वोडाफोन आइडिया (Vodafone Idea) के 18,000 करोड़ रुपये के फॉलोऑन पब्लिक ऑफर (FPO) ने यह उम्मीद जगा दी है कि नकदी संकट से जूझ रही इस दूरसंचार कंपनी के हालात बदल सकते हैं। एफपीओ सात गुना सबस्क्राइब हुआ और निवेशकों से करीब 90,000 करोड़ रुपये की राशि बोली में हासिल हुई।
बीते कुछ वर्षों में धन जुटाने में नाकाम वोडाफोन आइडिया ने आखिरी प्रयास में एफपीओ पेश करने का निर्णय लिया जिसे विदेशी निवेशकों का जबरदस्त समर्थन मिला। सफल एफपीओ वोडाफोन आइडिया में नई जान फूंकने में मददगार साबित हो सकता है लेकिन यह भी संभव है कि इसका सीमित प्रभाव हो।
ऐसा इसलिए कि कंपनी के नुकसान और देनदारी का आंकड़ा बहुत बड़ा है। कंपनी पर 31 दिसंबर, 2023 तक करीब 2.15 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था। इसमें 1.38 लाख करोड़ रुपये का लंबित स्पेक्ट्रम भुगतान और सरकार के प्रति 69,020 करोड़ रुपये की समायोजित सकल राजस्व देनदारी शामिल थी।
इसके अलावा कंपनी पर बैंकों और वित्तीय संस्थानों की 6,050 करोड़ रुपये की देनदारी तथा 1,660 करोड़ रुपये का वैकल्पिक रूप से परिवर्तनीय डिबेंचर शामिल है।
कंपनी के लिए चिंता की और भी वजह हैं। उनमें सबसे बड़ी है उसके ग्राहकों की लगातार कम होती संख्या। कंपनी पिछले कई महीनों से इसमें जूझ रही है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि जनवरी में वोडाफोन आइडिया के 22.1 करोड़ ग्राहक थे। अगर तुलना करें तो एयरटेल के 38.2 करोड़ और जियो के 46.4 करोड़ ग्राहक थे।
वोडाफोन आइडिया को 5जी सेवा प्रदान करने के क्षेत्र में बहुत काम करना है क्योंकि उसके प्रतिद्वंद्वी उससे बहुत आगे हैं। गत सप्ताह एफपीओ की घोषणा के समय वोडाफोन आइडिया प्रबंधन ने विस्तार से बताया कि 5जी सेवाओं की शुरुआत के लिए कंपनी की क्या योजना है। कंपनी का इरादा है कि अगले 24 से 30 महीनों के दौरान अपने राजस्व का 40 फीसदी हिस्सा 5जी सेवाओं से अर्जित करे। परंतु दूरसंचार कंपनी की 5जी नेटवर्क ऑर्डर व्यवस्था उसके राजस्व जुटाने से संबद्ध होगी।
यह स्पष्ट है कि एफपीओ से हासिल हो रही मौजूदा धनराशि इतनी अधिक नहीं होगी कि यह कंपनी 5जी और नेटवर्क विस्तार में भी खर्च कर सके और अपना भारी भरकम कर्ज भी चुका सके। दूरसंचार नकदी की जरूरत वाला क्षेत्र है जहां एक बार धन जुटाकर कंपनी अपनी समस्याओं को हल नहीं कर सकती।
प्रवर्तक कंपनियों वोडाफोन पीएलसी और आदित्य बिड़ला समूह ने हाल के समय में मामूली वित्तीय सहायता प्रदान की है और कंपनी को सख्ती बरतते हुए अपने टैरिफ को व्यावहारिक बनाना होगा। मासिक प्रति उपयोगकर्ता औसत राजस्व (एआरपीयू) को इस क्षेत्र और दूरसंचार कंपनियों की सेहत का मानक माना जाता है। न केवल वोडाफोन आइडिया बल्कि समूचे दूरसंचार उद्योग को इसमें इजाफा करना होगा ताकि कारोबार व्यावहारिक बन सके।
वोडाफोन आइडिया का मासिक एआरपीयू अभी 145 रुपये प्रति माह है जो जियो के 181.7 रुपये प्रति माह और एयरटेल के 208 रुपये प्रति माह से काफी कम है। समग्र तौर पर देखें तो भारत में दूरसंचार क्षेत्र का औसत एआरपीयू 152.50 रुपये प्रति माह है जो वैश्विक आंकड़ों का एक हिस्सा भर है।
इस परिदृश्य में शुल्क दरों को तार्किक करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि देश के दूरसंचार क्षेत्र में दो कंपनियों के दबदबे की स्थिति न बने। केंद्र सरकार वोडाफोन इंडिया में 33 फीसदी के साथ सबसे बड़ी हिस्सेदार (एफपीओ के पहले तक) है। यह स्थिति तब बनी जब फरवरी 2023 में दूरसंचार कंपनी के सकल राजस्व बकाये पर बने ब्याज को शेयरों में तब्दील किया गया।
सरकार के पास यह विकल्प भी रहा कि वह बाद में भी कंपनी के बकाया को शेयरों में बदल सके। परंतु दूरसंचार कंपनी को सफल एफपीओ के बाद एक मजबूत कारोबारी मॉडल की भी जरूरत है। सुधार के संकेत बाद में उसे विस्तार के लिए धन जुटाने में भी मदद करेंगे।