Libya Dam Collapse: लीबिया में पिछले महीने की शुरुआत में डेर्ना बांध के ढहने से 3,800 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। उस घटना का असर भारत में भी महसूस किया जा रहा है। लीबिया में यह त्रासदी 10 से 11 सितंबर की रात को हुई थी। मगर न्यूयॉर्क टाइम्स ने पिछले दिनों अपनी एक खबर में इस बात का उल्लेख किया कि केरल का मुल्लापेरियार बांध भी दुनिया के सबसे पुराने बांधों में शामिल है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इडुक्की जिले में स्थित इस बांध से तत्काल कोई खतरा नहीं है, लेकिन दशकों पुराना होने के कारण सुरक्षा संबंधी चिंताएं स्वाभाविक हैं। विशेषज्ञों ने भारत में 100 साल से अधिक पुराने 200 से अधिक बड़े बांधों की ओर इशारा किया है। साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स ऐंड पीपल के समन्वयक हिमांशु ठक्कर ने कहा, ’50 साल से अधिक पुराने सभी बांध जबरदस्त जोखिम वाले हैं।’
उन्होंने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर बांध प्रबंधन को बिल्कुल दुरुस्त करने की जरूरत है। अब कहीं अधिक भारी बारिश होती है। इसका मतलब साफ है कि जिस क्षमता के साथ इन बांधों को डिजाइन किया गया था वह अब पुराना हो चुका है। भारत में सभी बांधों के सुरक्षा पहलुओं की गंभीरतापूर्वक जांच के लिए एक स्वतंत्र समीक्षा होनी चाहिए। केंद्रीय जल आयोग यह कार्य कर रहा है, मगर उसका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं है।’
भारत में 5,334 बड़े बांध चालू अवस्था में
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, भारत में 5,334 बड़े बांध चालू अवस्था में हैं। इनमें से 234 बड़े बांध 100 साल से भी अधिक पुराने हैं। इसके अलावा 1,034 बड़े बांध 50 से 100 साल पुराने हैं।
लीबिया के डेर्ना में दो बांधों के टूटने के बाद विशेषज्ञों ने खतरे की घंटी बजा दी है। अनुमानों के मुताबिक, आपदा के बाद करीब 10,000 लोग लापता हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘भारत के केरल में मुल्लापेरियार बांध 100 साल से अधिक पुराना है। वह स्पष्ट तौर पर क्षतिग्रस्त दिखता है और भूकंप की आशंका वाले क्षेत्र में स्थित है। इसके ढहने से निचले इलाके में रहने वाले करीब 35 लाख लोगों को नुकसान हो सकता है।’
राज्य योजना बोर्ड के सदस्य और बाढ़ नियंत्रण के प्रभारी आर रामकुमार ने कहा कि केरल को इस बांध से तत्काल किसी खतरे की आशंका नहीं है।
रामकुमार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘उस बांध की ताकत का आकलन करने वाले किसी भी विशेषज्ञ ने फिलहाल कोई मुद्दा नहीं उठाया है। इसलिए नया बांध बनाने का तत्काल कोई कारण नहीं है।’ केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, तमिलनाडु इस बांध की सुरक्षा के बारे में अध्ययन कराने के लिए तैयार है।
विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया है कि सरकार को जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए बांध सुरक्षा अधिनियम पर नए सिरे से विचार करना चाहिए।
आईपीई ग्लोबल (अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन) के सेक्टर प्रमुख (जलवायु परिवर्तन एवं निरंतरता) अविनाश मोहंती ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन पहले से ही हो रहा है। ऐसे में ये पुराने बांध दोस्त के बजाय दुश्मन बन रहे हैं। लीबिया की हालिया घटना इस गंभीर संकट का प्रमाण है। भारत के लिए इस तरह के संकट कोई नई बात नहीं है। फिर भी हमें वर्तमान बांध सुरक्षा अधिनियम पर निए सिरे से विचार करने की जरूरत है।’ आईपीई ग्लोबल जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की छठी आकलन रिपोर्ट का विशेषज्ञ समीक्षक भी है।
मोहंती ने कहा, ‘जलवायु संबंधी जोखिम आकलन के सिद्धांतों का अनुपालन करने वाले हाइपर-ग्रैनुलर वहन क्षमता का आकलन करना और परिचालन संबंधी सुरक्षा मानकों को मौजूदा कानून के तहत एकीकृत करना राष्ट्रीय अनिवार्यता होनी चाहिए। अगर इसमें देरी की गई तो संकटपूर्ण स्थिति आसानी से आपदा में बदल सकती है।’
लीबिया की घटना ऐसे समय में सामने आई है जब भारत में हिमाचल प्रदेश सरकार ने पाया कि राज्य के 23 बांधों में से 21 ने सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन किया है। इस पहाड़ी राज्य में 9,203 मेगावॉट की कुल क्षमता वाली 23 पनबिजली परियोजनाएं हैं। इन पनबिजली परियोजनाओं का परिचालन नैशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन, नैशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन, भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड, सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड और स्वतंत्र बिजली उत्पादकों द्वारा किया जाता है।
ठक्कर ने कहा कि बांधों के मामले में ढांचागत खामियां ही एकमात्र समस्या नहीं है। भारत में हाल में बने ढांचे में भी दरारें आ गई हैं। पिछले साल अगस्त में मध्य प्रदेश के धार जिले में एक निर्माणाधीन बांध की दीवार ढह गई थी, जिससे 18 गांव प्रभावित हुए थे। जुलाई 2019 में महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में तिवरे बांध भारी बारिश के कारण टूट गया था। उससे 19 लोगों की जान चली गई थी। उस बांध को साल 2000 में बनाया गया था।