बाजार की तेजी के बीच खुदरा निवेशक भी इक्विटी की सवारी कर रहे हैं। आनंद राठी समूह (Anand Rathi Group) के संस्थापक और चेयरमैन आनंद राठी ने पुनीत वाधवा को एक ईमेल इंटरव्यू में बताया कि इस क्षेत्र की वृद्धि ग्राहकों की जरूरतों पर केंद्रित सभी स्टॉकब्रोकिंग फर्मों के लिए अवसर प्रदान करती है।
उनका मानना है कि तीन साल के दौरान भारतीय इक्विटी बाजार अक्सर रिटर्न और जोखिम-समायोजित उपायों, दोनों के पैमाने पर सोने को मात देने में कामयाब रहे हैं। इंटरव्यू के मुख्य अंश:
क्या वैश्विक जोखिम से भारतीय इक्विटी बाजार की तेजी खत्म हो सकती है?
वैश्विक जोखिम तो है। यह जोखिम महंगाई बने रहने और अमेरिका में रोजगार के अच्छे आंकड़ों, ब्याज दरों में नरमी की संभावना कम होने, ब्रिटेन और जर्मनी में मंदी के कारण बना हुआ है। जिंस कीमतें स्थिर हैं और यूरोप तथा पश्चिम एशिया में भूराजनीतिक तनाव बना हुआ है।
वैश्विक इक्विटी में महंगे मूल्यांकन को लेकर भी चिंताएं बनी हुई हैं। ये कारक भारतीय बाजारों को भी प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि भारत के मजबूत बुनियादी आधार, उचित मूल्यांकन और दमदार घरेलू निवेश प्रवाह सकारात्मक हैं, जिससे भारतीय इक्विटी बाजार दूसरों की तुलना में ज्यादा मजबूत हैं।
घरेलू घटनाओं, विशेषकर चुनाव परिणाम के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
देश की बात करें तो जहां चुनाव से बाजार अस्थायी रूप से प्रभावित हो सकते हैं, वहीं इसका दीर्घावधि प्रभाव न्यूनतम है क्योंकि जनमत सर्वेक्षण अभी 2024 में स्थिर नतीजों का अनुमान जता रहे हैं।
मुद्रास्फीति का जोखिम बना हुआ है, लेकिन मुद्रास्फीति नरम पड़ने पर भी आरबीआई द्वारा न बड़ी दर कटौती के आसार हैं और न ही बढ़ोतरी की संभावना है जब तक कि मुद्रास्फीति उम्मीदों से कहीं ज्यादा न हो जाए।
ज्यादा गर्मी पड़ने से कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है और जल्द खराब होने वाली फसलों का नुकसान बढ़ सकता है, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ने की आशंका रहेगी। पर इनका बाजारों पर खास असर नहीं होगा।
क्या लार्जकैप 2024-25 में स्मॉलकैप और मिडकैप के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेंगे?
हमारा विश्लेषण स्मॉलकैप, उसके बाद लार्जकैप और फिर मिडकैप के पक्ष में है। इसके दो कारण हैं- अगले दो वर्षों में स्मॉलकैप की अनुमानित आय वृद्धि लार्जकैप से अधिक होने का अनुमान है।
इसके अलावा हमारे मूल्यांकन मॉडलों से संकेत मिलता है कि स्मॉलकैप इस समय कम वैल्यू पर हैं जबकि लार्जकैप उचित कीमत पर और मिडकैप का मूल्यांकन ज्यादा दिख रहा है।
क्या अर्थव्यवस्था मजबूत होने से इक्विटी बाजार में तेजी आती है?
कई देशों के अध्ययनों से दीर्घावधि में वृहद आर्थिक प्रदर्शन और इक्विटी प्रतिफल के बीच गहरा संबंध होने का पता चला है। यह संबंध विशेष रूप से भारत में सच साबित हुआ है, जहां हम पिछले दो दशकों में सांकेतिक जीडीपी वृद्धि और निफ्टी 50 की आय के बीच मजबूत संबंध देखते हैं। इसलिए, यह स्पष्ट है कि मजबूत भारतीय अर्थव्यवस्थाआमतौर पर अच्छे इक्विटी बाजार में तब्दील होती है।
बड़ी तादाद में निवेशक इक्विटी की ओर आकर्षित हो रहे हैं, क्या यह ब्रोकिंग उद्योग के लिए ‘अच्छे दिन’ वाली स्थिति है? आनंद राठी ने प्रतिस्पर्धा में किस तरह से स्वयं को अलग रखने की योजना बनाई है?
संस्थागत और रिटेल निवेशकों, दोनों की बढ़ती ट्रेडिंग से ब्रोकरेज सेक्टर को लाभ हुआ है। हालांकि जहां राजस्व बढ़ रहा है, वहीं नियामकीय बदलावों, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और बढ़ते परिचालन खर्चों के कारण लागत भी बढ़ रही है।
आनंद राठी ने परामर्श गुणवत्ता और क्रियान्वयन क्षमता सुधारने के लिए शोध पेशकशों तथा प्रौद्योगिकी में निवेश पर जोर दिया है। ऐसा कर हम प्रतिस्पर्धी बढ़त बनाए रखना चाहते हैं। यही वजह है कि हमारे राजस्व और लागत, दोनों में तेजी से इजाफा हो रहा है।
अगर अगले 12-18 महीने में इक्विटी से प्रतिफल सुस्त रहता है तो क्या भारतीय निवेशकों को सोने और अन्य परिसंपत्ति वर्गों में अपना दांव बढ़ाना चाहिए?
तीन साल की अवधि में भारतीय इक्विटी ने अक्सर रिटर्न और रिस्क-एडजस्टेड उपायों दोनों के लिहाज से सोने के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। सोने की कीमतों के बारे में अनुमान के बुनियादी सिद्धांत इक्विटी और ऋण की तुलना में कम मजबूत हैं। भारतीय परिवारों के पास पहले से ही वैश्विक औसत से लगभग पांच गुना अधिक सोना है। लिहाजा, मौजूदा परिस्थितियों में सोने में और अधिक निवेश करना उचित नहीं है।