तिमाही रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम एशिया में बढ़ता तनाव और अमेरिका के चुनाव में अनिश्चितता के कारण सोने की मांग बढ़ी। इसके अलावा, वैश्विक ब्याज दरों में बदलाव ने भी सोने की कीमतों को बढ़ावा दिया।
उच्च सोने की कीमतों के चलते संवत 2080 में घरेलू आभूषण उद्योग ने कई चुनौतियों का सामना किया
संवत 2080 में सोने की ऊंची कीमतों के कारण भारतीय आभूषण उद्योग को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जोस अलुक्कास के मैनेजिंग डायरेक्टर वर्गीस अलुक्कास ने बताया कि इस सीजन में ऊंची कीमतों, ऑनलाइन रिटेलर्स की बढ़ती प्रतिस्पर्धा और आर्थिक अनिश्चितताओं के चलते उपभोक्ताओं ने महंगे आभूषण खरीदने में सतर्कता बरती।
पिछले दो संवत वर्षों में सोने की कीमतों में 60% की वृद्धि हुई है, जिसने उपभोक्ताओं के खरीदारी के तरीके को बदल दिया है। वर्गीस ने बताया कि सोने की कीमतों में तेज वृद्धि के कारण उपभोक्ता महंगे और भारी आभूषणों की बजाय हल्के गहनों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे दिवाली के समय बिक्री के आंकड़े पिछले साल की तुलना में कम रहे हैं।
जुलाई 2024 के अंतिम सप्ताह में सोने की कीमतें ₹70,000 प्रति 10 ग्राम से ऊपर जाने पर सरकार ने आयात शुल्क में कटौती की घोषणा की, जिससे सोने-चांदी की कीमतों में 9% की गिरावट आई। इसके बाद मांग में तेजी आई, और सितंबर में समाप्त तीन महीनों में सोने का आयात 360 टन तक पहुंच गया।
संवत 2080 की एक और बड़ी घटना भारत के पहले सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) का परिपक्व होना था, जिसने लगभग 14% का टैक्स-फ्री रिटर्न दिया। 2015-16 में जारी किए गए इन बॉन्ड्स का मकसद भौतिक सोने की मांग को SGB की ओर मोड़ना था, लेकिन इसके खरीदारों में ज्यादातर वे लोग नहीं थे जो बार या सिक्के खरीदते हैं। मौजूदा वित्तीय वर्ष में अभी तक SGB का कोई नया इश्यू नहीं आया है, हालांकि सरकार के पास फंड जुटाने का यह विकल्प मौजूद है।
सोने में निवेश की मांग में उछाल, आयात शुल्क में कटौती से पारदर्शिता को बढ़ावा
लंदन स्थित मेटल कंसल्टेंसी मेटल फोकस के प्रमुख सलाहकार चिराग शेट ने बताया कि आयात शुल्क में कटौती से सोने में निवेश की मांग बढ़ी है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) के अनुसार, सितंबर तिमाही में करीब 76.7 टन सोने के बार और सिक्के बेचे गए, जो एक दशक बाद सोने में इतनी मजबूत मांग को दिखाता है।
आयात शुल्क में कटौती से अनौपचारिक सोने के आयात में भी कमी आई है, जिससे भारतीय बुलियन बाजार में पारदर्शिता बढ़ सकती है। शेट ने कहा, “आयात शुल्क में कटौती के कारण अब तस्करी फायदेमंद नहीं रही, और इससे संगठित कंपनियों को लाभ होगा क्योंकि पारदर्शिता में सुधार हो रहा है।”
अब बड़ा सवाल यह है कि पिछले दो साल के अच्छे रिटर्न के बाद क्या सोने की कीमतें आगे भी बढ़ेंगी। अमेरिका के निवेश सलाहकार निगम अरोड़ा के अनुसार, सोने की कीमतें अमेरिकी चुनाव के नतीजों पर निर्भर कर सकती हैं। उन्होंने कहा, “अगर चुनाव में किसी एक पार्टी को राष्ट्रपति पद के साथ हाउस और सीनेट में बहुमत मिल जाता है, तो सोने की कीमतें प्रभावित हो सकती हैं। फिलहाल सोने में लगातार बढ़त देखी गई है, जो यह संकेत देती है कि अगर कीमतें गिरती हैं, तो निवेशकों को इसे खरीदने पर विचार करना चाहिए।”
उपभोक्ता मांग के बारे में, जोस अलुक्कास के वर्गीस ने कहा, “आजकल उपभोक्ता एक सरल, सुरक्षित और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण निवेश चाहते हैं, इसलिए सोना एक मजबूत विकल्प है। वैश्विक अनिश्चितताओं और तनाव के बीच सोने की कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना है, जिससे यह लंबे समय के लिए एक अच्छा निवेश बनता है। शादी का सीजन भी करीब है, और हमें पूरा भरोसा है कि इस साल की आखिरी तिमाही में आभूषण उद्योग अच्छी तरह से चलेगा।”