ईरान को किए जाने वाले भारत के बासमती चावल निर्यात में चालू वित्त वर्ष के दौरान 20 प्रतिशत तक की गिरावट आने की आशंका है। अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के बाद वहां डॉलर की कमी और भुगतान संबंधी मसलों के कारण यह गिरावट आने के आसार हैं। अपने 13 लाख टन के योगदान के साथ ईरान ने वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान भारत के कुल बासमती चावल निर्यात में लगभग 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी की थी। लेकिन अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों से पैदा हुए भुगतान संकट ने ईरान के पूरे कारोबारी माहौल को पंगु कर दिया है। पिछले साल से शुरू हुआ यह संकट इस साल भी जारी है।
भारतीय बासमती चावल निर्यातकों ने ईरानी खरीदारों से भुगतान प्राप्त करने में असामान्य देरी वहन करनी पड़ी है जिसके लिए वे लोग डॉलर की अनुपलब्धता को जिम्मेदार मानते हैं। इस वजह से भारतीय निर्यातक भुगतान की गारंटी के बिना ईरान की खेपों में कटौती को तरजीही दे रहे हैं।
क्रिसिल के एक अध्ययन में कहा गया है कि इस बात की संभावना है कि सालाना तकरीबन 13 लाख टन का आयात करने वाले ईरान को भारत से 20 प्रतिशत कम मात्रा मिलेगी क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भुगतान संबंधी परेशानी पिछले वित्त वर्ष से जारी है।
कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) द्वारा एकत्रित आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2019-20 में भारत का कुल बासमती चावल निर्यात 44.5 लाख टन (4.33 अरब डॉलर मूल्य) रहा, जबकि इससे पिछले वर्ष यह 44.1 लाख टन (4.72 अरब डॉलर मूल्य) था। भारत ने वित्त वर्ष 2017-18 में 40.1 लाख टन (4.17 अरब डॉलर मूल्य) का निर्यात दर्ज किया था।
कोहिनूर ब्रांड बासमती चावल के उत्पादक और निर्यातक कोहिनूर फूड्स लिमिटेड के संयुक्त प्रबंध निदेशक गुरनाम अरोड़ा ने कहा कि भुगतान प्राप्तियों में देरी के कारण ईरान को किया जाने वाला निर्यात फिलहाल रुका हुआ है। आर्थिक प्रतिबंधों के कारण डॉलर की उपलब्धता कम है। लेकिन ईरान का बाजार काफी जल्दी खुलने वाला है।
इस बीच भारतीय बासमती चावल निर्यातक ईरान को किए जाने वाले निर्यात के नुकसान की भरपाई के लिए सुदूर पश्चिमी एशिया और दक्षिण अमेरिकी बाजारों सहित अन्य बाजारों में संभावना तलाश रहे हैं। यूरोपीय संघ, पश्चिमी मध्य एशिया, सुदूर पश्चिमी एशिया और दक्षिण अमेरिकी देशों से मांग बढ़ी है।
दावत ब्रांड बासमती चावल के उत्पादक एलटी फूड्स के निदेशक अश्विनी अरोड़ा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ हालिया बातचीत में कहा था कि ईरान के निर्यात की मात्रा में गिरावट का भारत के बासमती चावल के कुल निर्यात पर कोई असर नहीं होगा क्योंकि अन्य बाजारों से मांग बढ़ी है।
लॉकडाउन के दौरान बासमती की मांग मजबूत रही है और चावल कंपनियों ने अधिक अग्रिमों या ऋण पत्रों की मांग करते हुए ऑर्डर स्वीकार करने शुरू कर दिए हैं। वे कार्यशील पूंजी ऋण में कटौती करने के लिए अग्रिम धनराशि का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिमी एशिया (ईरान को छोड़कर) की ओर से बासमती चावल की मांग में इजाफा हुआ है। भारत के सालाना बासमती चावल निर्यात में इनका योगदान 50 प्रतिशत से ज्यादा रहता है। इनकी ओर से मांग में यह इजाफा इसलिए हुआ है क्योंकि ये देश वैश्विक महामारी कोविड-19 के बीच खाद्य सुरक्षा का बफर स्टॉक तैयार कर रहे हैं।
क्रिसिल की रिपोर्ट में पाया गया है कि इस वित्त के दौरान औसत निर्यात आमदनी प्रति किलोग्राम 63 रुपये रही है, जबकि पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह 69 रुपये प्रति किलोग्राम थी। घरेलू बाजार से होने वाली आय मजूबत खुदरा मांग की वजह से 52 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर स्थिर देखी जा रही है। सालाना बिक्री में इसका योगदान 20 लाख टन रहता है।
