राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) ने ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत गो फर्स्ट की स्वैच्छिक दिवालिया याचिका को सहजता से स्वीकार करके तथा एक अंतरिम निस्तारण पेशेवर की नियुक्ति करके अच्छा किया है। इस प्रक्रिया की शुरुआत का अर्थ यह है कि ऋणदाता फिलहाल बकाया वसूलने की स्थिति में नहीं रहेंगे। करीब 17 वर्षों तक सेवा देने वाली विमानन कंपनी ने वित्तीय कठिनाइयों के कारण इस माह के आरंभ में अपनी उड़ान बंद कर दी थीं।
ध्यान देने वाली बात है कि उसने अमेरिका की प्रैट ऐंड व्हिटनी (पीऐंडडब्ल्यू) नामक कंपनी पर आरोप लगाया था कि उसने इंजनों की आपूर्ति नहीं की जिसकी वजह से उसके बेड़े के आधे से अधिक विमान खड़े हो गए। कंपनी ने पंचाट को सूचित किया कि उसने पीऐंडडब्ल्यू के विरुद्ध मध्यस्थता के एक मामले में जीत हासिल की है। उसने अनुपालन न करने के लिए पीऐंडडब्ल्यू के खिलाफ प्रवर्तन की प्रक्रिया भी आरंभ की है। विमानन कंपनी पर 11,463 करोड़ रुपये की देनदारी है जिसके चलते नियमित परिचालन मुश्किल हो गया था।
मामले का सही समय पर आईबीसी के लिए स्वीकृत होना पहला सही कदम है। परंतु व्याप्त जटिलताओं के चलते यह देखना दिलचस्प होगा कि मामला आगे किस तरह बढ़ता है। हालांकि यह बात भी ध्यान देने लायक है कि विमानन कंपनी वित्तीय कठिनाइयों से जूझ रही थी लेकिन उसने अपनी चिंताओं के लिए तीसरे पक्ष को जिम्मेदार ठहराया और मध्यस्थता का फैसला अपने पक्ष में कराने में सफल रही।
Also Read: यातायात मैनेजमेंट में सुधार: आर्थिक ग्रोथ और विकास के लिए जरूरी
उसने निस्तारण के लिए भी स्वेच्छा से प्रयास किया। इस कदम के सबसे अहम नतीजों में से एक यह है कि भुगतान में चूक होने के बाद विमानों पर कब्जा करने की बाट जोह रहे पट्टादाता ऐसा नहीं कर पाएंगे क्योंकि आईबीसी के तहत ऐसे मामलों पर रोक लागू है। बल्कि शायद एनसीएलटी से संपर्क करने की सबसे बड़ी प्रेरणा भी यही रही हो। क्योंकि अगर विमान कंपनी के पास रहते हैं तो इससे दोबारा सेवा शुरू करने की संभावना बनती है।
यह बात भी ध्यान देने लायक होगी कि कर्जदाता इस मामले को किस तरह देखते हैं और वे कितनी राहत देने को तैयार हैं। इसके अलावा मामला किस प्रकार आगे बढ़ता है यह देखने में आम लोगों की भी काफी रुचि होगी। एनसीएलटी के पास आवेदन देने के पहले कंपनी रोज 200 उड़ानें संचालित कर रही थी।
इन उड़ानों की अनुपलब्धता निश्चित रूप से विमानयात्रियों को प्रभावित करेगी। जानकारी के मुताबिक गो फर्स्ट का मामला सामने आने के बाद भारतीय विमान कंपनियों के लिए विमान के पट्टे का किराया बढ़ सकता है क्योंकि अब जोखिम अधिक है। सबसे अहम बात यह है कि एनसीएलटी में मामला कितनी जल्दी निपटता है।
Also Read: महिला सुरक्षा अधिकारों की पोल खोलता पहलवानों का यौन उत्पीड़न को लेकर विरोध
आईबीसी का प्राथमिक लक्ष्य है तय समय में कॉर्पोरेट ऋणशोधन की प्रक्रिया को निपटाना ताकि उत्पादक परिसंपत्तियों को जल्दी से जल्दी इस्तेमाल किया जा सके। परंतु अब तक का अनुभव बहुत उत्साहित करने वाला नहीं रहा है। भारतीय ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड (आईबीबीआई) के मुताबिक दिसंबर 2022 तक 611 ऋणशोधन के मामलों के निस्तारण में औसतन 482 दिन का समय लगा। इसी प्रकार करीब 1,900 मामले जो नकदीकरण के लिए गए उनमें औसतन 445 दिन का समय लगा। जाहिर है इस अवधि को कम करने की आवश्यकता है।
ऋणशोधन निस्तारण की प्रक्रिया में समय बहुत अहम है। देरी होने से संबंधित परिसंपत्ति की कीमतों में गिरावट आती है जिससे व्यापक स्तर पर अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। सरकार दिवालिया व्यवस्था को बेहतर बनाने का प्रयास करती रही है लेकिन अभी और बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
आईबीबीआई ने अब तक अधिसूचित अपने नियमन पर सार्वजनिक टिप्पणियां भी चाही है। उसका इरादा उन सुझावों पर ध्यान देने और जरूरी बदलाव करने का है। सरकार और नियामक दोनों को जरूरी समायोजन करने होंगे ताकि दिवालिया प्रक्रिया को अधिक बेहतर बनाया जा सके। कई तरह से देखें तो गो फर्स्ट का मामला आईबीसी के लिए जांच का विषय है। इस मामले का शीघ्र और बेहतर निस्तारण व्यवस्था में भरोसा मजबूत करेगा।