देश की आर्थिक वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष (2023-24) में कुछ धीमी पड़कर 6 से 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है। इसका एक बड़ा कारण वैश्विक स्तर पर विभिन्न चुनौतियों से निर्यात प्रभावित होने की आशंका है। हालांकि इसके बावजूद देश दुनिया में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले तीव्र आर्थिक वृद्धि हासिल करने वाला बना रहेगा। अर्थव्यवस्था की स्थिति को बताने वाली आर्थिक समीक्षा में यह कहा गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करने से एक दिन पहले मंगलवार को संसद में 2022-23 की आर्थिक समीक्षा पेश की। देश की GDP (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर का यह अनुमान अंतररराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) के 6.1 फीसदी के अनुमान से ज्यादा है।
समीक्षा में चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर सात फीसदी रहने और बीते वित्त वर्ष में 8.7 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। समीक्षा तैयार करने वाले मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने कहा, ‘वर्ष 2020 से कम-से-कम तीन झटकों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोरा है।’
उन्होंने कहा कि इसकी शुरूआती महामारी और उसकी रोकथाम के लिये लगाये गये ‘लॉकडाउन’ के कारण वैश्विक उत्पादन में गिरावट से हुई। उसके बाद पिछले साल से रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया के विभिन्न देशों में महंगाई बढ़ी। उसके बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व समेत विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये नीतिगत दरें बढ़ाई।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक के नीतिगत दर बढ़ाने से दूसरे देशों से पूंजी अमेरिकी बाजार में गई और इससे दुनिया की अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर में मजबूती आई। इससे भारत जैसे शुद्ध आयातक देशें में चालू खाते का घाटा और मुद्रास्फीति दबाव बढ़ा।
समीक्षा में कहा गया है, ‘हालांकि महामारी से प्रभावित होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ी और 2021-22 में यह पूरी तरह से पटरी पर आ गई तथा इस मामले में कई देशों से आगे रही। देश की अर्थव्यवस्था ने 2022-23 में महामारी पूर्व स्तर पर आगे बढ़ती दिखी।’ इसके बावजूद चालू वर्ष में भारत को मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिये चुनौती का भी सामना करना पड़ा। हालांकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत दर में वृद्धि की संभावना को देखते हुए रुपये की विनिमय दर में गिरावट को लेकर चुनौती बनी हुई है। यह अलग बात है कि इसका प्रदर्शन अन्य प्रमुख देशों की मुद्राओं की तुलना में बेहतर रहा है।
चालू खाते का घाटा (कैड) भी बना रह सकता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर जिंस के दाम ऊंचे बने हुए हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की गति मजबूत बनी हुई है। समीक्षा में कहा गया है कि आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति 6.8 फीसदी रहने का अनुमान रखा है। यह उसके संतोषजनक स्तर की ऊपरी सीमा से अधिक है। लेकिन कीमत वृद्धि की दर इतनी ऊंची नहीं है कि यह निजी खपत को प्रभावित करे और न ही इतनी कम है कि निवेश प्रोत्साहन को कमजोर करे।
देश का चालू खाते का घाटा चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में GDP का 4.4 फीसदी रहा। एक इससे पिछली तिमाही में 2.2 फीसदी और एक साल पहले दूसरी तिमाही में 1.3 फीसदी के मुकाबले काफी ऊंचा है। जिंसों के दाम में तेजी तथा रुपये के मूल्य में कमी से निर्यात और आयात का अंतर बढ़ा है, जिसका असर कैड पर पड़ा है।
समीक्षा में कहा गया है कि खपत में तेजी से रोजगार के मोर्चे पर स्थिति में सुधार है। लेकिन और रोजगार सृजित करने के लिये निजी निवेश जरूरी है। इसके अनुसार, ‘चालू वर्ष की दूसरी छमाही में वैश्विक स्तर पर वृद्धि दर मंद पड़ने और व्यापार घटने से निर्यात की रफ्तार सुस्त हुई है।’ यह संकेत देता है कि मुद्रास्फीति उतनी चिंता की बात संभवत: नहीं हो, लेकिन कर्ज की लागत ऊंची बनी रह सकती है क्योंकि लंबे समय तक महंगाई के ऊंचे बने रहने से ब्याज दर का चक्र लंबा चल सकता है।
समीक्षा के अनुसार महामारी के बाद देश में पुनरुद्धार तेजी से हुआ। वृद्धि को घरेलू मांग, पूंजी निवेश में तेजी से बल मिला है। लेकिन अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत दर में वृद्धि से रुपये के स्तर पर चुनौती है। इसमें कहा गया है, ‘स्थिर मूल्य पर GDP वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान है। वास्तव में वृद्धि दर 6 से 6.8 फीसदी के दायरे में रह सकता है। यह वैश्विक स्तर पर आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों पर निर्भर करेगा।’
समीक्षा के अनुसार चालू खाते का घाटा और बढ़ सकता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर जिंसों के दाम ऊंचे बने हुए हैं और दूसरी तरफ आर्थिक वृद्धि में तेजी है। अगर कैड बढ़ता है, रुपये के मूल्य पर दबाव आ सकता है। हालांकि कुल मिलाकर बाह्य मोर्चे पर स्थिति काबू करने लायक है। निर्यात के बारे में कहा गया हे कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि नरम पड़ी
है। वैश्विक स्तर पर वृद्धि दर मंद होने से निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
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समीक्षा में अर्थव्यवस्था की मजबूती का जिक्र करते हुए कहा गया है, ‘महामारी के दौरान और यूरोप में संघर्ष के बाद से अर्थव्यवस्था ने जो गंवाया था, उसे लगभग फिर से प्राप्त कर लिया गया है, जो थम गया था उसमें नई जान आ गई है और जो मंद पड़ गया था, उसमें नई ऊर्जा आई है।’
इसमें वर्तमान मूल्य पर GDP वृद्धि दर 2023-24 में 11 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। सतत निजी खपत, बैंकों कर्ज में वृद्धि और कंपनियों के पूंजीगत व्यय में सुधार से यह दुनिया के अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले मजबूत रहेगी।