सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) द्वारा रविवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर तिमाही में निजी क्षेत्र की नई परियोजनाओं का कुल मूल्य घटकर 0.8 लाख करोड़ रुपये रह गया है, जो पिछले साल की समान अवधि में घोषित 3.8 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 79.2 प्रतिशत कम है। जून तिमाही में घोषित 5.3 लाख करोड़ रुपये की नई परियोजनाओं की तुलना में इसमें 85 प्रतिशत की गिरावट आई है।
सरकार द्वारा घोषित नई परियोजनाओं में सामान्यतया सड़क व अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल होती हैं। इसमें भी सितंबर 2023 में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 72.5 प्रतिशत की कमी आई है और यह 0.4 लाख करोड़ रुपये रह गया है। सितंबर 2022 में यह 1.4 लाख करोड़ रुपये था।
वैश्विक वित्तीय सेवा समूह नोमुरा की 27 सितंबर की एशिया इनसाइट्स रिपोर्ट में कम कर संग्रह के कारण सरकार का व्यय प्रभावित होने की उम्मीद जताई गई थी।
सरकार द्वारा कमाई से ऊपर किए गए खर्च को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इसे अर्थव्यवस्था के आकार यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में मापा जाता है। इसका असर राजस्व व्यय (रेवेक्स) और पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) दोनों पर पड़ता है। राजस्व व्यय में वेतन और अन्य आवर्ती भुगतान आते हैं, जबकि पूंजीगत व्यय में दीर्घावधि संपत्तियों जैसे सड़क में निवेश शामिल होता है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में पूंजीगत व्यय सुस्त रहने की संभावना है।
इसमें कहा गया है, ‘हमें वित्त वर्ष 24 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 5.9 प्रतिशत रखने को लेकर राजकोषीय व्यवधान नजर आ रहा है। इसकी वजह सुस्त कर संग्रह, विनिवेश की सुस्त प्रक्रिया और बजट अनुमान की तुलना में व्यय की वृद्धि की रफ्तार तेज होना है। इसमें बड़ा खर्च राजस्व व्यय की ओर से आ रहा है। ऐसे में दूसरी छमाही में पूंजीगत व्यय में कमी करके इसकी भरपाई हो सकती है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को जोखिम रहेगा।’
मौजूदा परियोजनाएं पूरी होने की दर जून की तुलना में कम हुई है, लेकिन महामारी के पहले की तुलना में यह ज्यादा है। सितंबर 2023 में करीब 2.2 लाख करोड़ रुपये की नई परियोजनाएं पूरी की गई हैं, जबकि जून 2023 में 7.9 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं पूरी की गई थीं। सितंबर 2019 में पूरी की गई परियोजनाओं का मूल्य 1 लाख करोड़ रुपये से कम और सितंबर 2022 में इसका मूल्य 1.4 लाख करोड़ रुपये था।
कंपनियां सामान्यतया नई फैक्टरियों में तब निवेश करती हैं, जब उनकी मौजूदा परियोजनाओं का पूरा इस्तेमाल होता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ऑर्डर बुक्स, इनवेंट्रीज ऐंड कैपेसिटी युटिलाइजेशन सर्वे (ओबीआईसीयूएस) के मुताबिक मार्च 2023 से हाल की तिमाहियों में क्षमता का इस्तेमाल सुधरा है, हालांकि अभी भी एक चौथाई क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
इसमें कहा गया है कि विनिर्माण क्षेत्र में छमता उपयोग लगातार तीसरी तिमाही में दुरुस्त हुआ है। यह 2022 की चौथी तिमाही में 76.3 प्रतिशत और उसके पहले की तिमाही में 74.3 प्रतिशत था।
जून के परिणाम की घोषणा करते हुए विश्लेषकों से लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) के प्रवक्ता ने कहा था कि बैंकों और कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार से भविष्य में पूंजीगत व्यय की राह बन रही है।