पौधों पर आधारित प्रोटीन से भरपूर खाद्य उत्पादों को लोकप्रियता पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। ये खाद्य उत्पाद दिखने और स्वाद में मांस की तरह ही होते हैं। इन्हें आम बोल-चाल में ‘शाकाहारी मांस’ या वीगन फूड्स कहा जाता है। भारत में इसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं।
देश में शाकाहार करने वाले लोगों की संख्या अधिक है या लोग कभी-कभी ही मांस आदि का उपभोग करते हैं। खाद्य पदार्थ बनाने वाली एवं खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां, खासकर स्टार्टअप, पूर्ण रूप से पौधे आधारित खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने लगे हैं।
ये उत्पाद आकार, बनावट और स्वाद में परंपरागत जीव उत्पादों जैसे चिकन नगेट्स (हड्डी रहित मांस), सीख कबाब और सॉसेज की तरह ही होते हैं। यह उद्योग इस समय बिल्कुल शुरुआती दौर में है मगर उम्मीद की जा रही है कि एक बड़े देसी बाजार एवं निर्यात की अपार संभावनाओं के दम पर यह जल्द ही तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता रखता है।
कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने वीगन फूड्स की विदेश में बढ़ती मांग पूरी करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की है। भारत में तैयार वीगन फूड्स के निर्यात की पहल भी शुरू हो गई है। पिछले साल सितंबर में मिनी समोसा, मोमोज, स्प्रिंग रोल्स, नगेट्स, ग्रिल्ड पैटिस आदि 5,000 किलोग्राम उत्पादों का निर्यात किया गया था।
लोग वीगन फूड्स के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण से जुड़े लाभों को लेकर पहले से अधिक जागरूक हो गए हैं। यह एक बड़ा कारण है कि इस उद्योग के लिए आने वाले समय में अपार संभावनाएं नजर आ रही हैं। प्रोटीन से भरपूर कृषि उत्पादों जैसे दलहन, सोयाबीन और कुछ कदन्न एवं अनाज भी वीगन फूड्स तैयार करने में शुरुआती तत्त्व के रूप में इस्तेमाल हो सकते हैं।
कटहल भारत में बहुतायत में पाया जाता है। यह शाकाहारी तत्त्वों का अच्छा स्रोत है, जो प्लांट बेस्ड मांस की तरह स्वाद वाले पदार्थों को मांस जैसी संरचना दे सकते हैं। कोविड महामारी के दौरान वीगन फूड्स ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इसके पीछे धारणा यह थी कि बीमारियों से लड़ने में ये उत्पाद शरीर में प्रतिरोध क्षमता का विकास करते हैं। इससे देश में ‘मॉक मीट्स’ (स्वाद में मांस के जैसे उत्पाद) उद्योग तेजी से आगे बढ़ा है।
अमेरिका के कृषि विभाग ने मई 2021 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारत को ‘मांस के विकल्प के रूप में एक बड़ा बाजार बताया था’। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रोटीन के स्रोत के रूप में दलहन, कटहल एवं दुग्ध उत्पादों का लंबे समय से इस्तेमाल होता रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार इसे देखते हुए ये प्लांट बेस्ड उत्पाद पारंपरिक मांसाहारी भोजन के नए, पौष्टिक, आधुनिक एवं पर्यावरण के अनुकूल विकल्प हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि लोग वीगन फूड्स को गैर-संक्रामक, पाचन तंत्र में गड़बड़ी और मोटापा जैसी बीमारियों को भी दूर करने में भी असरदार मानते है।
आर्थिक विकास एवं सहयोग संगठन (ओईसीडी) ने नवंबर में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि दुनिया में वीगन फूड्स की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। रिपोर्ट में इसके कारण भी गिनाए गए हैं। भारत में मांसाहार कम रहने से आधुनिक शैली वाले प्लांट बेस्ड प्रोटीन-युक्त उत्पादों के सेवन में लोगों की रुचि बढ़ रही है।
इस रिपोर्ट के अनुसार 2020 में भारत में मांस का कुल उपभोग लगभग 60 लाख टन था और इस हिसाब से प्रति व्यक्ति 4.5 किलोग्राम का उपभोग हुआ था। देश की लगभग आधी आबादी सप्ताह में एक बार ही मांसाहारी भोजन करती है।
दूसरी तरफ, मांस के विकल्प के रूप में वीगन फूड्स की वृद्धि सालाना 5.8 प्रतिशत दर से बढ़ रही है। वीगन फूड्स की बढ़ती उपलब्धता, आय में वृद्धि और बदलती आदतों से इनका उपभोग आने वाले समय में और बढ़ सकता है। इसके अलावा भारत में कुछ विशिष्ट धार्मिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों से भी इन उत्पादों के उपभोग में बढ़ोतरी लगातार यूं ही होती रहेगी। साल में कम से कम 100 दिन ऐसे होते हैं जब मांसाहार के शौकीन लोग भी शाकाहारी भोजन करते हैं। ऐसे अवसरों पर इन लोगों के लिए वीगन फूड्स एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
कृषि विशेषज्ञ वीगन फूड्स के बढ़ते उपभोग को एक सकारात्मक रुझान के रूप में देख रहे हैं। जीव आधारित उत्पादों की तुलना में शाकाहारी भोजन उगाने में कम जमीन एवं जल की आवश्यकता होती है और इनसे प्रदूषण भी कम फैलता है।
वैज्ञानिकों ने वीगन फूड्स को गैर-शाकाहारी भोजन का अधिक पौष्टिक एवं पर्यावरण के अनुकूल विकल्प माना है। वीगन फूड्स तैयार करने वाली इकाइयां इनमें कवक, शैवाल या स्पिरुलिना से प्राप्त विटामिन, खनिज, ऐंटीऑक्सीडेंट और प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने वाले तत्त्व मिलाकर इन्हें और पौष्टिक बना सकते हैं।
वीगन फूड्स की बिक्री डिजिटल मार्केटिंग पोर्टल से हो रही है और सोशल मीडिया से इन्हें बढ़ावा दिए जाने से इनका उपभोग भी बढ़ रहा है। वीगन फूड्स से पर्यावरण को होने वाले लाभों की भी वैज्ञानिक शोधों से पुष्टि हो चुकी है। जर्मनी में किए गए अध्ययन के अनुसार अगर वहां गोमांस का उपभोग 5 प्रतिशत कम कर इनकी जगह शाकाहार आधारित प्रोटीन का इस्तेमाल किया जाए तो साल में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन लगभग 80 लाख टन तक कम हो सकता है।
इन सारी खूबियों के बावजूद वीगन फूड्स कुछ चुनौतियों का भी सामना कर रहा है। अगर इनसे नहीं निपटा गया तो यह क्षेत्र अपनी पूर्ण क्षमता के साथ आगे नहीं बढ़ पाएगा। भारत में लोग कीमतों को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं। इस समय ज्यादातर वीगन फूड्स मांस की तुलना में अधिक महंगे हैं। इन उत्पादों के विकास पर आने वाली लागत में कमी करने के लिए शोध एवं विकास में अधिक निवेश की आवश्यकता है। इसके साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि इनके स्वाद, संरचना एवं अन्य गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं हो।
बड़ी फसलों के मूल्य वर्धित उत्पाद तैयार करने में लगे सार्वजनिक क्षेत्र के शोध केंद्र खाद्य प्रसंस्करण में लगे लोगों एवं किसानों के हित के लिए कार्य कर सकते हैं। वीगन फूड्स के विकास एवं इनका उपभोग बढ़ने का सबसे अधिक लाभ हमारे देश के किसानों को ही मिलेगा।