वर्ष 2022 की सितंबर-दिसंबर की अवधि के दौरान 20-29 आयु वर्ग की महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (एलपीआर) में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड परिवार सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार इस अवधि के दौरान इस आयु वर्ग की लगभग 2.8 लाख महिलाएं श्रमिक बल से जुड़ गईं। इसके अलावा एक अहम बात यह भी है कि इस आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर अब लॉकडाउन के दौर की तुलना में काफी अधिक है और यह उत्साहजनक भी है।
एलपीआर मूल तौर पर कामकाजी उम्र की आबादी (15 वर्ष और उससे अधिक आयु) का वह हिस्सा है जो या तो कार्यरत या बेरोजगार हैं या फिर इसमें वे लोग शामिल हैं जो काम करने के इच्छुक हैं और काम की तलाश कर रहे हैं। महिला श्रमिकों की भागीदारी का उम्र के हिसाब से वितरण एक उल्टे-यू शब्द की आकृति के समान है, हालांकि इसका स्वरूप बहुत अच्छी तरह से बना नहीं है। अगर 15-19 आयु वर्ग पर गौर करें तब महिलाओं की एलपीआर सितंबर-दिसंबर की अवधि के दौरान 1.22 प्रतिशत थी। यह निश्चित तौर पर कम है क्योंकि इस आयु वर्ग के अधिकांश लोग पढ़ाई कर रहे होते हैं या फिर छात्र जीवन जी रहे होते हैं और व्यग्रता से रोजगार की तलाश नहीं करते हैं।
दूसरी तरफ 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर मई-अगस्त 2022 के 10.63 प्रतिशत से बढ़कर इस अवधि के दौरान 11.58 प्रतिशत हो गई। इसके चलते इस आयु वर्ग में 1.7 लाख महिला श्रमिकों का विस्तार हुआ। श्रम बल से जुड़ने वाली 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं में से 1.3 लाख कार्यरत थीं। यह श्रम बाजार के लिए एक सकारात्मक संकेत है क्योंकि अधिक युवा महिलाएं काम करने के लिए तैयार हैं। इन महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा रोजगार हासिल करने में भी सक्षम था।
25-29 आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर में इसी तरह की वृद्धि देखी गई। मई-अगस्त 2022 की अवधि के दौरान इस आयु वर्ग में महिलाओं की एलपीआर 10.17 प्रतिशत थी जो सितंबर-दिसंबर की अवधि के दौरान बढ़कर 10.99 प्रतिशत हो गई। यह महिलाओं (25-29 वर्ष की आयु वर्ग) के श्रम बल के आकार में लगभग 1.1 लाख की वृद्धि को दर्शाता है।
25-29 आयु वर्ग की महिलाओं में, कार्यरत महिला श्रमिकों की संख्या में थोड़ी कमी आई थी। कार्यरत महिलाओं की संख्या पिछले साल की मई-अगस्त की अवधि के 21.4 लाख से कम होकर सितंबर-दिसंबर 2022 में 20.6 लाख हो गई। दूसरी ओर पिछले साल मई-अगस्त और सितंबर-दिसंबर की अवधि के बीच इस आयु वर्ग में बेरोजगार महिलाओं की संख्या में लगभग 2 लाख की वृद्धि हुई। फिर भी श्रम बल में युवा महिलाओं का जुड़ना एक उम्मीद भरी शुरुआत है। महिला एलपीआर से जुड़े ऐतिहासिक रुझान बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव का इस पर काफी प्रभाव पड़ता है। नवंबर 2016 में नोटबंदी की घोषणा से पहले मई-अगस्त 2016 में 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर लगभग 18.4 प्रतिशत थी। हालांकि, नोटबंदी का महिला एलपीआर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और मई-अगस्त 2017 में यह दर काफी कम होकर 9.5 प्रतिशत रह गई, जो आश्चर्यजनक तरीके से 8.9 प्रतिशत अंक की गिरावट थी। वर्ष 2019 में महिलाओं की एलपीआर में कुछ हद तक वृद्धि हुई, और यह 12-14 प्रतिशत तक के दायरे में रही लेकिन कोविड-19 महामारी को चलते हालात और खराब हो गए।
देश भर में सबसे पहली बार लगाए गए लॉकडाउन के बाद मई-अगस्त 2020 में 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर केवल 8.7 प्रतिशत थी जबकि मई-अगस्त 2021 में इस आयु वर्ग की महिलाओं के लिए एलपीआर 9.96 प्रतिशत थी। इसकी तुलना में सितंबर-दिसंबर 2022 में 11.58 प्रतिशत एलपीआर को उल्लेखनीय सुधार की श्रेणी में रखा जा सकता है।
वर्ष 2016 की शुरुआत में 25-29 आयु वर्ग की महिलाओं के लिए एलपीआर लगभग 17-18 प्रतिशत थी। नोटबंदी के चलते इस आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर काफी कम होकर लगभग 13 प्रतिशत हो गई जबकि महामारी के दौरान, 25-29 आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर और कम होकर 10-11 प्रतिशत पर आ गई। अगर मई-अगस्त 2021 की अवधि पर गौर किया जाए तो उस दौरान इस आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर 10.08 प्रतिशत थी। सितंबर-दिसंबर 2022 में यह बढ़कर 10.9 हो गई। श्रम बल भागीदारी में यह तेजी एक सुखद परिणाम है।
20-24 आयु वर्ग की महिलाओं की एलपीआर 25-29 आयु वर्ग की महिलाओं की तुलना में अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव के रुझानों के प्रति अधिक संवेदनशील मालूम होती है। नोटबंदी के साथ-साथ महामारी के चलते लगाए लॉकडाउन का असर 20-24 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं के समूह में काफी हद तक महसूस किया गया, खासतौर पर एलपीआर में तेज गिरावट के संदर्भ में। हाल के दिनों में इस उम्र वर्ग की महिलाओं की एलपीआर में वृद्धि देखी गई है।
युवा महिलाओं की एलपीआर में वृद्धि का रुझान एक सकारात्मक संकेत है। युवा महिलाएं, महामारी के बाद से काफी अधिक संख्या में श्रम बल से जुड़ रही हैं और इनमें से कई को नौकरी भी मिल रही है। इसकी वजह से बाकी युवा महिलाओं को भी श्रम बल से जुड़ने के लिए प्रेरित होने की उम्मीद है। यह जरूरी है कि युवा महिलाओं की एलपीआर में तेजी के इस नए रुझान में मजबूती लाई जाए ताकि इसे किसी और आर्थिक झटके का सामना न करना पड़े।
भले ही महिलाओं की एलपीआर में सुधार हुआ है लेकिन भारत अब भी इस लिहाज से महामारी से पहले के स्तर तक नहीं पहुंच पाया है। नोटबंदी से पहले की महिलाओं की एलपीआर के स्तर को हासिल करने के लिए भी एक लंबा रास्ता तय करना है। महिला एलपीआर को महामारी के दौर की तुलना में नोटबंदी के बाद की अवधि के दौरान बड़ा झटका लगा।
(लेखक सीएमआईई प्रा. लि. के एमडी और सीईओ हैं)