वित्त वर्ष 24 से अगले चार वित्त वर्षों तक भारत जीडीपी के अनुपात में ऋण बढ़ने के दायरे में रहेगा जबकि इसमें वित्त वर्ष 23 तक निरंतर दो साल निरंतर गिरावट का रुख रहा था। यह अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने बुधवार को व्यक्त किया।
आईएमएफ ने हालिया राजकोषीय निगरानी रिपोर्ट में कहा कि वित्त वर्ष 24 में जीडीपी के अनुपात में भारत का ऋण (केंद्र+राज्यों) थोड़ा बढ़कर 83.2 प्रतिशत हो जाएगा। यह वित्त वर्ष 27 में उच्च स्तर 83.3 फीसदी पर पहुंच जाएगा। इसके बाद इसमें सुधार का दौर शुरू होगा।
कोविड-19 के कारण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा है। महामारी के कारण राजस्व घटा है और सरकारी खर्च में बढ़ोतरी हुई है। इससे वित्त वर्ष 20 की तुलना में जीडीपी के अनुपात में भारत का सार्वजनिक ऋण 75 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 21 में 88.5 फीसदी हो गया। हालांकि राजस्व और खर्चे के स्थिर होने के कारण वित्त वर्ष 23 में कुछ गिरकर 83.1 फीसदी पर आ गया। आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 21भारत का सकल वित्तीय घाटा (केंद्र+राज्यों) का उच्च स्तर 12.9 फीसदी पहुंच गया और वित्त वर्ष 29 में यह 7.6 फीसदी पर आ जाएगा।
आईएमएफ के राजकोषीय मामलों के विभाग में उप निदेशक पाओलो मौरो ने कहा कि मध्यावधि में वैश्विक सार्वजनिक ऋण-जीडीपी अनुपात में क्रमिक रूप से बढ़ोतरी होगी लेकिन भारत में स्थिर रहेगी। मौरो ने कहा कि भारत में ऋण का अनुपात 83 फीसदी है जो उच्च है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि यह व्यापक स्तर पर स्थानीय मुद्रा पर है और घरेलू स्तर पर भी है।