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वैश्विक पूंजी में बदलाव भारत के लिए अवसर..

विश्व स्तर पर देखा जाए तो निवेश के परिदृश्य में तेजी से बदलाव आ रहा है जो काफी महत्त्वपूर्ण है।

Last Updated- October 27, 2023 | 11:46 PM IST
An update on global capital, supply-side dilemma & more

विश्व स्तर पर देखा जाए तो निवेश के परिदृश्य में तेजी से बदलाव आ रहा है जो काफी महत्त्वपूर्ण है। बता रहे हैं आकाश प्रकाश

हाल ही में मुझे दुनिया भर के परिसंपत्ति आवंटकों और मुद्रा प्रबंधकों से मिलने का अवसर मिला। वे दीर्घकालिक स्तर पर काम करने वाली पूंजी का प्रबंधन करते हैं ताकि जोखिम समायोजन वाला प्रतिफल हासिल हो सके। हमने भारत, उभरते बाजारों और दुनिया को लेकर उनके नजरिये पर बातचीत की।

इस बातचीत से निकले कुछ प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

1. पिछली बैठकों में कई ऐसे निवेश नीतिकार थे जो चीन से नाउम्मीद नहीं हुए थे। कई को लग रहा था कि चीन भूराजनीतिक और आर्थिक मामलों में चक्रीय गिरावट का शिकार है। एक वर्ष पहले कुछ निवेशक सस्ती दरों पर चीन में निवेश करना चाह रहे थे। अब मिजाज एकदम अलग हैं। चीन के मामले में हर किसी की सीमाएं है।

यह निर्णय निवेश टीमों द्वारा नहीं लिया जाता है बल्कि संभावित सरकारी नियमन से जुड़ा है ताकि जोखिम से बचा जा सके। चीन का मूल्यांकन चाहे जितना आकर्षक हो, अधिकांश निवेशक वहां निवेश नहीं करना चाहेंगे। अगर चीन के बाजारों में आगे और गिरावट आती है तो बचे हुए निवेशकों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। कुछ एक परिवार वाले कारोबार अवश्य अपवाद रहे जो बोर्ड-ट्रस्टी व्यवस्था से संचालित नहीं होते हैं। उनका प्रदर्शन विरोधाभासी है।

अधिकांश संस्थानों ने जहां चीन में अपना निवेश आधा से कम कर दिया, वहीं चीन के पूंजी बाजारों के कमजोर प्रदर्शन के चलते आवंटन में भी कमी आ रही है। कई लोगों ने अपने सूचीबद्ध शेयर बेच दिए हैं लेकिन निजी परिसंपत्तियों के नकदी संकट में उलझे हुए हैं। उनका पैसा वापस मिलने में कई वर्षों का समय लग जाएगा क्योंकि अधिकांश चीनी निजी फंड जानते हैं कि वे अमेरिका से नई पूंजी नहीं जुटा सकते।

ऐसे में वे भी किसी जल्दबाजी में नहीं हैं। चीन की वित्तीय परिसंपत्तियों से दूर संतुलन कायम करने के लिए स्पष्ट अनुदेश है लेकिन इसके पूर्ण क्रियान्वयन में तीन से पांच वर्ष का समय लगेगा।

2. मैं जिन संस्थानों से मिला उनमें से कई पर नकदी का अल्पकालिक दबाव था। उनके यहां निजी निवेश का एक्सपोजर अधिक था और वे संभावित वितरण में पीछे थे। यह स्थिति अस्थायी है और इसमें 12 से 18 महीनों में सुधार हो जाएगा।

दिलचस्प बात यह है कि टिकटॉक की चीनी मालिक कंपनी बाइटडांस में सभी संस्थानों का काफी निवेश था। नकदी का दबाव चीन से भारत की ओर पूंजी की गति को भी प्रभावित कर रहा है और चीन से निकाली जाने वाली राशि फिलहाल अल्पावधि की नकदी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयोग की जा रही है।

3. तमाम आवंटकों में भारत को लेकर रुचि कहीं अधिक है जबकि ऐतिहासिक रूप से ऐसा नहीं रहा है। भारत में निवेश परिदृश्य को प्रासंगिक बनाने के लिए बहुत बड़ी तादाद में लोग निरंतर काम कर रहे थे। एक तथ्य यह है कि अगले पांच वर्षों में किसी अन्य देश में स्थिर वृहद आर्थिक संकेतकों के साथ 6-7 फीसदी की आर्थिक वृद्धि की काबिलियत नहीं नजर आई।

इसके साथ ही हर चर्चा में 12-15 फीसदी आय वृद्धि की संभावना जाहिर की गई। कई अवसरों पर भारत की उच्च गुणवत्तायुक्त प्रदर्शन क्षमता का भी उल्लेख किया गया। अभी भी ​सक्रिय शेयरों के चयन को ही आगे जाने की राह माना गया। माना जा रहा था कि कोई अन्य विकल्प न होने की भावना काम कर रही थी क्योंकि कई अन्य बड़े उभरते बाजार वाले देश चुनौतियों का सामना कर रहे थे।

घरेलू निवेशकों के उभरते मजबूत आधार पर भी नजर रखी गई और इसे सकारात्मक माना गया। कई लोगों ने कहा कि भारतीय बाजार मजबूत है और अक्टूबर 2021 से 2022 के मध्य तक उसने 40 अरब डॉलर की संस्थागत विदेशी निवेश की बिकवाली को घरेलू पूंजी के सहारे झेल लिया। घरेलू रुझानों को सराहा गया और इसे दीर्घकालिक संभावनाओं के प्रमुख संकेतक के रूप में देखा गया।

4. भारत को लेकर प्राथमिक चिंता मूल्यांकन की है। अब भारत अमेरिका के साथ दुनिया का सबसे महंगा बाजार है। अधिकांश आवंटक ऐसी ऊंची अपेक्षाओं के कारण पूंजी लगाने से हिचकते हैं। सबसे आम सवाल यह है कि क्या गलत हो सकता है और हम कहां चूक रहे हैं? भारत की कहानी में क्या कमियां हैं?

कुछ लोगों ने कहा कि अतीत में भारत ऐसी स्थिति में निराश कर चुका है। इस बार अलग क्या होगा? मेरा मानना है कि बहुत बड़ी मात्रा में पैसा भारत में आने की प्रतीक्षा में है और बहुत कम लोगों को भारत की दीर्घकालिक संभावनाओं पर संदेह है। हम जिन आवंटकों से मिले उन्होंने साफ कहा कि अब से पांच वर्ष बाद भारत में और अधिक पूंजी लगेगी। नए निवेशक जहां अभी हिचक रहे हैं वहीं मौजूदा निवेशक, मौजूदा मूल्यांकन से प्रसन्न हैं। वे इसे बदलना नहीं चाहते।

5. आगामी चुनावों को लेकर कोई खास चिंता नहीं दिखी। अधिकांश वैश्विक निवेशक मानकर चल रहे हैं कि मौजूदा सरकार अगले पांच साल भी बनी रहेगी। इस विषय पर बहस न होने से मैं चकित हुआ।

6. कई लोगों ने एक उभरते बाजार के प्रासांगिक परिसंपत्ति वर्ग होने पर भी संदेह किया था। किसी के पास समूचे उभरते बाजार का प्रबंधन नहीं था। विभिन्न देशों और क्षेत्रों के लिए फंड अवश्य थे। आगे नजर डालें तो अमेरिका के पास पूरा नवाचार है, वहां ईंधन पर्याप्त है और वहां की जनांकिकी और कंपनियां भी अच्छी हैं। ऐसे में कई निवेश समितियां सवाल कर रही हैं कि बाहर क्यों जाना?

7. अधिकांश आवंटक वैश्विक जोखिम परिसंपत्तियों को लेकर सतर्क हैं। अमेरिका की राजकोषीय स्थिति खराब है। उसका राजकोषीय घाटा उतना ही है जितना वैश्विक वित्तीय संकट के समय था। बेरोजगारी की दर जरूर चार फीसदी से कम है। कुछ वास्तविक अनुमानों के आधार पर अमेरिकी सरकार का ब्याज भुगतान एक दशक के भीतर सकल घरेलू उत्पाद के 10 फीसदी और कर राजस्व के 60 फीसदी का स्तर पार कर जाएगा।

विशुद्ध ब्याज लागत में एक लाख करोड़ डॉलर से अधिक का इजाफा हो जाएगा और सरकारी ऋण का पुनर्मूल्यांकन होगा। ब्याज दरें और बढ़ेंगी और लंबे समय तक ऊंची बनी रहेंगी।

इनमें से अधिकांश निवेशकों को अभी भी लग रहा है कि अमेरिका में 2024 में मंदी आएगी। हम एक नई दुनिया में हैं जहां सबसे ताजा सक्रिय निवेशकों को दरों में गिरावट का अनुभव हुआ। अब रीफाइनैंस के खतरे को देखते हुए और अधिक डिफॉल्ट की उम्मीद करें। कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिका का 30 वर्षीय बॉन्ड आधी कीमत का रह गया है।

शेयरों की बात करें तो वे अपेक्षाकृत महंगे होने के बावजूद बॉन्ड से सस्ते थे। अब यह सिलसिला उलटा हो चुका है। सात बड़ी तकनीकी कंपनियों के शेयरों को छोड़ दें तो एसऐंडपी 500 एक वर्ष के लिए निचले स्तर पर है। यूरोप के सामने ऊर्जा, जनांकिकी और आर्थिक क्षेत्रों में ढांचागत चुनौतियां हैं। ऐसे में दीर्घकाल के लिए तेजी का दृष्टिकोण रखना मुश्किल है।

मेरा मानना है कि निवेश भारत आएगा लेकिन इसमें समय लगेगा। इसमें सबसे बड़ी बाधा मूल्यांकन है और बाजार में गिरावट नए निवेशकों को जरूरी सहजता प्रदान करेगी। हमें यह अवसर गंवाना नहीं चाहिए।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)

First Published - October 27, 2023 | 11:14 PM IST

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