बेंचमार्क बीएसई सेंसेक्स (Bse Sensex) शुक्रवार को 2.7 फीसदी के साप्ताहिक नुकसान के साथ बंद हुआ, जो एक साल का सबसे बड़ा साप्ताहिक नुकसान है। इससे पहले इंडेक्स का सबसे खराब प्रदर्शन 17 जून, 2022 को समाप्त हफ्ते के दौरान देखा गया था और तब यह 5.4 फीसदी के साप्ताहिक नुकसान के साथ बंद हुआ था।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की तरफ से हुई बिकवाली की अगुआई में व्यापक बाजार में गिरावट आई। शुक्रवार को बिकवाली के साथ एफपीआई सितंबर में शुद्ध बिकवाल बन गए जबकि लगातार छह महीने तक वे खरीदार बने हुए थे।
एफपीआई ने अब तक संचयी तौर पर 1.53 अरब डॉलर के भारतीय शेयरों की बिकवाली की है जबकि इस साल मार्च से अगस्त तक उनका संचयी निवेश 20.94 अरब डॉलर रहा था।
एफपीआई की आधी से ज्यादा बिकवाली मौजूदा हफ्ते में पिछले चार कारोबारी सत्रों में देखने को मिली। भारतीय बाजार गुरुवार को गणेश चतुर्थी के मौके पर बंद रहे।
एफपीआई की बिकवाली की एक वजह भारतीय इक्विटी की आय के प्रतिफल और अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड के प्रतिफल के स्प्रेड में आई तेज गिरावट है।
यह स्प्रेड विदेशी निवेशकों की तरफ से अमेरिकी ट्रेजरी से ऊपर जोखिम मुक्त अतिरिक्त प्रतिफल हासिल करने का संकेतक है और यह अब दिसंबर 2007 के बाद पहली बार नकारात्मक क्षेत्र में चला गया है, जिसकी वजह हाल के महीनों में अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल में आई बड़ी तेजी है।
शून्य या नकारात्मक स्प्रेड पिछली बार कैलेंडर वर्ष 2007 की आखिरी तिमाही में देखा गया था और उसके बाद जनवरी 2008 में शेयर बाजार में बड़ी गिरावट आई थी। सेंसेक्स आय प्रतिफल और अमेरिका के 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड के प्रतिफल के बीच स्प्रेड अब घटकर -0.36 फीसदी पर आ गया है, जो अक्टूबर 2007 के बाद का निचला स्तर है और एक साल पहले के 0.67 फीसदी के स्प्रेड के मुकाबले काफी नीचे है। ऐतिहासिक तौर पर आय प्रतिफल और अमेरिकी बेंचमार्क ट्रेजरी बॉन्ड के बीच स्प्रेड सकारात्मक रहे हैं।
शुक्रवार को सेंसेक्स का आय प्रतिफल 4.11 फीसदी था जबकि 10 वर्षीय अमेरिकी सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल 4.47 फीसदी। अमेरिका में पिछले 12 महीने में बॉन्ड प्रतिफल 65 आधार अंक बढ़ा है जबकि इस अवधि में सेंसेक्स की आय प्रतिफल में 38 आधार अंकों की गिरावट आई है।
किसी निवेशक के लिए कोई शेयर या इंडेक्स की आय का प्रतिफल पिछले 12 महीने के पीई गुणक के विपरीत होता है और लाभांश प्रतिफल की परिपकल्पना पर आधारित होता है, अगर कोई कंपनी/इंडेक्स अपने सालाना लाभ का 100 फीसदी इक्विटी लाभांश के तौर पर वितरित करती है।
आय गुणक के मुकाबले शेयर की कम कीमत हो तो आय प्रतिफल ज्यादा होता है और दूसरी स्थिति में इसका उलटा होता है। ज्यादा आय प्रतिफल का मतलब जोखिम मुक्त वित्तीय प्रतिभूतियों मसलन सरकारी बॉन्ड व बैंकों की सावधि जमाओं के मामले में निवेशकों के लिए ज्यादा आर्बिट्रेज है।
सेंसेक्स आय प्रतिफल और अमेरिका के 10 वर्षीय बॉन्ड के बीच स्प्रेड अहम होता है और दलाल पथ की तेजी मोटे तौर पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के निवेश से होती है। भारतीय बाजार चढ़ते हैं जब एफपीआई का निवेश मजबूत होता है और जब उनकी तरफ से बिकवाली होती है तो बाजार गिरता है।
स्प्रेड में भारी गिरावट की वजह भारतीय इक्विटी का लगातार कम आय प्रतिफल है जबकि अमेरिकी बॉन्ड (US Bond Return) के प्रतिफल में लगातार तेजी आ रही है, जो दुनिया भर की जोखिम भरी परिसंपत्तियों के लिए बेंचमार्क के तौर पर काम करता है।
पिछले दो वर्षों में सेंसेक्स की आय का प्रतिफल 86 आधार अंक बढ़ा है, जो सितंबर 2021 के आखिर में 3.25 फीसदी था। इस अवधि में 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल 298 आधार अंक उछला है, जो सितंबर 2021 के आखिर में 1.49 फीसदी था। इसने विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय इक्विटी बाजार कम आकर्षक बना दिया है।