केंद्र सरकार ने 2018 में पहली बार चीनी मिलों को एथनॉल उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु एक महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम की घोषणा की थी। इसके साथ ही तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) द्वारा खरीद के लिए अंतरात्मक कीमत व्यवस्था दी गई थी। इसका उद्देश्य देश में एथनॉल उत्पादन के नए युग की शुरुआत करना था।
सरकार की इस पहल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में पेट्रोल की कुल खपत में से 10 फीसदी में एथनॉल मिलाया जाए। 2022 तक इस लक्ष्य को पूरा किया जाना है। इसके बाद एथनॉल की मिलावट को बढ़ाकर 20 फीसदी किया जा सकता है।
सरकार का यह लक्ष्य महत्त्वाकांक्षी है क्योंकि तब तक (2018) वास्तव में पेट्रोल में एथनॉल की मिलावट मुश्किल से 5 फीसदी को पार करता था। और कुछ वर्षों में यह 3 फीसदी से भी कम रहा था।
पहली बार सरकार ने सी-भारी शीरे, बी-भारी शीरे, गन्ने के रस, सीधे चीनी और गन्ने के अलावा भी टूटे हुए चावल, मक्का आदि से भी उत्पादित एथेनॉल के लिए अंतरात्मक और उचित रूप से आकर्षक कीमत की घोषणा की।
इसके बाद ब्याज अनुदान का महत्त्वाकांक्षी प्रोत्साहन लाया गया जिससे केंद्र सरकार पर 4,500 करोड़ रुपये का भार पड़ा। जून 2018 में घोषित योजना के हिस्से के तौर पर केंद्र ने चीनी मिलों के लिए आसान ऋणों की मंजूरी दी। ये ऋण नई भट्टी स्थापित करने के लिए या पुरानी का मरम्मत कराने, क्षमता को बढ़ाने और चीनी मिलों को गन्ने से एथेनॉल उत्पादन के लिए भेजने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए दिए गए थे। सरकार ने 20,000 करोड़ रुपये से अधिक की अनुमानित ऋण की रकम के वितरण के लिए दो बार ब्याज अनुदान को बढ़ाया है।
हालांकि, इस सबके बावजूद, एथनॉल उत्पादन का विस्तार कार्यक्रम धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। आम तौर पर एक एथेनॉल कंपनी के लिए एकल पर्यावरण मंजूरी लेने में करीब 18 से 20 महीनों का वक्त लगता है।
