समुद्र की गहराई का पता लगाने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए पनडुब्बी समुद्रयान में वैज्ञानिकों को भेजने के भारत के महत्वाकांक्षी मिशन को केंद्रीय Budget 2025-26 में ‘गहरे महासागर अभियान’ (डीप ओशन मिशन) के लिए 600 करोड़ रुपये आवंटित किए जाने से बढ़ावा मिला है। इस अभियान की जिम्मेदारी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की है जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा शनिवार को पेश केंद्रीय बजट 2025-26 में 3649.81 करोड़ रुपये आवंटित किए गए जबकि उसे चालू वित्त वर्ष के लिए 3064.80 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
समुद्रयान अभियान के तहत गहरे समुद्र तल का पता लगाने तथा 6,000 मीटर तक पानी के भीतर जा सकने वाली मानवयुक्त पनडुब्बी बनाने, गहरे समुद्र में जैव संसाधनों के सतत उपयोग के लिए गहरे समुद्र में खनन हेतु खनन प्रणाली तथा अपतटीय ताप ऊर्जा चालित विलवणीकरण संयंत्रों के लिए इंजीनियरिंग डिजाइन विकसित करने जैसी प्रौद्योगिकियों का विकास किया जाएगा। भारत की इस साल के अंत में समुद्र में 500 मीटर की गहराई तक एक मानवयुक्त पनडुब्बी भेजने और अगले साल धीरे-धीरे 6,000 मीटर की गहराई पर समुद्र तल का अन्वेषण करने की योजना है।
इस पनडुब्बी को चेन्नई स्थित राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) विकसित करेगा। गहरे महासागर अभियान का उद्देश्य गहरे समुद्र में संसाधनों का पता लगाना तथा उनके सतत उपयोग के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करना है।
इस संदर्भ में केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने जनवरी में घोषणा करते हुए कहा था कि देश इस साल अपना पहला मानव अंडरवाटर वाहन (डीप-सी मैनड व्हीकल) लॉन्च करने के लिए तैयार है। “डीप ओशन मिशन” पर मिशन संचालन समिति की दूसरी बैठक में अपने संबोधन में डॉ. जितेन्द्र सिंह ने इस पहल की अभूतपूर्व प्रकृति के बारे में बताया, जिससे भारत को ऐसे महत्वाकांक्षी प्रयास को शुरू करने के लिए तकनीकी क्षमता वाले छह देशों के चुनिंदा समूह में शामिल का अवसर मिला है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि शुरुआती पनडुब्बी 500 मीटर की गहराई पर काम करेगी, और अगले साल तक 6,000 मीटर की आश्चर्यजनक गहराई तक पहुंचने का लक्ष्य है। यह उपलब्धि भारत के अन्य ऐतिहासिक मिशनों की समयसीमा के साथ तालमेल रखेगी। इसमें गगनयान अंतरिक्ष मिशन भी शामिल है, जो वैज्ञानिक उत्कृष्टता की ओर देश की यात्रा में एक “सुखद संयोग” को दर्शाता है। पीएम मोदी स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से इस मिशन का दो बार जिक्र कर चुके हैं।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि इस मिशन के माध्यम से हम न केवल अपने महासागरों की गहराई का पता लगा रहे हैं, बल्कि एक मजबूत blue economy का निर्माण भी कर रहे हैं, जो भारत के भविष्य को आगे बढ़ाएगी।” डॉ. सिंह ने जोर देकर कहा कि पूरी पहल स्वदेशी तकनीक पर आधारित है, जिसे पूरी तरह से भारत में विकसित और निर्मित किया गया है, जो अत्याधुनिक विज्ञान में देश की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
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राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) की स्थापना नवंबर 1993 में भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्था के रूप में की गई थी। NIOT एक वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान है, जो महासागर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करता है और भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत संचालित होता है। NIOT चेन्नई का परिसर 50 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और यह पल्लिकरणई, चेन्नई, तमिलनाडु में स्थित है। इसके अतिरिक्त, संस्थान के अनुसंधान केंद्र अटल सेंटर फॉर ओशन साइंस एंड टेक्नोलॉजी फॉर आइलैंड्स (ACOSTI), पोर्ट ब्लेयर, अंडमान, तथा सीफ्रंट कैंपस, पमांजी गांव और अनुसंधान सुविधा, चिट्टेडु, आंध्र प्रदेश में स्थित हैं।
इस संस्थान की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में जीवित और अजीवित संसाधनों के दोहन से जुड़े विभिन्न इंजीनियरिंग समस्याओं के समाधान के लिए विश्वसनीय स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास करना है। यह क्षेत्र भारत के भूमि क्षेत्र का लगभग दो-तिहाई है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)